वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस सांसद डीके सुरेश की आलोचना की। दरअसल, बजट जारी होने के बाद सुरेश ने कहा कि केंद्र अनुदान में दक्षिणी राज्यों की अनदेखी कर रहा है, इस वजह से दक्षिणी राज्य अलग राष्ट्र की मांग के लिए मजबूर होंगे। सुरेश के इसी बयान का जवाब देते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि अनुदान जारी करने में वित्त आयोग की बात सुनी जाती है। केंद्र सरकार की भूमिका सिर्फ वित्त आयोग की बात माननी होती है। अगर वित्त आयुक्त मुझसे कहते हैं कि इन्हें इतना पैसा देना है, तो मेरे पास उनकी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं है। मैं उस पैसे को किसी और को नहीं दे सकती। अगर दक्षिणी राज्यों को ऐसी कोई परेशानी है तो उन्हें आयोग के साथ बैठक करनी चाहिए। उन्हें अपनी समस्या बतानी चाहिए।
वित्त मंत्री ने कहा कि मैं दक्षिणी राज्यों को एक साथ नहीं कर सकती क्योंकि दक्षिण के हर राज्यों की अपनी-अपनी शक्ति है। एक अलग राष्ट्र की मांग करना खतरनाक है। सुरेश एक जिम्मेदार संसद है, वे कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री के भाई हैं। दक्षिणी राज्यों के अलग देश की मांग करना खतरनाक है। मैं भी दक्षिणी राज्य से ही आती हूं। मैं ऐसे किसी व्यक्ति का साथ नहीं दे सकती, जो अलग राष्ट्र की मांग करते हैं।
फरवरी की शुरुआत में, ससंद में बजट- 2024 पेश होने के बाद पत्रकारों ने कांग्रेस सांसद डीके सुरेश से बात की थी। इस दौरान सुरेश ने केंद्र पर दक्षिणी राज्यों को फंड जारी न करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि केंद्र दक्षिण भारत के राज्यों को जीएसटी और प्रत्यक्ष करों का उचित हिस्सा नहीं दे पा रहा है। दक्षिणी राज्यों को अन्याय का सामना करना पड़ रहा है। दक्षिणी राज्यों से एकत्रित पैसा उत्तरी राज्यों को दिया जा रहा है। अगर ऐसा ही चलेगा तो हम एक अलग देश की मांग के लिए मजबूर हो जाएंगे। केंद्र हमसे चार लाख करोड़ रुपये अधिक ले रहा है। बदले में हमें जो मिल रहा है वह नगण्य है।
सुरेश के बयानों की भाजपा नेताओं ने आलोचना की थी। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने इसे देश को विभाजित करने की साजिश बताई थी। कांग्रेस पार्टी का इतिहास ही फूट डालो और राज करो रहा है। कांग्रेस उत्तर और दक्षिण को विभाजित करना चाहती है। उन्होंने आंकड़े जारी कर कहा कि कर हस्तांतरण मामले में कर्नाटक को यूपीए-2 के दौरान 53,396 करोड़ रुपये था। वहीं, 2014 से 19 के बीच 1.35 लाख करोड़ से अधिक कर हस्तांतरण किया गया।
2019-20 में 30,919 करोड़ रुपये (लगभग)
2020-21 में 21,694 करोड़ रुपये (लगभग)
2021-22 में 24,273 करोड़ रुपये (लगभग)
2022-23 में 29,783 करोड़ रुपये (लगभग)