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Sunday, May 19, 2024

एक करोड़- की लागत से मणिकर्णिका पर बनेंगे दो शवदाह गृह, गोरक्षनगरी की तर्ज पर होगा निर्माण

मोक्ष की नगरी काशी में गोरक्षनगरी की तर्ज पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू होगी। शिव की नगरी में गोरक्षनगरी की तरह ही लकड़ी आधारित शवदाह गृह बनाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण का प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी वहीं ऊर्जा का संरक्षण व शवदाह के लिए आने वाले यात्रियों के समय की भी बचत होगी। मणिकर्णिका घाट पर इसका स्थान तय हो गया है।

मणिकर्णिका घाट पर महाश्मशान मंदिर के पास सीढ़ी उतरते ही लकड़ी आधारित शवदाह गृह का निर्माण किया जाएगा। एक करोड़ की लागत से बनने वाले शवदाह गृह के निर्माण के लिए कोलकाता की संस्था हिंदुस्तान चैरिटी ने पहल की है। नगर निगम के अधिशासी अभियंता अजय कुमार राम ने गोरखपुर के शवदाह गृह ऊर्जा गैसी फायर के मालिक से मुलाकात करके इसकी पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली है। सप्ताह भर के अंदर इस पर काम भी शुरू हो जाएगा।

 इको फ्रेंडली शवदाह गृह में कम लगेगी लकड़ी
अधिशासी अभियंता अजय कुमार ने बताया कि आम तौर पर जहां सामान्य चिता के लिए ढाई क्विंटल लकड़ी की जरूरत होती है वहीं इस इको फ्रेंडली शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के लिए एक क्विंटल लकड़ी में काम हो जाएगा। शवदाह की प्रक्रिया डेढ़ घंटे में ही पूर्ण हो जाएगी जबकि सामान्यत: इस प्रक्रिया में तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। लकड़ी की कमी, वायु प्रदूषण और गंगा में होने वाले प्रदूषण से निपटने में यह तकनीक कारगर सिद्ध होगी।

अभ्रक की ईंटों की दीवारों के बीच होगा शवदाह

शवदाह गृह का स्वरूप एक बड़े बाक्स की तरह होता है, इसकी दीवारें फायर ब्रिक्स (अभ्रक की ईंट) की बनी होती हैैं। चारों ओर से बंद इस बाक्स में एक चिमनी लगी होती है। बाक्स में एक स्ट्रेचरनुमा ट्राली होती है, जिस पर पहले लकड़ी, फिर शव और उसके ऊपर लकड़ी रखी जाती है। सभी रीति रिवाज पूरे करने के बाद शव को मुखाग्नि देकर स्ट्रेचर को बाक्स के अंदर बंद कर दिया जाता है।

वायुमंडल में नहीं जाएगी धुएं की राख

फायर ब्रिक्स की खासियत यह है कि लकड़ी का ताप अवशोषित नहीं होता, बल्कि उत्सर्जित होता है। इस कारण एक क्विंटल लकड़ी से इतना ताप पैदा होता है कि शव सिर्फ डेढ़ घंटे में पूरी तरह जल जाता है। चिमनी के ऊपर वाटर स्प्रिंकल (पानी का फव्वारा) लगा होता है, जो शव दहन से पैदा हुए धुएं पर पड़ता है। इससे धुएं की राख वायुमंडल तक पहुंचने के बजाय वहीं बैठ जाती हैैं। धुआं भी फिल्टर से होकर वायुमंडल तक पहुंचता है। इससे वायु प्रदूषण भी काफी कम होता है।
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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