कोविड उपचार के बाद जैविक कूडे़ को ठिकाने लगाने के लिए हिमाचल प्रदेश में अपर्याप्त प्रबंध हैं। इस बारे में हिमाचल प्रदेश की स्थिति कई अन्य प्रदेशों से अच्छी नहीं है। यह अध्ययन शारदा विश्वविद्यालय नोएडा की विशेषज्ञ पारुल सक्सेना, गलगोटियाज विश्वविद्यालय इंदिरा पी. प्रधान और कार्वी इनसाइट्स नई दिल्ली के दीपक कुमार के संयुक्त रूप से किया है। इसे एल्जेवियर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी कलेक्शन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। वर्ष 2016 में बने जैविक कचरे को ठिकाने लगाने के नियमों को भी ठीक से लागू नहीं करने की बात सामने आई है।
अध्ययन में विभिन्न राज्यों की एक तुलनात्मक तालिका है। इसके लिए जून 2020 और मई 2021 के आंकड़े लिए गए हैं। इसके अनुसार कोविड की उपचार प्रक्रिया से जून 2020 में उत्पन्न बायोमेडिकल कचरा 0.127 टन प्रतिदिन था, जो मई 2021 में 2.27 टन प्रतिदिन था। मई 2021 में हिमाचल में कुल जैविक कचरे में 40 फीसदी कोविड जनित था। सामान्य जैविक चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा (सीबीडब्ल्यूटीएफएस) केवल दो स्थानों पर ही मुहैया करवाया जा रहा था। अध्ययन में टिप्पणी है कि केवल दो सीबीडब्ल्यूटीएफएस हिमाचल प्रदेश के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हालांकि, कचरे को जलाने वाले इंसीनरेटर की क्षमता यहां पर्याप्त है। प्रदेश में गहरे में दबाने के गड्ढे यहां पर काफी बताए हैं।
ट्रैकिंग एप आंशिक रूप से अपनाई
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय के तहत कार्यरत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोविड-19 बायोमेडिकल वेस्ट ट्रैकिंग एप बनाई है। अध्ययन में इसे भी हिमाचल प्रदेश में आंशिक रूप से अपनाए जाने की बात उजागर हुई है।
सबसे ज्यादा जैविक कचरा पैदा करने वाले राज्यों में हिमाचल नहीं
अध्ययन में सबसे ज्यादा जैविक कूड़ा पैदा करने वाले नौ राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश चिह्नित किए हैं। कम जैविक कचरा पैदा करने वाले गोवा, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, दमन-दीयू, दादरा एवं हवेली, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम और अंडमान एवं निकाबोर द्वीप समूह हैं।