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Sunday, May 19, 2024

टीएमसी का आरोप, प्लासी की लड़ाई में अमृता रॉय के परिवार ने अंग्रेजों का दिया था साथ

लोकसभा चुनाव में भाजपा की नजर पश्चिम बंगाल में भगवा झंडा लहराने पर है। रविवार को भाजपा ने आम चुनाव को लेकर अपने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची जारी की। इसमें पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से भाजपा ने शाही परिवार की राजमाता अमृता रॉय को चुनावी मैदान में उतारा है। रॉय का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की कद्दावर नेता और लोकसभा से निलंबित सांसद महुआ मोइत्रा से होना है। ऐसे में टीएमसी और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। टीएमसी ने अमृता रॉय पर अग्रेजों का साथ देने का आरोप लगाया है। वहीं रॉय  ने भी पलटवार किया। 

शाही परिवार ने ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी: टीएमसी
टीएमसी का आरोप है कि भाजपा ने कृष्णानगर सीट से जिन राजमाता अमृता रॉय को चुनावी मैदान में उतारा है, उनके परिवार ने अंग्रेजों का साथ दिया था। टीएमसी नेता कुणाल घोष ने कहा कि जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए थे, तब कृष्णानगर के राजा कृष्ण चंद्र रॉय ने ब्रिटिश सेनाओं की मदद की थी। उन्होंने आगे कहा कि इतिहास से पता चलता है कि अंग्रेजों के साथ जब सिराजुद्दौला लड़ाई कर रहे थे तब कृष्णानगर के शाही परिवार ने ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी।

इतना ही नहीं टीएमसी नेता ने यह भी आरोप लगाया, ‘महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार सावरकर की पार्टी ने अंग्रेजों की मदद करने वाले परिवार के एक शख्स को चुना है। जबकि महुआ मोइत्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रही हैं।’

2019 में जीती थीं महुआ मोइत्रा
गौरतलब है, महुआ के खिलाफ लड़ाई कितना कठिन महुआ मोइत्रा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कृष्णानगर सीट से 6,14,872 वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। जबकि भाजपा के कल्याण चौबे को 5,51,654 वोट मिले थे। मोइत्रा ने 63,218 के भारी अंतर से जीत हासिल की थी। हालांकि, पिछले साल कैश फॉर क्वेरी मामले में मोइत्रा की संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। 

अमृता रॉय ने दिया जवाब
इस बीच अमृता रॉय ने तृणमूल कांग्रेस के आरोपों को गलत बताया। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हर बंगाली और भारतीय इस बात से सहमत होंगे कि मेरे परिवार के बारे में जो कुछ भी बताया जा रहा है, वह पूरी तरह झूठ है। आरोप है कि महाराजा कृष्ण चंद्र रॉय ने अंग्रेजों का पक्ष लिया था। उन्होंने ऐसा क्यों किया? उन्होंने ऐसा सिराजुद्दौला की प्रताड़ना की वजह से किया। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो क्या हिंदू धर्म बच पाता? क्या सनातन धर्म बच पाता? नहीं। अगर ऐसा है तो हम ये क्यों नहीं कह सकते कि महाराजा ने हमें सांप्रदायिकता विरोधी हमले से बचाया।’

क्या है प्लासी का युद्ध?
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नबाव सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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