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Friday, April 26, 2024

पार्टियों के लिए चिंता का विषय किसानों का राजनीति में आना क्यों है, किस पार्टी को होगा फायदा और किसका नुकसान

2017 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में मुकाबला दो कोने की थी। लेकिन आम आदमी पार्टी के मैदान में उतरने के बाद यह मुकाबला त्रिकोणीय हुआ। अब इस चुनाव में 22 किसान संघ, जो कभी संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का हिस्सा थे, चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं, जिससे पंजाब विधानसभा चुनाव में मुकाबला बहु-कोणीय हो गया है।

संयुक्त किसान मोर्चा के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद, पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक पंजाब के 22 किसान संगठनों ने एक नई पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) बनाई है और चुनाव लड़ने की घोषणा की। बलबीर सिंह राजेवाल को यूनाइटेड फ्रंट का सीएम चेहरा घोषित कर दिया है। इसके अलावा किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने भी नई पार्टी ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी’ बनाकर आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। 

इस तरह पंजाब चुनाव में अब संयुक्त समाज मोर्चा, संयुक्त संघर्ष पार्टी के अलावा आप, कांग्रेस, शिअद-बसपा, भाजपा के साथ कैप्टन अमरिंदर की पार्टी, पीएलसी और शिअद (संयुक्त) इस चुनावी मौसम में मैदान में हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए छोटे दल और निर्दलीय भी लड़ेंगे। पंजाब में एक तरफ जहां नए राजनीतिक दल किसानों को लुभाने की होड़ में हैं, वहीं मुख्यधारा के राजनीतिक दल इन नई पार्टियों से घबरा गए हैं, क्योंकि राज्य में अगले साल की शुरुआत में 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव है और किसान आंदोलन से निकली पार्टियों को किसानों का समर्थन हासिल है। अन्य दलों के लिए चिंता की यही बात है कि नए हितधारकों के आने से उन्हें नुकसान हो सकता है। 

क्या अमरिंदर सिंह को नहीं मिलेगा चुनावी फायदा

किसान आंदोलन खत्म होने का सबसे ज्यादा फायदा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उठाना चाहते थे, क्योंकि आंदोलन खत्म करवाने में अपनी भूमिका होने की बात कही जा रही है। अमरिंदर की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया है। इस लिहाज से अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा को भी फायदा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन किसान संगठनों के सियासी मैदान में उतरने से अमरिंदर सिंह को झटका लगा है। 

एक वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक का कहना है उन्हें उतना फायदा मिलता नहीं दिख रहा जितने की उम्मीद थी। हालांकि राज्य में भाजपा की सियासी सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि पहले भी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में उसका वोट बैंक नहीं है और ग्रामीण इलाकों में जहां किसान ज्यादा हैं वहां उसका विरोध हो रहा है। माना जा रहा है कि किसानों का मोर्चा बनने से पंजाब में राजनीतिक समीकरण अब एक बार फिर से बदलेंगे। 

शिअद को नुकसान होने का खतरा ज्यादा

शिरोमणि अकाली दल को जट्ट सिख किसानों के बीच समर्थन हासिल है। पंथक के तौर पर भी उनके मतदाता शिअद से जुड़े रहते हैं। राजनीति के जानकारों को लगता है कि किसान संगठनों के चुनाव मैदान में उतरने से मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। यदि शियद इस वोट बैंक को बचाने में कामयाब नहीं हुए तो उनका बड़ा नुकसान हो सकता है।

पंजाब,आप विधायक रूपिंदर कौर बीवी सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू की मौजूदगी में कांग्रेस में

क्या कांग्रेस अपना वोट बैंक बचा पाएगी

कांग्रेस को ग्रामीण क्षेत्र में अच्छा समर्थन हासिल है। पार्टी ने पांच एकड़ तक की जमीन वाले किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफी का वादा किया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपने वोट बैंक को स्थिर रख सकती है। 

आम आदमी पार्टी

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। पार्टी ने इस बार सत्ता में आने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। पिछले चुनाव में पार्टी को किसानों का ठीक-ठाक वोट मिला थी, लेकिन किसान संगठन से निकली नई पार्टियों के आने से आप को ही सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि माना जाता है कि आप का वोट बैंक केवल शहरी इलाकों में है। 

किसानों की पहली पसंद किसान आंदोलन से निकली पार्टियां होंगी?

पंजाब के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि इस बात का अनुमान बहुत पहले से था कि किसान आंदोलन से निकले संगठन पंजाब चुनाव में उतर सकते हैं। चूंकि पंजाब में किसानों की राजनीति होती है इसलिए किसानों की पार्टी होने से स्वाभाविक तौर पर संयुक्त समाज मोर्चा या संयुक्त संघर्ष पार्टी होगी, क्योंकि उन्होंने लगातार किसानों के हक में संघर्ष करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। ये दोनों नई पार्टी किसानों की आवाज बन सकती है, क्योंकि किसान मान रहे हैं कि उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। एमएसपी उनका मुख्य मुद्दा है और किसानों को विश्वास है कि मुख्यधारा के बजाए यही पार्टियां इस मुद्दे को भी उठाएगी। अब किसानों के वोट बटेंगे और सभी पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लग सकती है। इससे त्रिकंशु विधानसभा होने के पूरे आसार हैं और ये किसान संगठन किंग मेकर की भूमिका में हो सकते हैं। 

किसानों को लुभाने में लगी हर पार्टी

पंजाब चुनाव में किसानों का वोट निर्णायक होगा और यह बात हर राजनीतिक पार्टी जानती है। यही कारण है कि वे किसानों को लुभाने के लिए दौड़ पड़े हैं। जहां अकाली इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उन्होंने सिर्फ किसानों के लिए भाजपा से नाता तोड़ लिया है। वहीं कांग्रेस ने आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के लिए एक स्मारक की घोषणा की है।

भाजपा और आप भी किसानों तक पहुंचने के लिए आक्रामक तरीके से प्रचार कर रही हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को सत्ता में वापस लाना है। वहीं  आम आदमी पार्टी इस बार सत्ता में आने की कोशिश में है और वह पंजाब में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है। वहीं अकाली दल अपने मुख्यमंत्री की कुर्सी वापस लेने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। खास बात यह है कि इन तीनों दलों ने किसानों के मुद्दे पर जोर दिया है। 

नए खिलाड़ियों के मैदान में आने से वैसे परेशान तो हरेक राजनीतिक पार्टी है लेकिन मुख्यधारा की पार्टियां इस मामले पर सधी हुई और सतर्क प्रतिक्रिया दे रही है। आम आदमी पार्टी  के नेता राघव चड्ढा ने कहा ‘अभी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। हमारी पार्टी किसानों के साथ खड़ी है। उन्हें भाजपा के कारण नुकसान हुआ है।’ वहीं कांग्रेस से पंजाब के उपमुख्यमंत्री ओपी सोनी ने कहा कि लोकतंत्र है। राजनीति में शामिल होने के लिए सभी का स्वागत है। हमारी पार्टी किसानों के साथ खड़ी है और हम इसे जारी रखेंगे। इस बीच, राज्य भाजपा इकाई पांच जनवरी को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रैली की तैयारी कर रही है। भाजपा को उम्मीद है कि पीएम मोदी की रैली के बाद पंजाब का माहौल बदल जाएगा।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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