सात सुरों की आराधना के बल पर देश और दुनिया में राजस्थान समेत पूरे देश का नाम रोशन कर रहे लंगा व मांगणियार कलाकार पूरे विश्व में दीपावली पर सांप्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश करते हैं। राजस्थान के सरहदी जिलों जैसलमेर और बाड़मेर जिले में आबाद लंगा व मांगणियार जाति के मुस्लिम परिवारों को लोकगीतों को सुरों में प्रस्तुत करने में महारत हासिल है।
हर रस्म निभाते हैं ये कलाकार
ये परिवार हिन्दुओं के रोशनी के त्योहार दीपोत्सव को भी उतनी शिद्दत के साथ मनाते हैं, जितनी शिद्दत से वे ईद मनाते हैं। दीपावली पर उनके घरों में सजावट से लेकर हर वो रस्म निभाई जाती है, जो दीपोत्सव पर हिन्दू परिवार निभाते हैं। मांगणियार और लंगा समुदाय मुस्लिम हैं, लेकिन वे ईद के साथ-साथ दिवाली और होली जैसे हिंदू त्यौहारों को भी मनाते हैं।
थार रेगिस्तान के लोक संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध
मांगणियार खुद को राजपूतों से जुड़ा मानते हैं। यहां के हिंदू इनके यजमान है। यह जाति थार रेगिस्तान के लोक संगीतकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे अल्लाह, गणेश, श्री राम और स्थानीय महाराजाओं तथा पिछली लड़ाईयों से जुड़े गीत गाते हैं। शनिवार को भी दीपावली के पर्व पर लंगा-मांगणियार जाति के मुस्लिम परिवारों ने उत्साह और उमंग के साथ न सिर्फ दीये जलाए, बल्कि अपने घरों को दीपक की रोशनी से रोशन कर समाज को जाति-पांति के बंधन में बांधने वालों को सख्त संदेश दिया।
लंगा-मांगणियार कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट
देश-विदेश के कई मंचों पर राजस्थान की इस लोक कला को पहुंचाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। कोरोना महामारी के दौर में इन परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट मंडरा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में बहुतायत से रहने वाले मांगणियार लोक कलाकार पिछले कई महीनों से अपने यजमानों के घर बंद हो चुके आयोजनों की वजह से आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं।