केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि कोरोना के दौर ने दुनिया को तकनीक और बुनियादी ढांचा का महत्व सिखाया है। इस चुनौती ने संपूर्ण विश्व को विघटनकारी स्थिति में ला खड़ा किया था। इस कठिन दौर में भारत को संभालने में हमारे लोगों की सामूहिक इच्छा शक्ति, ज्ञान और शोध की शक्ति ने बड़ी भूमिका निभाई है।
‘उच्च शिक्षा – कोरोना के साथ, कोरोना के बाद’ विषय पर किया संबोधित
केन्द्रीय मंत्री प्रधान रविवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए), दिल्ली में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, भारतीय विश्वविद्यालय संघ एवं संरचना फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ‘उच्च शिक्षा – कोरोना के साथ, कोरोना के बाद’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज जब हम आजादी के 75वें साल का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो कोरोना संकट के अलावा औद्योगिक क्रांति 4.0 भी विश्व में तेजी से प्रसार कर रही है।
रोजगार के काबिल बनाना है नई शिक्षा नीति का उद्देश्य
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एनईपी-2020 भूत और वर्तमान के इन अनुभवों से सीखते हुए युवाओं को भविष्य की जरूरतों के लिए तैयार करने की बड़ी पहल है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री प्रधान ने कहा कि हमारा प्रयास ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) का निर्माण करना है, जिसमें भारत के युवाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उनको रोजगार के काबिल बनाया जा सके। हमारे युवाओं का ज्ञान और कौशल ही भारत में उत्पादन, निर्माण और अनुसंधान को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर भारत निर्माण को तेज रफ्तार देने वाला ईंधन बनेगा।
औपनिवेशिक ढांचे से हमें बाहर आना होगा
राष्ट्रीय परिसंवाद के विशिष्ट अतिथि आईजीएनसीए के अध्यक्ष पद्मश्री रामबहादुर राय ने कोराना काल में उच्च शिक्षा में आए बदलावों के विभिन्न आयामों पर एक व्यापक दृष्टि प्रस्तुत की। उन्होंने नई शिक्षा नीति में विद्यार्थी को विषय चुनने के विकल्प का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें अभी और सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि भारत में संस्कृत के साथ गणित और विज्ञान पढ़ने की छूट नहीं है, जबकि दुनिया के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में यह व्यवस्था है। राय ने इसका कारण कॉलोनाइजेशन को बताते हुए इससे बाहर निकलने और समय के अनुरूप स्वदेशी उपाय खोजने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि असल में यह छूट इसलिए नहीं है क्योंकि हमारा पूरा प्रशासन तंत्र आज भी औपनिवेशिक ढांचे में है। जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं इस नौकरशाही को एक जंग लगे जहाज की संज्ञा दी थी। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि नेहरू समेत तमाम प्रधानमंत्री आज भी उसी जंग लगे जहाज (नौकरशाही) से काम चला रहे हैं।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण है आवश्यक
स्वराज्य की स्थापना को शिक्षा पहला लक्ष्य बताते हुए उन्होंने कहा कि 1857 से 1947 के 90 सालों की लड़ाई की कल्पना में से जो शिक्षा निकली वह स्वराज्य की शिक्षा थी। उन्होंने स्वराज्य की शिक्षा के रास्ते की बाधाओं को पहचान कर उन्हें दूर करने का सुझाव दिया। उन्होंने चेताया कि शिक्षा में ही यदि सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रबल धारा नहीं चलती तो शिक्षा नीति धरी की धरी रह जाएगी और जो चुनौतियां हैं वह और विकराल हो जाएंगी।
न्यू नार्मल में जीना देशवासियों ने सीख लिया
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि कोरोना काल में देशवासियों ने न्यू नार्मल में जीना सीख लिया है। प्रारंभ में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा, कोरोना में उच्च शिक्षा एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन मात्र तीन महीने में 90 प्रतिशत शिक्षा ऑनलाइन हो गई। अब न्यू नार्मल को हम किस प्रकार देखेंगे यह समझना होगा।