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Monday, May 6, 2024

कर्नाटक में पेश की गई जातिगत जनगणता रिपोर्ट, फिलहाल इसका डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया

कर्नाटक में गुरुवार को पेश की गई जातिगत जनगणना रिपोर्ट ने राज्य राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। फिलहाल इसका डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। साल 2017 में पिछली सिद्धारमैया सरकार द्वारा जारी सर्वे ने लिंगायत और वोक्कालिगा जातियों के लिए चिंता खड़ी कर दी थी, जो अब अलग होना चाहते हैं। 

पहले कैबिनेट में पेश होगी रिपोर्ट फिर लिया जाएगा फैसला
2017 की सामाजिक आर्थिक सर्वे रिपोर्ट को जयप्रकाश हेगड़े ने गुरुवार को सीएम सिद्धारमैया को सौंपीं। ओबीसी आयोग के अध्यक्ष अपने कार्यालय के आखिरी दिन दोपहर को 2:45 बजे विधानसौधा पहुंचे। उन्होंने मीडिया को संबोधित करने से पहले सीएम सिद्धारमैया से मुलाकात की। 

मीडिया से बात करते हुए ओबीसी आयोग के अध्यक्ष ने कहा, “हमने रिपोर्ट सौंप दी है। सीएम ने कहा कि वह इसे अगली कैबिनेट में पेश करेंगे और इसपर फैसला लेंगे। हालांकि, मुख्यमंत्री ने इसपर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।

सूत्रों और पिछले कुछ दिनों से जारी रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति को सबसे अधिक आबादी वाला बताया गया है। उनके बाद मुसलमानों को रखा गया है। इसके बाद लिंगायत और फिर वोक्कालिगा को रखा गया है। इस रिपोर्ट पर लिंगायत वोक्कालिगा समूह ने कड़ा विरोध किया। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार जो खुद वोक्कालिगा जाति से ताल्लुक रखते हैं, ने इससे पहले विरोध जताया था।

विरोध करने को तैयार भाजपा नेता
कर्नाटक के भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने कहा, “यह सर्वे वैज्ञानिक नहीं है। इससे लिंगायत और वोक्कालिगा नाराज हैं। हम इसका विरोध करेंगे। हम कांग्रेस सरकार से अनुरोध करेंगे कि वे घर-घर जाकर दोबारा सर्वे करें, जिसके बाद ही हम इसे स्वीकार करेंगे।” कांग्रेस के लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं द्वारा इस सर्वे पर आलोचना किए जाने के बाद सीएम सिद्धारमैया ने बताया कि इसपर पहले कैबिनेट में चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा कि सर्वे में विसंगतियां होने से इसपर विशेषज्ञों की राय भी ली जाएगी।

कर्नाटक के कानून और संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने कहा, “मैं इस रिपोर्ट या अपने सहयोगियों के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। सबकुछ हमारे द्वारा स्वीकार करने या नहीं करने पर निर्भर करता है। हमें इसे पढ़ने में शायद थोड़ा समय लगे। अभी कुछ भी हो सकता है।”

सर्वे के दौरान 1,30,00,000 परिवारों के 5,90,00,000 लोगों से 54 सवाल पूछे गए थे। सर्वे का आदेश पहली बार सीएम सिद्धारमैया ने 2014 में दिया था। इस परियोजना पर 169 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। हालांकि, रिपोर्ट 2017 में तैयार हो गई थी, लेकिन कुछ गलतियों के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया था। 

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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