सुप्रीम कोर्ट ने नीट-पीजी काउंसलिंग 2021 को हरी झंडी दे दी है। ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से मंजूरी मिल गई है। वहीं, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के लिए 10 फीसदी आरक्षण इस वर्ष प्रभावी रहेगा। कोर्ट ने इस वर्ष (2021-22) के लिए ईडब्लूएस के लिए आय मानदंड को जारी रखने के लिए अजय भूषण पांडे समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट के मुताबिक, इस साल पुराने नियमों के आधार पर ही एडमिशन दिए जाएंगे। हालांकि, भविष्य में इस कोटे को जारी रखा जाएगा या नहीं, इसका निर्णय सुप्रीम कोर्ट करेगा। मामले में अगली सुनवाई मार्च के दूसरे हफ्ते में की जाएगी।
ऑल इंडिया कोटे की सीटों के लिए नीट पीजी काउंसिलिंग 25 अक्टूबर से शुरू होनी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नीट पीजी काउंसलिंग स्थगित कर दी गई थी।
नीट यूजी और पीजी में आरक्षण का मुद्दा काफी लंबे वक्त से लंबित था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई को संबंधित केंद्रीय मंत्रियों को इस समस्या का समाधान निकालने का निर्देश दिया था। इसके बाद नीट यूजी और पीजी दाखिले में आरक्षण लागू करने के निर्देश दिए गए हैं।
काउंसलिंग में देरी होने पर क्या हुआ?
काउंसलिंग में देरी होने के कारण, पीजी मेडिकल छात्रों को प्रथम वर्ष में प्रवेश नहीं दिया जा सका, जिसका चिकित्सा कार्यबल पर व्यापक प्रभाव पड़ा क्योंकि प्रथम वर्ष पीजी रेजिडेंट डॉक्टरों की संख्या चिकित्सा कार्यबल का 33 फीसदी है। फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने नीट-पीजी काउंसलिंग 2021 के लिए EWS और OBC कोटा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
डॉक्टर्स
कितने छात्रों को मिलेगा फायदा
इस फैसले से हर साल एमबीबीएस में लगभग 1500 ओबीसी छात्रों और स्नातकोत्तर में 2500 ओबीसी छात्रों व एमबीबीएस में लगभग 550 ईडब्ल्यूएस छात्रों एवं स्नातकोत्तर में लगभग 1000 ईडब्ल्यूएस छात्रों को फायदा होगा। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि इस फैसले से करीब 5,550 विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा। सभी मेडिकल और डेंटल कोर्स इस आरक्षण के दायरे में आएंगे। नीट- पीजी एडमिशन की राह आसान होने से करीब 45 हजार डॉक्टरों की हेल्थकेयर वर्क-फोर्स में भर्ती होगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मेडिकल दाखिले और छात्रों पर असर होगा यह समझने के लिए हमने कानून और शिक्षा विशेषज्ञों से पूरे विषय को समझने की कोशिश की।
काउंसलिंग का रास्ता साफ
इस बारे में कानून विशेषज्ञ, सुप्रीम कोर्ट के वकील और ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक विराग गुप्ता विस्तार से बताते हैं। उनका कहना है ‘इस पूरे मामले में फैसला आने के बाद छात्रों को बहुत राहत मिलेगी और उनके एकेडमिक सेशन में जो और बिलंब होने का संशय था वो खत्म हो जाएगा। अब काउंसलिंग शुरू की जा सकती है, क्योंकि अब काउंसलिंग की राह साफ हो गई है। देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है और डॉक्टरों को लेकर यह फैसला अच्छा कदम है।
वे कहते हैं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और सितंबर में नोटिस जारी हुआ। अक्तूबर में सरकार ने कहा कि कोर्ट का फैसला आने तक काउंसलिंग नहीं कराएंगे। सरकार ने इस पर एक कमेटी बनाई थी। उस आधार पर कोर्ट का फैसला आया है। कोर्ट ने 10 फीसदी ईडब्लूएस कोटे को आरक्षण देने के बारे में पांडे कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला दिया है।
दो पहलू और हैं जिन पर चर्चा नहीं हुई
विराग गुप्ता कहते हैं मेडिकल कॉलेज में दाखिले से संबंधित दो पहलू और है जिस पर अभी चर्चा बाकी है। मसलन तमिलनाडु सरकार ने एक कानून बनाया है जिसके अनुसार मेडिकल में दाखिले के लिए नीट की अनिवार्यता खत्म कर दी है और कक्षा 12वीं के रिजल्ट पर ही दाखिले दिए जाएंगे। हालांकि राष्ट्रपति ने अभी इसे मंजूरी नहीं दी है, लेकिन निश्चित तौर पर इस पर विवाद आगे बढ़ेगा।
उनका मानना है संघ- राज्य संबंधों और ईडब्ल्यूएस की आय सीमा को लेकर अभी नए तरीके की बहस होगी। देश में सभी वर्गों का सही आंकड़ा क्या है और गरीबी और पिछड़ेपन का क्या पैमाना है सरकार के पास इसका सही आंकड़ा या तो है नहीं या उसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। इस पर भी विवाद हो सकता है। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से मेडिकल दाखिले से संबंधित तात्कालिक मुद्दों का समाधान हुआ है। फिलहाल इस मामले का पटाक्षेप हो गया है।
छात्रों का बहुत नुकसान हो रहा था
वहीं शिक्षा विशेषज्ञ दीपक गुप्ता का कहना है कि काउंसलिंग रुकने से छात्रों का बहुत नुकसान हो रहा था। छात्र बेहद दबाव में थे। अभी जिन छात्रों का मेडिकल में दाखिला होगा, उन पर और दबाव होगा, क्योंकि उनके पास सिलेबस पूरा करने के लिए कम समय रह गया है।
डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए भी सरकार उठाए कदम
दीपक गुप्ता कहते हैं, इस फैसले के बाद अब सरकार को रेजिडेंट डॉक्टरों की कमी की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। इसके लिए और मेडिकल कॉलेज खोले जाने और सीटों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। अभी मेडिकल की सीटें बहुत कम हैं। जिस तरह से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से देश में डॉक्टर्स तैयार नहीं हो रहे हैं।
उनका कहना है यदि सरकार तत्काल भी मेडिकल कॉलेज खोलने और सीटों की संख्या बढ़ाने पर फैसला करती है, तभी यह कमी रह जाएगी। कॉलेज खोलने के बाद भी डॉक्टरों की संख्या बढ़ने में कम से कम पांच साल और लगेगा। यह लंबी प्रक्रिया है। इसलिए सरकार को इस समस्या पर गंभीरता से गौर करने की जरूरत है।
क्या है मामला
केंद्र सरकार ने इस साल मेडिकल एडमिशन में ऑल इंडिया कोटे में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण और 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का निर्णय लिया था। नीट 2021 काउंसलिंग से ही केंद्र सरकार ने अपने फैसले को लागू करने की बात कही, जिसका छात्रों ने विरोध किया और इसके विरोध में छात्रों ने 29 जुलाई 2021 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलिंग प्रक्रिया पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक की इस मामले का कोई हल नहीं निकल जाता।
नीट पीजी काउंसलिंग में देरी की वजह से ही डॉक्टरों ने की थी हड़ताल
नीट पीजी काउंसलिंग 2021 में लगातार होने वाली देरी की वजह से ही हाल ही में देश भर में रेजिडेंट डॉक्टरों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। डॉक्टरों की हड़ताल को फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर असोसिएशन (फोर्डा) का समर्थन प्राप्त था। कई बड़े अस्पतालों में ओपीडी और इमरजेंसी स्वास्थ्य सेवाओं को बंद कर दिया गया था। डॉक्टरों का कहना था कि काउंसलिंग में देरी के कारण देश भर में डॉक्टरों और छात्रों पर दवाब बढ़ रहा है। कोरोना महामारी के कारण पहले से ही डॉक्टर अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं और काउंसलिंग में देरी के कारण उनपर काम का दवाब और बढ़ेगा। डॉक्टरों की मांग थी कि नीट पीजी काउंसलिंग की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरी की जाए।
डॉक्टरों से हड़ताल क्यों की थी
जिन डॉक्टरों ने अपनी एमबीबीएस की डिग्री और इंटर्नशिप पूरी कर ली है, उन्हें किसी विशेष विशेषज्ञता जैसे कि मेडिसिन या सर्जरी के लिए अध्ययन करने के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी-पीजी) की परीक्षा देनी थी। यह परीक्षा आमतौर पर जनवरी में होती है, लेकिन पिछले साल नवंबर में परीक्षा आयोजित करने वाले राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड ने इसे कोरोना महामारी की स्थिति को देखते हुए अगली सूचना तक स्थगित कर दिया।
बाद में यह परीक्षा इस साल अप्रैल में आयोजित की जानी था, लेकिन इसे सितंबर में आगे बढ़ा दिया गया था और आखिरकार यह परीक्षा हुई। हालांकि, पीजी छात्र जो अपने प्रशिक्षण के साथ-साथ जूनियर रेजिडेंट के रूप में काम करते हैं, उनके लिए परामर्श और प्रवेश प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकी क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शुरू किए गए नए कोटा के संबंध में मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। इस देरी की वजह से लगभग 45,000 मेडिकल छात्रों को उनकी एक वर्ष की शिक्षा का खर्च उठाना पड़ा है। वे अभी भी कार्यबल में शामिल होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।