बदलाव कर विपक्षी दलों को चकित करने की नीति अपनाती रही है। टिकटों के बंटवारे का निर्णय भी बिल्कुल अंतिम समय तक चलता है। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे बागी उम्मीदवार पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में न रहें। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि चुनाव से तीन-चार महीने पहले ही पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उम्मीदवारों के नाम पर मंथन करना शुरू कर दिया है।
16 अगस्त को पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर मंथन किया, जबकि इन राज्यों के चुनाव साल के अंत में होने हैं। भाजपा को अपनी रणनीति में इतना भारी बदलाव करने की जरूरत क्यों पड़ी है?
दरअसल, एक मायने में कहें तो भाजपा इस समय की सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद से लेकर लालकिले की प्राचीर तक से सत्ता में लगातार तीसरी बार आने की घोषणा कर चुके हैं। एनडीए को इंडिया से मुकाबला करना है जो 400 सीटों पर भाजपा सहयोगी दलों के मुकाबले केवल एक उम्मीदवार देकर मोदी को रोकने की हर संभव कोशिश करने की तैयारी में है। लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं जहां पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने लगभग क्लीन स्वीप कर दिया था।
पार्टी नेतृत्व को पता है कि इन राज्यों के चुनाव परिणामों का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। हालांकि, 2019 में लोकसभा चुनाव के पहले भी भाजपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव हारी थी, और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इन राज्यों में लगभग क्लीन स्वीप करते हुए सत्ता पर अपनी पकड़ बना ली। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैें कि इस बार की चुनौती इतनी आसान नहीं है। पूरा विपक्ष एकजुट है। इस बार यदि भाजपा इन राज्यों में चुनाव हारती है तो इससे इंडिया गठबंधन को बड़ी ताकत मिलेगी और इसे सीधे मोदी मैजिक के समाप्त होने की तरह से घोषित किया जाएगा। इसका सबसे बड़ा असर उन फ्लोटिंग वोटर्स पर पड़ सकता है जो अंतिम समय में हवा देखकर अपना मत निर्धारित करते हैं।
दरअसल, एनडीए और इंडिया गठबंधन को वोट शेयर को देखें तो दोनों गठबंधनों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। एनडीए बहुत मामूली अंतर से विपक्षी दलों से आगे है। ऐसे में यदि दो से तीन फीसदी वोटों का भी अंतर हो जाता है तो पूरा चुनाव परिणाम बदल सकता है। मंजे हुए चुनावी रणनीतिकार अमित शाह और उनकी टीम जानती है कि ऐसे में फ्लोटिंग वोटरों का दो से तीन फीसदी बदलाव उनकी पूरी रणनीति पर पानी फेर सकता है। यही कारण है कि इस बार विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा बहुत गंभीर है और हर हाल में इन चुनावों को जीतना चाहती है।
भाजपा इन सभी राज्यों में कड़ी चुनौती से गुजर रही है। बीच के कुछ समय को छोड़ दें तो मध्य प्रदेश में भाजपा दो दशकों से सत्ता में है। उसके खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी फैक्टर है। पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाजी भी भाजपा को कमजोर कर रही है। वहीं, कांग्रेस सत्ता में आने के लिए हर संभव दांव खेल रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे से पार्टी की आंतरिक कलह लगभग समाप्त हो गई है और कमलनाथ-दिग्विजय सिंह एक होकर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के नए-नए वादों ने भी मतदाताओं को आकर्षित किया है। ऐसे में मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपर हैंड पर है, जबकि भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
लगभग यही स्थिति राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी है। वहां भी भाजपा में आंतरिक कलह सतह पर है, जबकि यहां की कांग्रेस सरकारों ने अपना खजाना खोल दिया है। जनता को हर संभव वादा कर कांग्रेस अपने पाले में करने में जुटी है। जबकि स्थानीय भाजपा महंगाई जैसे केंद्रीय मुद्दों के कारण नुकसान हो रहा है। राजस्थान में आपसी गुटबाजी पार्टी पर भारी है तो छत्तीसगढ़ में पार्टी के पास कोई चेहरा नहीं है। ऐसे में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती है।
पहली बार ऐसा होगा
भाजपा ने इन सभी राज्यों में चार चरणों में तैयारी शुरू कर दी है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कमजोर सीटों पर प्रत्याशियों को अभी से घोषित कर उन्हें चुनाव के लिए पर्याप्त समय देने की योजना है जिससे वे अपनी जीत सुनिश्चित कर सकें। सीटों को चार श्रेणियों में बांटकर सबसे कमजोर सीटों पर सबसे पहले तैयारी शुरू की जाएगी। जबकि जिताऊ सीटों पर बाद में उम्मीदवार तय किए जाएंगे। अभी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीटों के लिए विचार किया गया है। जल्द ही पार्टी राजस्थान और तेलंगाना के लिए भी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक कर रणनीति तय कर सकती है।
लोकसभा का सेमीफाइनल
राजनीतिक विश्लेषक अभिनव कुमार ने अमर उजाला से कहा कि इस बार इन राज्यों का चुनाव सीधे लोकसभा के सेमीफाइनल की तरह देखा जाएगा। यदि कांग्रेस इन चुनावों में जीत हासिल करती है तो वह सीधे इसे मोदी की लोकप्रियता समाप्त होने की तरह प्रचारित करेगी और उसे इसका लोकसभा में भी लाभ मिलेगा। यही कारण है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस विधानसभा चुनाव को सीधे अपने हाथों में लेकर लड़ रहा है। उसे पता है कि इन राज्यों में हार का अर्थ 2024 की दावेदारी को कमजोर करान होगा। यही कारण है कि भाजपा अपनी रणनीति पर दुबारा विचार करने के लिए मजबूर हुई है।