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Saturday, May 10, 2025

गंगा सप्तमी: मां गंगा की पुकार, क्या हम सुन पाएंगे?

वाराणसी, 3 मई 2025, शनिवार। आज गंगा सप्तमी का पवित्र दिन है, जब हम मां गंगा के धरती पर अवतरण का उत्सव मनाते हैं। गंगा, जो सिर्फ नदी नहीं, बल्कि हमारी आस्था, संस्कृति और जीवन का आधार है। लेकिन इस शुभ दिन पर, गंगा की हालत देखकर मन व्यथित हो उठता है। एक समय था जब गंगा की स्वच्छता और प्रदूषण पर चर्चा होती थी, लेकिन आज उनकी सांसों का संकट—कम होता जलस्तर—हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

गंगा की दुर्दशा: काशी का दर्द

धर्म और आस्था की नगरी काशी में गंगा सप्तमी का उत्साह है, लेकिन गंगा की स्थिति चिंताजनक है। मई के शुरुआती महीने में ही गंगा का जलस्तर इतना कम हो गया कि घाटों पर रेत के टीले बनने लगे। वाराणसी के अस्सी घाट से गंगा 200 मीटर दूर खिसक चुकी हैं। यह दृश्य न केवल दुखद है, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है।

क्यों सूख रही हैं गंगा?

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय गंगा शोध संस्थान के वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी बताते हैं कि गंगा का संकट प्रदूषण से कहीं ज्यादा जलस्तर की कमी से है। इसके चार प्रमुख कारण हैं:

  • जलस्तर में तेजी से कमी: गंगा का प्रवाह हर साल 0.5 से 38.1 सेंटीमीटर तक कम हो रहा है।
  • पानी का बंटवारा: हरिद्वार से गंगा का पानी अन्य राज्यों को भेजा जा रहा है।
  • कैनालों का जाल: गंगा के दोनों ओर बने कैनाल खेतों तक पानी ले जा रहे हैं।
  • भूजल का दोहन: दो दशकों से भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, जो गंगा की सेहत पर असर डाल रहा है।

प्रदूषण का दंश और सहायक नदियों की मार

गंगा में प्रदूषण भी कम नहीं। वाराणसी में वरुणा और अस्सी जैसी सहायक नदियां रोज 75 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में मिला रही हैं। हालांकि, 8 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) इस प्रदूषण को कम करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन 15-20 मिलियन लीटर पानी अभी भी बिना शोधन के गंगा में जा रहा है। गंगा किनारे बने अस्थाई जेट्टी और निर्माण कार्य भी उनके प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर रहे हैं। कई जगह गंगा का पानी हरा पड़ रहा है, जो प्रदूषण और जल की कमी का खतरनाक संकेत है।

घाटों का खोखलापन, गंगा की बेबसी

प्रो. त्रिपाठी चेतावनी देते हैं कि गंगा के कम होते प्रवाह से न केवल प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि घाटों की नींव भी खोखली हो रही है। गंगा का तेज बहाव ही उनकी शुद्धता का आधार था, जो अब कमजोर पड़ चुका है। अगर यही स्थिति रही, तो मई के अंत तक गंगा की हालत और भयावह हो सकती है। घाटों के ढहने का खतरा भी मंडरा रहा है।

क्या है समाधान?

गंगा को बचाने के लिए सिर्फ नारे या पूजा-अर्चना काफी नहीं। जरूरत है ठोस कदमों की:

  • गंगा के जलस्तर को बढ़ाने के लिए बांधों और कैनालों से पानी के बंटवारे पर नियंत्रण।
  • सहायक नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए और प्रभावी एसटीपी की व्यवस्था।
  • भूजल दोहन पर रोक और गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले निर्माणों पर अंकुश।
  • सामुदायिक जागरूकता, ताकि लोग गंगा के महत्व को समझें और उनकी रक्षा में योगदान दें।

गंगा की पुकार

गंगा सिर्फ नदी नहीं, हमारी मां हैं। उनकी हर लहर में जीवन है, हर बूंद में आस्था। गंगा सप्तमी का यह पावन दिन हमें याद दिलाता है कि गंगा को बचाना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम आज नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। आइए, इस गंगा सप्तमी पर संकल्प लें कि हम मां गंगा को फिर से निर्मल और अविरल बनाएंगे। उनकी पुकार को अनसुना न करें, क्योंकि गंगा का सूखना सिर्फ एक नदी का अंत नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता का संकट है।

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