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Wednesday, May 1, 2024

संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान किया -10 अप्रैल को 24 घंटे के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे जाम करेंगे

नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच में जारी गतिरोध अभी टूटता दिखाई नहीं दे रहा है। तीनों कानून वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून बनाने की जिद अड़े किसान बिना मांगें माने पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को ऐलान किया है कि आंदोलनकारी किसान 10 अप्रैल को 24 घंटे के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे को जाम करेंगे। इसके बाद वो मई में संसद तक पैदल मार्च भी करेंगे, इसके लिए जल्द ही तारीख पर फैसला किया जाएगा। 

मार्च महीने की शुरुआत में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर प्रदर्शनकारी किसानों ने केएमपी एक्सप्रेस-वे और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को बाधित कर दिया था। सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक एक्सप्रेस-वे को विभिन्न जगहों पर पांच घंटे के लिए रोक दिया था। इसके बाद किसान आंदोलन को चार महीने पूरे होने पर 26 मार्च को किसान मोर्चा ने 12 घंटे का भारत बंद बुलाया था। 

गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ में दिल्ली की सीमाओं पर लगातार चार महीने से भी अधिक समय से किसानों का हल्लाबोल जारी है। कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। किसानों ने सरकार से जल्द उनकी मांगें मानने की अपील की है। वहीं सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कानून वापस नहीं होगा, लेकिन संशोधन संभव है।

कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी

तीन नए विवादास्पद कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 19 मार्च को एक सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। कमेटी के सदस्यों में से एक ने बुधवार को यह जानकारी दी। किसान पिछले 4 महीनों से इन कानूनों को निरस्त किए जाने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को इन तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेशों तक रोक लगा दी थी और गतिरोध का समाधान करने के लिए चार सदस्यीय कमेटी नियुक्त की थी। कमेटी को कानूनों का अध्ययन करने और सभी हितधारकों से चर्चा करने के लिए दो महीने का समय दिया गया था।

कमेटी के सदस्यों में से एक पी.के. मिश्रा ने कहा कि हमने 19 मार्च को एक सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट सौंप दी है। अब, अदालत भविष्य की कार्रवाई पर फैसला करेगी। कमेटी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, कमेटी ने किसान संगठनो, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की खरीद एजेंसियों, पेशेवरों, शिक्षाविदों, निजी और साथ ही राज्य कृषि विपणन बोर्डों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के कुल 12 दौर किए।

कमेटी ने रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले नौ आंतरिक बैठकें भी कीं। मिश्रा के अलावा कमेटी के अन्य सदस्यों में शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत और कृषि अर्थशास्त्री तथा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी शामिल हैं। कमेटी के चौथे सदस्य भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान ने काम शुरू करने से पहले ही कमेटी से खुद को अलग कर लिया था।

बता दें कि किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार सितम्बर में पारित किए तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे। 

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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