गुलजार की कविताओं, नज्मों, संवादों और निर्देशकीय दृष्टि से हिंदी सिनेमा बीते 60 साल से गुलजार है। उनके पहले गाने ‘मोरा गोरा अंग लइले’ में चांद को बददुआ देने के जिक्र से लेकर शीन काफ निजाम से मिली ‘हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू’ में विशेषण और क्रिया के समन्वय की इजाजत तक के तमाम किस्से मुंबई की खुशनुमा शाम में गुलजार के चाहने वालों ने सुने। आने वाले अगस्त में 90 साल के होने जा रहे गुलजार ने अयोध्या के राजपरिवार बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र के हाथों अपनी ताजपोशी और इस ताज में हेमा मालिनी जैसा ‘कोहिनूर’ लग जाने को इस शाम की अपनी उपलब्धि बताया। लोगों ने उनके शतायु होने की बार बार कामना की तो गुलजार बोले, ‘मैं बड़ा नहीं होना चाहता, मैं बड़ा हो जाऊंगा तो सीखना भूल जाऊंगा।’
मौका मुंबई के सिन्टा भवन में ‘गुलजार: हजार राहें मुड़ के देखीं’ पुस्तक का विमोचन था और इस मौके पर शीन काफ निजाम व हेमा मालिनी की मौजूदगी ने मुंबई के साहित्यिक और सिनेमाई अभिरुचि के पाठकों व दर्शकों को गुलजार की सिनेयात्रा के विविध आयामों से रूबरू कराया। करीब 20 साल की बातचीत से तैयार हुई अपनी जीवन गाथा के विमोचन पर गुलजार ने कहा, ‘मेरे भीतर का रचनाकार बहुत पहले ही खत्म हो चुका होता, अगर सही मौके पर मुझे विशाल भारद्वाज न मिले होते। विशाल ने मेरे भीतर फिर से रचनात्मकता जगाई और उसके बाद आज तक अगर मैं सक्रिय हूं तो इसका श्रेय विशाल को जाता है।’
गुलजार ने इस मौके पर एक बड़ी सीख अपने सभी उपस्थित कद्रदानों को ये भी दी कि जीवन में कामयाबी और सीखते रहना दो अलग अलग बातें हैं। गुलजार कहते हैं, ‘मैं ये खुले आम स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं महसूस करता कि मैंने दूसरों से और अपने से छोटों से भी खूब सीखा है। मैं अपना तो लिखता ही हूं, दूसरों का बताया भी लिख लेता हूं और इसे मैं अपनी होशियारी मानता हूं। मैं इसीलिए बड़ा नहीं होना चाहता। बड़ा हो गया तो मेरा लोगों से ताल्लुक टूट जाएगा और फिर मैं सीख नहीं पाऊंगा। और, अगर मैंने ये मान लिया कि मैं सब कुछ सीख गया हूं तो फिर…!’
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सांसद व अभिनेत्री हेमा मालिनी ने इस मौके पर फिल्म ‘अंदाज’ के निर्माण के समय गुलजार से अपनी पहली मुलाकात से लेकर उनके निर्देशन में बनी अपनी फिल्मों ‘खुशबू’, ‘किनारा’, ‘लेकिन’ और ‘मीरा’ के निर्माण के दौरान की यादों को साझा किया। बिना किसी मेकअप और विग के किए गए इन किरदारों की बात करते हुए हेमा मालिनी ने उस वाकये का भी जिक्र किया जब फिल्म ‘मीरा’ के लिए धन न उपलब्ध होने पर इसके बंद होने की नौबत आई थी। हेमा ने ये किस्सा यहीं छोड़ा तो गुलजार ने इसे पूरा करते हुए बताया, ‘मैंने इनसे फिल्म में बिना पैसे लिए काम करने को कहा था और कहा था कि ये एक ऐसी फिल्म है जिसे वह अपने बच्चों और उनके बच्चों के साथ भी देखना पसंद करेंगी।’ यतींद्र के मुताबिक पुस्तक ‘गुलजार: हजार राहें मुड़ के देखीं’ में गुलजार ने फिल्म ‘मीरा’ को बतौर निर्देशक अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति माना है।
कार्यक्रम में उपस्थित लोक गायिका मालिनी अवस्थी का मंच पर नंगे पांव उपस्थित रहना भी कार्यक्रम के दौरान चर्चा का विषय रहा। पुस्तक ‘गुलजार: हजार राहें मुड़ के देखीं’ के लेखक यतींद्र मिश्र के साथ अपने आत्मिक संबंध को उजागर करते हुए मालिनी ने गुलजार के कृतित्व को याद किया और कहा, ‘मेरा पहला परिचय गुलजार साब से फिल्म ‘परिचय’ के जरिये हुआ। उसमें जीतेंद्र के अंदर मुझे युवा गुलजार का ही अक्स नजर आता था और ये कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि इस अक्स की वजह से ही मुझे जीतेंद्र से इश्क हो गया था। बाद में ये सारी फिल्में मैंने अपनी बेटियों के साथ देखी और गुलजार की फिल्में जितनी बार भी देखी जाएं, हर बार ये लगता है कि अरे, पिछली बार देखते समय इस तरफ तो ध्यान ही नहीं गया। यही क्लासिक सिनेमा की पहचान है।’
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में निर्माता-निर्देशक सुभाष घई, गीतकार प्रसून जोशी, निर्देशक-संगीतकार विशाल भारद्वाज, गीतकार मनोज मुंतशिर, कथाकार अमीश त्रिपाठी के अलावा तमाम और भी साहित्यिक व सिनेमाई हस्तियां मौजूद रहीं। श्रोताओं से खचाखच भरे ऑडिटोरियम में बैठने की जगह जब कम पड़ी तो तमाम लोग सीढ़ियों पर बैठे गुलजार को सुनते नजर आए। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार जीत चुकी वाणी प्रकाशन और यतींद्र मिश्र की जोड़ी की नई पुस्तक ‘गुलजार: हजार राहें मुड़ के देखीं’ का पहला संस्करण पूरा बिक चुका है। कार्यक्रम में इसके दूसरे संस्करण के प्रकाशन की भी सूचना दी गई।