तुर्किए की सत्ता पर बीते 20 सालों से भी ज्यादा समय से रेसेप तैयप एर्दोगन का कब्जा है। हालांकि लगता है कि अब उनका करिश्मा खत्म होने के कगार पर है। यही वजह है कि कुछ दिनों बाद ही तुर्किए में होने वाले आम चुनाव को तुर्किए के इतिहास का सबसे अहम चुनाव माना जा रहा है। तुर्किए के गांधी कहे जाने वाले कमाल किलिदारोग्लु आगामी चुनाव में एर्दोगन को हराकर देश के अगले राष्ट्रपति बन सकते हैं। हालांकि काफी लोग मानते हैं कि अभी भी एर्दोगन को हराना आसान नहीं है।
तुर्किए को आर्थिक तौर पर किया जाएगा मजबूत
तुर्किए में 14 मई को मतदान होना है। उसके बाद 28 मई को होने वाले रन-ऑफ चुनाव में तुर्किए के अगले राष्ट्रपति का फैसला हो जाएगा। छह पार्टियों के संगठन वाले विपक्ष ने वादा किया है कि अगर उन्हें चुनाव में जीत मिलती है तो तुर्किए को आर्थिक तौर पर फिर से मजबूत किया जाएगा, लोकतांत्रिक मूल्यों की वापसी होगी और मौजूदा विदेश नीति में भी बड़े बदलाव किए जाएंगे। तुर्किए के चुनाव का ना सिर्फ तुर्किए पर बल्कि पूरी दुनिया पर असर दिखेगा।
पूरी दुनिया पर पड़ेगा असर
तुर्किए में होने वाले आम चुनाव का पूरी दुनिया पर असर पडे़गा। तुर्किए के राजनीतिक, आर्थिक जीवन पर असर के साथ ही मध्य पूर्व के क्षेत्र, तुर्किए के पश्चिम, अमेरिका और नाटो के साथ संबंधों समेत एक तरह से पूरी दुनिया पर असर होगा। दरअसल कमाल किलिदारोग्लु एलान कर चुके हैं कि अगर उनकी जीत हुई तो वह सीरिया से अपनी फौजों को वापस बुलाएंगे और सीरिया की असद सरकार से बातचीत करेंगे।
किलिदारोग्लु ने ये भी वादा किया है कि सीरिया से आए शरणार्थियों को अगले दो साल में वापस भेजा जाएगा। साथ ही तुर्किए अमेरिका, नाटो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपने संबंधों को भी फिर से सामान्य करने की दिशा में काम करेगा। बता दें कि हाल के सालों में तुर्किए के अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों में थोड़ी खटास आई है। इसकी वजह एर्दोगन की नीतियां रही हैं। हालांकि नई सरकार के लिए अमेरिका और रूस के साथ रिश्तों में संतुलन बनाने में मुश्किल हो सकती है।
लीबिया से बुलाए जाएंगे सैनिक
किलिदारोग्लु ये भी कह चुके हैं कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने पर लीबिया से भी सैनिक वापस बुलाए जाएंगे और बातचीत से अफ्रीका में जारी गृहयुद्ध को नियंत्रित करने की कोशिश की जाएगी। तुर्किए के गांधी कह चुके हैं कि वह फिर से देश को मुस्तफा कमाल अतातुर्क की राह पर ले जाएंगे और उनके नारे घर में शांति तो दुनिया में शांति को अपनाएंगे। किलिदारोग्लु ये भी कह चुके हैं कि उनके सत्ता में आने पर यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट के फैसलों को लागू किया जाएगा और कुर्दिश राजनेता सेलाहतिन देमिरतास और तुर्किए के सामाजिक कार्यकर्ता ओसमान कावाला को रिहा किया जाएगा।
चुनाव में धांधली की आशंका
कई लोगों का मानना है कि ऐसा हो सकता है कि चुनाव हारने की सूरत में एर्दोगन शांति से सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दें। या फिर चुनाव में धांधली भी हो सकती है। यही वजह है कि विपक्ष भी पूरी तरह सतर्क है। विपक्ष ने देशभर के 50 हजार मतदान केंद्रों पर तीन लाख ऑब्जर्वर भेजने का फैसला किया है। यह 2018 के चुनाव में भेजे गए ऑब्जर्वर्स की तुलना में दोगुनी संख्या है।