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Friday, May 17, 2024

यूपी चुनाव 2022: ध्रुवीकरण में बंट गए हिंदू एकजुट हो गए मुसलमान !

पहले चरण में मुस्लिमों की लम्बी क़तार , जम कर मतदान , क्या हैं संकेत ?

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गया है । बाक़ी छह चरणों की तैयारीयां ज़ोर-शोर से है । रैलियों में ज़ुबानी जंग ही नहीं सोशल मीडिया पर भाजपा की लहर के क़िस्से भी आम है । इन क़िस्सों में ध्रुवीकरण के नाम पर हिन्दूवादी , हिन्दु, हिंदुत्व के चर्चे यैसे किए जा रहे हैं मानो ये शब्द आपसे जुड़ते हैं तो आप अछूते हो जाते हैं । दिमाग़ों में ये भरा जा रहा है हिंदुत्व मतलब गाली और जघन्य अपराध । रणनीति के तहद हिन्दुत्व की जाल बुनी जा रही है , ध्रुवीकरण का आरोप लगा कर आत्मबोध हीनता का यैसा मीठा ज़हर पिलाया जा रहा है कि आप मतदान के नैतिक कर्तव्य को भी नज़र अन्दाज़ कर जा रहे है और वो झुंड के झुंड निकल कर अपना मिशन कामयाब कर रहे है । चलिए इसी रणनीति के तहद पहले चरण के कुछ 60 फ़ीसदी से ज़्यादा हुए मतदान को चरणबद्ध तरीक़े से समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर हिंदुत्व और हिजाब की ये पॉलिटिकल इंजीनियरिंग कैसे सोशल इंजीनियरिंग का बेहतरीन मैनेजमेंट टूल बन सकता है । आप मतदान का प्रयोग नहीं कर के घरों में बैठ कर सेक्युलर चोला ओढ़े हैं और लिबरल गैंग सोशल सेपेरटिस्ट बन कर आपको हिन्दु-हिंदुत्व, जात-पात के नाम पर विभाजित कर रहे हैं।

पहले चरण मे 11 जिलों के 58 विधान सभा क्षेत्रों में मतदान हुआ । पहले चरण में औसत मतदान 60.17 प्रतिशत रहा। यदि मतदान प्रतिशत को आधार माना जाए, तो आने वाले चरणों के मतदान रुझान और अंततः चुनाव के परिणाम को समझना अब किसी के लिए भी रॉकेट साइंस नहीं रह गया है । मतदान प्रतिशत और बूथों पर मुस्लिम मतदाताओं के क़तार संकेत दे रहे हैं दिल्ली और पश्चिम बंगाल के चुनाव याद करो ।पहले नज़र डालते है पहले चरण के मतदान पर्सेंटेज पर :-

चुनाव आयोग के मुताबिक़
कैराना 74.00%
थाना भवन 71.31%
पुरकाजी 66.68%
शामली 69.48%
बुढ़ाना 68.20%
चरथावल 65.85%
मुजफ्फरनगर 68.30%
खतौली 71.34%
मीरापुर 69.49%
सिवालखास 71.56%
सरधना 71.84%
हस्तिनापुर 67.91%
किठौर 71.70%
मेरठ कैंट 58.98
मेरठ 64.70%
मेरठ साउथ 63.15%
छपरौली 62.95
बरौत 64.29%
बागपत 65.93%
लोनी 61.34%
मुरादनगर 61.48%
साहिबाबाद 49.20%
गाजियाबाद 54.27%
मोदीनगर 64.76%
धौलाना 67.70%
हापुड़ 65.54%
गढ़मुक्तेश्वर 67.30%
*नोएडा 56.73%
दादरी 60.13%
जेवर 65.46%
सिकंदराबाद 67.14%
बुलंदशहर 64.31%
स्याना 62.56%
अनूपशहर 63.59%
डिबाई 62.94%
शिकारपुर 65.24%
खुर्जा 65.51%
बरौली 65.91%
अतरौली 60.80%
छर्रा 63.54%
कोल 62.97%
अलीगढ़ 66.48%
इगलास 64.97%
छाता 67.78%
मांट 66.82%
गोवर्धन 66.92%
मथुरा 59.70%
बलदेव 66.71%
एत्मादपुर 68.13%
आगरा कैंट 59.14%
आगरा साउथ 62.27%
आगरा नॉर्थ 60.42%
आगरा ग्रामीण 63.71
फतेहपुर सीकरी 68.45%
खैरागढ़ 65.10%
फतेहाबाद 71.52%
बाह 61.40%
खैर 62.04%
टोटल :- 60.17%

ये आँकड़े बता रहे हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर के कैराना , शामली जैसे सीट बीजेपी के लिए सबसे ज़्यादा चिंता के विषय थे वोट प्रतिशत वहीं सबसे खड़ा है मतलब मुक़ाबला काँटे की है । राह आसान अगर भाजपा के लिए नहीं है तो इन जगहों पर विपक्ष के रास्ते भी काँटों भरे हैं ।

मगर सबसे ज़्यादा चौंकाने वाले मतदान प्रतिशत उन जगहों के रहे जहाँ सबसे खड़ा भाजपा समर्थक और पढ़े -लिखे लोग रहे । नोएडा , ग़ाज़ियाबाद, मथुरा , आगरा कैंट ये कुछ यैसे क्षेत्र हैं जो वोटिंग पर्सेंटेज के लिहाज़ से निराशाजनक रहे । वोटिंग के ये पर्सेंटेज बता रहे हैं कि जितना तथाकथित पढ़ा-लिखा जागरूक हिन्दू कर्तव्य निर्वाहन को लेकर उतना ही उदासीन रवैया या यूँ कहें कि जिस सरकार को वो अपनी सरकार चुनना चाहते थे , हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण की यैसी सोची समझी साजिश रची गयी कि हिन्दू आपस में बंट गए । पहले चरण के मतदान से भी यही साफ़ संकेत मिल रहे हैं कि शायद हिन्दू तथाकथित लिबरल गैंग के साज़िश के शिकार हो गए । वैसे वो चाहते भी यही थे कि उनके बुने हुए जाल में शहरी क्षेत्र के अर्बन हिन्दू फंसे और कम से कम बाहर निकलें । अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग न के बराबर करें । अर्बन हिंदू , हिंदुत्व के आवरण में नैतिकता की पाठशाला खोलेंने में व्यस्त रहें और हिजाब टूलकिट के ज़रिये वो एकजुट हो कर एकमुश्त वोट डालकर अपने मिशन को कामयाब करने में सफल रहे ।

मीडिया रिपोर्ट्स को देखते हुए आगाह करना चाहती हूँ ,ये जाल है फँसिएगा मत । ये सोशल मीडिया वाली लहर और मीडिया सर्वे को याद कीजिए दिल्ली और पश्चिम बंगाल के चुनाव के समय भी ये कुछ यैसे ही शोर मचा रहे थे ।तमाम आँकलन के वावजूद शाहीन बाग़ का नतीजा , दिल्ली में केजरीवाल की सरकार और किसान आंदोलन ने पश्चिम बंगाल में दीदी का किया उद्धार । इन दोनो राज्यों के चुनाव में यैसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि तमाम लहर के बावज़ूद हिन्दू वोटर्स घर से नहीं निकले थे । 2022 के इलेक्शन में टूलकिट गैंग अब हिजाब वाले नए टूलकिट के साथ यूपी का बंटाधार करने की तैयारी में एकजुट हो गयी है अगर आने वाले चरणों के मतदान में हिन्दू अपनी एकजुटता नहीं दिखाएँगे तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि यूपी चुनाव का परिणाम दिल्ली और पश्चिम बंगाल के चुनाव के जैसा ही हो सकता है । मीडिया रिपोर्ट और सोशल मीडिया की लहर से चुनावी नतीजों का कोई लेना देना नहीं होता है । चुनाव के परिणाम का सीधा सम्बन्ध आपके वोट से है । वर्ना आप घरों में बैठ कर “जो राम को लाए हैं हम उनको लाएँगे के सपने देखेंगे “ और कब हिंदुत्व की कब्र खुद जाएगी आपको पता भी नहीं चलेगा । याद कीजिए पश्चिम बंगाल में जीत के बाद जश्न के नाम पर हिंदुओं को कैसी सबक़ सिखाई गयी थी । राजनीति का क्रूर खेला जनता के साथ खेला गया और हम में से ज़्यादातर मूक दर्शक बन तमाशा देखते रहे ।

यैसे में ये सवाल कौंध रहा है कि क्या फिर वही होगा ? निष्क्रियता पर एकजुटता भारी पड़ेगी ? कहीं यैसा ना हो कि नतीजों के बाद आप हाथ मलते रह जाएँ और दिल कहे “अब पछतात का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत ।” अभी इस खेल का बड़ा हिस्सा बचा हुआ है । आने वाली तारीख़ों को “कर मैदान फ़तह रे बंदया” की ज़बरदस्त जोश के साथ घर से बाहर निकलिए और उत्तरप्रदेश में अपनी सुरक्षा वाली जीत सुनिश्चहित कीजिए , आख़िर बनाना , बिगाड़ना ये आपके हाथ में ही तो है । 2022 के राजनीति के फुटबॉल मैच में लाइन से बाहर निकल कर दनादन गोल मारिए वर्ना कहीं यैसा ना हो जाए कि आप लाइन के अंदर डिफ़ेन्सिव यानि बचाव मोड में खेलते रहें और वो खेला कर के चले जाएँ ।

भले ही 2017 के चुनाव के मतदान के औसत की तुलना में 10 फ़रवरी 2022 को हुए पहले चरण के चुनाव में मतदान प्रतिशत. 3 फीसदी कम रही लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण है कि सभी जिलों में मुस्लिम मतदाता भारी संख्या में मतदान केंद्रों पर पहुंचे और मतदान समाप्त होने तक लाइन में बने रहे। यह उत्साह मुस्लिम महिलाओं, मतदान की आयु वाली लड़कियों और बुजुर्गों में ग्रामीण व शहरी दोनो क्षेत्रों में एक समान देखा गया।

यदि सम्पूर्ण मतदान की प्रवृत्ति देखी जाए, तो पहले चरण में शहरी क्षेत्रों में मतदान अपेक्षाकृत कम ही रहा । हिन्दू वोटर ना के बराबर निकले । गाजियाबाद जैसे शहर में मतदान प्रतिशत 54.77 प्रतिशत था, जो सभी जिलों में सबसे कम था। अन्य शहरी क्षेत्रों गौतम बुद्ध नगर या नोएडा में 56.73 प्रतिशत, आगरा में 60.33 प्रतिशत, अलीगढ़ में 66.48 प्रतिशत और मेरठ में 60.91 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। लेकिन शामली , कैराना , खतौली , थाना भवन , सिवालखास ने जम कर मतदान का प्रयोग किया जिसमें हिंदू भी बड़ी संख्या में निकले ।

मुस्लिम मतदाताओं का बड़ी संख्या में मतदान करना और मतदान के लिए अपने समुदाय के लोगों को लगातार प्रेरित करना और मतदान केंद्र तक आना उनमे व्याप्त राजनीतिक समझ का एक संकेत भी है और यैसे में 80 फीसदी को 20 फीसदी से सीख लेनी चाहिए कि अपने तरह के समाज और वातावरण के लिए एकजुटता और मुखर होना कितना जरूरी है । वो टैक्टिकल बोटिंग में विश्वास रखते हैं यानि धर्म के आधार पर एकजुट हो कर एकमुश्त वोट करते हैं और हिन्दू समरसता में बह कर गंगा जमुनी की परम्परा निभाते हैं । अल्पसंख्यक वर्ग अपने अधिकारों, हिस्सेदारी और भागीदारी के प्रति जागरूक है और उनके लिए किस तरह की सरकार होनी चाहिए इस पर उनके समाज में एक राय बन ही जाती है ।

पश्चिमी जिलों में कानून व्यवस्था और अपराध भी राजनीतिक दलों के प्रचार में एक बड़ा मुद्दा था। शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर चलाए गए अपराध नियंत्रण अभियान से कुख्यात अपराधियों पर अंकुश लगा, लेकिन इससे मतदान पर क्या प्रभाव पड़ा यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। उल्लेखनीय है कि शामली जिले के कैराना विधान सभा क्षेत्र में सर्वाधिक मतदान प्रतिशत (75 प्रतिशत) दर्ज किया गया। कैराना में अपराधियों के आतंक से लोगों का पलायन, अपराधियों के खिलाफ अभियान, और अंततः स्थानीय निवासियों का वापस आना लंबे समय तक चर्चा में था। पिछली बार यहां विधानसभा और आम चुनाव दोनों में मतदान प्रतिशत करीब 60% रही लेकिन 2022 के चुनाव में रिकॉर्ड 75 फीसदी वोटिंग हुयी है।

यह भी माना जा रहा है कि वर्तमान सरकार की कल्याणकारी योजनाओं, कोविड काल में किये गए राहत और मुफ़्त राशन वितरण के अभियान से BPL मतदाताओं पर ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं के रुख पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा । लेकिन वोटिंग परसेंटेज को देखते हुए और मतदान की क़तार को देखते हुए ये समझ पाना की सरकार की तमाम नीतियाँ कितनी प्रभावशाली रहीं ये कहना भी अभी थोड़ा मुश्किल है ।

विपक्षी दलों ने सोशल इंजिनीयरिंग का इस्तेमाल करते हुए धर्म की राजनीति को हवा में घोला और जातिगत आधार पर प्रत्याशी खड़े किए हैं । अधिकतर प्रत्याशियों का चयन जाति व संप्रदाय के आधार पर किया गया है । विपक्ष की जोड़ और तोड़ की इस राजनीति में मुस्लिम समाज का ज़बरदस्त जुड़ाव हुआ है ।

राज्य के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की सक्रियता इस क्षेत्र के चुनाव प्रचार में लगातार देखी गई थी, और भाजपा की ओर से कई बड़े नेता, जैसे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा, इस क्षेत्र में लगभग हर जिले में प्रचार के लिए गए थे। अमित शाह ने जाट समुदाय के संगठनों के साथ अलग से भी संवाद किया था। लेकिन सपा-रालोद गठबंधन की ओर से पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव व रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ही चुनाव प्रचार का नेतृत्व कर रहे थे।

यह माना जाता है कि पहले चरण में मतदान से निकले संकेत आने वाले चरणों को कुछ सीमा तक प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि हर चरण में शामिल क्षेत्रों के जातीय व अन्य समीकरण अलग अलग होते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के बीच मतदान की प्रवृत्ति चर्चा का विषय तो बन ही जाती है। देखना यह है कि क्या मुस्लिम समुदाय द्वारा इस प्रकार के उद्देश्य-पूर्ण मतदान की प्रवृत्ति आगे के चरणों में भी होती है?
बहरहाल 10 मार्च को स्थिति साफ़ हो जाएगी और तब ये भी समझ में आ जाएगा की 2022 के चुनाव में जीत जयश्री राम की हुयी या हिजाब टूलकिट सब पर भारी रहा ।

anita
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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