महाराष्ट्र में आज शरद पवार के चाणक्य वाली राजनीति के ताबूत में आखिरी कील ठोका गया तो इसकी पटकथा उसी दिन लिख दी गयी थी, जिस दिन शरद पवार ने मोदी को वचन देकर वचनभंग किया था ।
शरद पवार के घर मोदी जी हमेशा से जाते रहे, बारामती में सभा के दौरान उनके बुलाने पर प्रधानमंत्री रहते हुए उनके घर भी गए थे । सहकारिता आंदोलन के मुखिया के तौर पर उनके उपलब्धि को स्वीकार करके मोदी सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण भी दिया । लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के द्वारा धोखा दिए जाने के बाद जब प्रधानमंत्री ने शरद पवार से सहयोग माँगा था तब शरद पवार को उसी वक़्त मना कर देना चाहिए था । लेकिन इतने बड़े आदमी के घर पर (प्रधानमंत्री आवास में ) बैठकर शरद पवार ने झूठा वचन दे दिया । उस वचन के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी ने देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री की शपथ लेने के लिए अजीत पवार के साथ भेज दिया और स्वयं की तरफ़ से सरकार बनने पर बधाई भी दे दी । लेकिन एक दिन बाद ही अचानक शरद पवार का मन बदल गया था और उन्होंने मोदी को दिए हुए वचन को न सिर्फ भंग किया था बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में झूठ भी बोला था, क्योंकि उन्हें लगा की भाजपा के साथ सत्ता में जाने पर उन्हें वह फ़्री हैंड नहीं मिलेगा जो शिवसेना के साथ मिलेगा । इसलिए वो उद्धव से बातचीत कर अपने वादे से पलट गए ।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े व्यक्ति के सामने किया गया वादा केवल दो दिन में बिना कारण बताए तोड़ दिया था शरद पवार ने । यदि झूठ बोलने को राजनीति कहते हैं तो यह शरद पवार का राजनीति नहीं है था बल्कि अपना कब्र खुद खोदना था और सदा सदा के लिए अपनी क्रेडिबिलिटी समाप्त करना था ।
प्रधानमंत्री मोदी ने तभी से इनको टार्गेट पर लिया हुआ था क्योंकि मोदी सूद समेत लौटाने में माहिर खिलाड़ी हैं । एक के बाद एक इनके दोनों भ्रष्ट हाथ नवाब मलिक और अनिल देशमुख को जेल भेज दिया गया । भ्रष्टाचार की जांच जब इनके परिवार तक पहुंची तब हैरान परेशान शरद पवार दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिलने के लिए तीन चक्कर लगा चुके थे पर प्रधानमंत्री मोदी ने इनको कोई भाव नहीं दिया । जो प्रधानमंत्री मोदी, शरद पवार को इतना सम्मान देते थे कि वो उनका पैर भी छूते थे । उस मोदी ने इस व्यक्ति को अपने ऑफ़िस में घुसने तक नही दिया । विपक्ष द्वारा शरद पवार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया पर डर के मारे यह भाग खड़े हुए, हिम्मत नहीं हो रही थी किसी और प्रकार से मोदी का सामना करने की।
शरद पवार को यह नहीं भूलना चाहिए था, ख़ासकर उस व्यक्ति से वादा करके अकारण नहीं मुकरना चाहिए था जो अपने एक-एक दुश्मन को याद रखता है और बदले लेता है । ऐसे में यदि ऐसा व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री हो तो गलती से भी यह सब नही करना चाहिए था । इससे पूर्व मोदी द्वारा शिंदे का मुख्यमंत्री बनाना जितना बड़ा सेटबैक उद्धव के लिए था, उससे बड़ा सेटबैक पवार के लिए था । क्योंकि मोदी ने एक मराठा शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर शरद पवार समरथ क्षत्रप का ताज भी छीन लिया था । यही कारण है कि मराठी कुणबियों की राजनीति करके अपना स्थान सुरक्षित करने वाले शरद पवार अपने दम पर मुख्यमंत्री बने कुनबी मराठी एकनाथ शिंदे का विरोध खुल कर नही कर पाते ।
जब शरद पवार की पार्टी टूटी तो उसका अंदाजा शरद पवार को भी था पर उनका दुर्भाग्य यह है की उनके पास इसका उपाय नहीं था । प्रधानमंत्री ज़िद्दी हैं, वह तीन बार में नहीं पिघला तो उनका आगे भी पिघलना मुश्किल ही है । शरद पवार न अगले 2 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता में आने वाले हैं और न ही 2024 में प्रधानमंत्री बदलने वाले हैं । बुढ़ापे में उन्हें अपना राजपाट नष्ट होते हुए देखना ही था । यह एक सबक़ भी है नेताओं के लिए की यदि कोई व्यक्ति आपके व्यक्तिगत सम्बंध के आधार पर आप पर भरोसा जता रहा है तो अकारण उसको धोखा मत दीजिए वरना आज नहीं तो कल जब आपको उसका हिसाब देना होगा तो बहुत समस्या खड़ी हो जाएगी।
बहरहाल शरद पवार को जो लोग चाणक्य कहते हैं वह उन्हें धूर्त कहें तो ज़्यादा उचित संज्ञा होगी और हाँ अबतक मराठा क्षत्रप के नाम पर जो वोट शरद पवार पाते रहते थे, शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनका मराठा वर्चस्व भी समाप्ति की ओर अग्रसर था । पार्टी की टूट के बाद जो बचा खुचा था आज पार्टी का सिम्बल भी हाथ से निकल गया क्योंकि भारतीय चुनाव आयोग ने अजीत पवार के गुट वाली पार्टी को ही असली एनसीपी माना और उसे ही पार्टी का सिम्बल भी सौंप दिया । 2024 के चुनाव से पहले आज शरद पवार के चाणक्य वाली राजनीति के ताबूत में आखिरी कील ठोक दिया गया ।
आज जो कुछ भी हुआ, मुझे इसकी आहट उसी दिन सुनाई दे गई थी, जिस दिन शरद पवार को मोदी को दिए गए वचन को भंग करते हुए देखा था । उसके बाद जो घटनाक्रम होते गए उसे देखते हुए यह समझना कठिन नही था कि शरद पवार का राज पाट जल्द ही नष्ट होने वाला हैं .