नई दिल्ली, 9 मई 2025, शुक्रवार। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि वैश्विक मंच पर भी हलचल मचा रहा है। भारत के “ऑपरेशन सिंदूर” ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए पाकिस्तान को बैकफुट पर ला दिया है। पाकिस्तान की ओर से आम नागरिकों को निशाना बनाने की कोशिशों का भारत मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। इस तनातनी पर पूरी दुनिया की नजर है, और अमेरिका से लेकर चीन तक ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सभी ने एक स्वर में आतंकवाद की निंदा की, लेकिन चीन की बेचैनी कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही है।
चीन की चिंता और उसका बयान
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने हाल ही में कहा, “चीन भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा स्थिति से चिंतित है। दोनों देश हमारे पड़ोसी हैं और हमेशा रहेंगे। हम सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करते हैं।” उन्होंने दोनों देशों से शांति और संयम बरतने की अपील की, साथ ही यह भी जोड़ा कि चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर तनाव कम करने में रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है। लिन जियान ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने की सलाह देते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाइयों से बचना चाहिए, जो स्थिति को और जटिल करें।
चीन की धड़कन क्यों बढ़ रही है?
चीन की इस बेचैनी के पीछे उसका आर्थिक हित सबसे बड़ा कारण है। पाकिस्तान में चीन ने अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है, जिसका बड़ा हिस्सा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ा है। 2005 से 2024 तक चीन ने पाकिस्तान में लगभग 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बनते हैं, तो चीन का यह विशाल निवेश खतरे में पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन किसी भी कीमत पर इस क्षेत्र में अस्थिरता नहीं चाहता, क्योंकि इससे उसकी आर्थिक योजनाओं को बड़ा झटका लगेगा।
मध्यस्थता की पेशकश, लेकिन क्यों?
चीन की मध्यस्थता की पेशकश भी उसके आर्थिक हितों की रक्षा की कोशिश है। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाए रखना चीन के लिए इसलिए जरूरी है, क्योंकि CPEC जैसी परियोजनाएं न केवल उसकी आर्थिक रणनीति का हिस्सा हैं, बल्कि वैश्विक व्यापार में उसकी साख भी इनसे जुड़ी है। युद्ध की स्थिति में ये परियोजनाएं ठप हो सकती हैं, जिससे चीन को भारी नुकसान होगा।