जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह और गृह विभाग के बीच उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) स्तर के अफसरों के तबादलों को लेकर पिछले कुछ समय से चल रही खींचतान के बीच आए फरमान ने सभी को चौंका दिया है। गृह विभाग ने डीजीपी के किसी भी डीएसपी का तबादला करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। यह लिखित आदेश ऐसे समय में आया है जब डीजीपी के सेवानिवृत्त होने में सिर्फ 17 दिन शेष हैं। यानी 17 दिन पहले उनके अधिकार रिटायर कर दिए गए हैं।विज्ञापन
गृह विभाग के आदेश में डीजीपी को पिछले तीन माह में समय पूर्व सेवानिवृत्त होने वाले डीएसपी रैंक अफसरों की सूची देने को भी कहा गया है। आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा है कि गृह विभाग को सूचित किए बिना और अनुमति लिए बिना किसी डीएसपी का तबादला नहीं करेंगे। ऐसा करने के लिए उन्हें पहले गृह विभाग के पास प्रस्ताव भेजना होगा।
बता दें कि मौजूदा डीजीपी दिलबाग सिंह इसी माह 31 अक्तूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसकी अधिसूचना भी पहले ही जारी हो चुकी है। सेवानिवृत्ति से सिर्फ 17 दिन पहले गृह विभाग के इस आदेश से कयासों का बाजार गरम है।
पहले भी तबादला सूची पर उठे थे सवाल
बता दें कि कुछ महीने पहले गृह विभाग ने पुलिस महकमे के 30 से ज्यादा डीएसपी रैंक अफसरों के तबादले किए थे। तब भी काफी चर्चाएं हुईं। क्योंकि इसके पहले कभी भी प्रदेश में डीएसपी रैंक के तबादले गृह विभाग ने नहीं किए थे। डीजीपी के स्तर पर ही यह तबादले होते थे। हालांकि बाद में डीजीपी ने भी कुछ डीएसपी के तबादले किए थे। इस पर उप राज्यपाल प्रशासन ने तबादला सूची को रोक दिया था। बाद में कुछ संशोधनों के साथ यह तबादला आदेश जारी किया गया।
अफसरों ने नहीं उठाए फोन
हालांकि इस पर डीजीपी दिलबाग सिंह और गृह विभाग के सचिव आर के गोयल दोनों से बात करने का प्रयास किया गया। व्हाट्सएप पर मैसेज भी भेजे। लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। हम सिर्फ इस आदेश पर दोनों का पक्ष जानना चाहते थे। वह जब भी अपना पक्ष रखना चाहें, उसे प्राथमिकता से प्रकाशित किया जाएगा।
पहली बार लिखित आदेश
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब किसी डीजीपी स्तर के अधिकारी के सेवानिवृत्त होने से पहले उसके अधिकार सीमित कर दिए गए हों। सितंबर 2018 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसपी वैद की सेवानिवृत्ति से तीन माह पहले उस समय के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने उनके अधिकारों में कटौती कर दी थी। इसमें ऑपरेशनल फंड को मंजूरी देने का अधिकार भी शामिल था। इतना ही नहीं, वैद के कुछ अहम अधिकार उनसे लेकर उनके कनिष्ठ मुनीर खान को सौंप दिए गए थे। लेकिन, दिलबाग सिंह के मामले में यह पहली बार हुआ है जब अधिकारों में कटौती का लिखित आदेश जारी किया गया है।