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Saturday, May 4, 2024

किसान आंदोलन में ही लिखी गई थी भाकियू में एक और फूट की पटकथा

कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के दौरान ही भाकियू में एक और बड़ी फूट की पटकथा लिखी जाने लगी थी। दरअसल, खुद को संगठन से अलग करने वाले पदाधिकारियों का मानना था कि भाकियू में अधिकारों का पूरी तरह केंद्रीकरण हो गया है। बाकी पदाधिकारियों की अनदेखी की जा रही है। भले ही नरेश टिकैत भाकियू के अध्यक्ष हैं पर सारे फैसले प्रवक्ता राकेश टिकैत लेते हैं। पदाधिकारियों को भी अलग-थलग रखा गया है। हालांकि नरेश व राकेश दोनों आरोपों को गलत बताते हैं और कहते हैं कि भाकियू सबकी है

भाकियू संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत 2011 में दिवंगत हुए थे। इससे पहले भी और बाद में भी कई बार भाकियू टूटी। इससे भाकियू- भानू, लोकशक्ति, महाशक्ति, सौराज, अंबावत, असली, अवध, तोमर समेत कई संगठन बने। पर इस बार की फूट से भाकियू को बड़ा झटका लगा है। इस बार एक साथ काफी संख्या में 25-30 साल पुराने दिग्गजों ने यूनियन को अलविदा कहते हुए नया संगठन बना लिया है।

दावा है कि वास्तव में भाकियू को महेंद्र टिकैत ने अराजनैतिक बनाया था पर अब यह राजनीतिक हो गई है। अहम बात यह है कि जितने भी अहम पदाधिकारी नए संगठन में गए हैं वे सब अपने-अपने क्षेत्र में भाकियू की रीढ़ रहे हैं। यह बात राकेश टिकैत खुद स्वीकारते हैं। चाहे लखनऊ में हरिनाम सिंह वर्मा हों या फतेहपुर के राजेश चौहान। अलीगढ़ के अनिल तालान हों या स्याना के मांगेराम त्यागी। सभी का संगठन में अहम रोल था। धर्मेंद्र मलिक तो 25 साल से यूनियन से जुड़े थे।

बीते विधानसभा चुनाव के दौरान राकेश टिकैत ने कहा था कि ईवीएम की भी रखवाली करनी होगी। यह बात यूनियन के एक गुट को रास नहीं आई थी। तब भी दबी जुबान में यह कहा गया था कि यूनियन को राजनीति नहीं करनी चाहिए। आरोप लगा था कि भाकियू सपा-रालोद गठबंधन को सपोर्ट कर रही है।

किसान आंदोलन के दौरान भाकियू के विभिन्न पदाधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गई थीं। नए संगठन के पदाधिकारियों का कहना है उन सभी ने अपने दायित्व का निर्वहन भली-भांति किया पर शक की नजर से उन्हें देखा गया। जब संगठन है तो आपको जिम्मेदारियां बांटकर विश्वास करना ही पड़ता है। सारा काम एक व्यक्ति नहीं देख सकता है। यदि एक ही व्यक्ति में सारी शक्तियां देनी हैं तो बाकी का क्या औचित्य? उनका कहना है कि लोकतंत्र तो भाकियू में खत्म ही हो गया है।

anita
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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