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Friday, April 26, 2024

तेजस की वैश्विक स्तर पर बढ़ती ‘लोकप्रियता और मांग’ ने भारतीय रक्षा उत्पादन की बढ़ती साख व क्षमता का एक बेहतर नमूना पेश किया

स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस की वैश्विक स्तर पर बढ़ती ‘लोकप्रियता और मांग’ ने भारतीय रक्षा उत्पादन की बढ़ती साख व क्षमता का एक बेहतर नमूना पेश किया है। यह हाल के वर्षों में भारत में हुए बड़े रक्षा सुधारों की ही एक परिणति है। बीते वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए रक्षा क्षेत्र में किए जा रहे बड़े सुधारों और बदलावों ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को और सशक्त किया है। इसका मकसद सेना, नौसेना व वायुसेना के लिए स्वदेशी तकनीकी को बढ़ावा देना था। आज उसके सुखद परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं। रक्षा क्षेत्र एक ऐसा स्ट्रेटेजिक सेक्टर है, जिस पर सरकार का विशेष ध्यान रहता है, लेकिन भारतीय रक्षा क्षेत्र की विदेशी उपकरणों और आयात पर अधिक निर्भरता हमेशा से नीतिगत स्तर पर एक चिंता का विषय रही है।

दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट होने के बावजूद भारत अपने 60 फीसदी हथियार विदेशी बाजारों से खरीदता रहा है। जून, 2017 में सरकार ने रक्षा उपकरण की खरीद से संबंधित मौलिक समस्याओं को समझते हुए धीरेंद्र सिंह समिति द्वारा दाखिल 2015 की रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर ‘सामरिक साझेदारी का मॉडल’ विकसित किया। इस तरीके के तहत, निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियों को उनकी प्रमाणित क्षमता के आधार पर ‘सिस्टम्स इंटीग्रेटर्स’ घोषित किया जाएगा और वे रक्षा से संबंधित मजबूत औद्योगिक बुनियाद रखने के लक्ष्य के साथ विदेशी कंपनियों के साथ करार करेंगी। ये कंपनियां आर ऐंड डी (अनुसंधान एवं विकास) तथा उत्पादन सुविधाओं का आधार तैयार करने के लिए दीर्घकालिक निवेश करेंगी। इस नीति ने सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दिया और साथ ही स्वदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और छोटे उद्योगों की मदद से देश में रक्षा उपकरण उत्पादन का माहौल बनाने में सहयोग किया।

इन बदलावों का ही परिणाम था कि करीब नौ साल के इंतजार के बाद भारतीय सेना को बुलेट-प्रूफ जैकेट भी मिलनी शुरू हुईं। वर्ष 2018 में 1.86 लाख जैकेटों के लिए सरकार ने एक भारतीय निजी कंपनी एसएमपीपी प्राइवेट लिमिटेड से 639 करोड़ रुपये का करार किया था। दो दशकों के इंतजार के बाद अब सेना को बुलेटप्रूफ हेलमेट भी मिलने लगे हैं। यह हेलमेट भी भारत में ही कानपुर की एक कंपनी बना रही है। एक भारतीय आईआईटी इंजीनियर द्वारा शुरू की गई एसएमपीपी कंपनी आज सौ करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर कर रही है, साथ ही इसके द्वारा निर्मित रक्षा सुरक्षा उपकरण भारत के अलावा जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और इस्राइल को भी निर्यात किए जा रहे हैं।

डेफ-एक्सपो, 2018 के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने हथियार प्रणालियों के निर्माण में स्वदेशीकरण की तत्काल आवश्यकता और भारत को रक्षा उद्योग के केंद्र में तब्दील करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई थी। सरकार के इस कदम से भारतीय कंपनियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, आपूर्ति शृंखला स्थापित करने और रक्षा उत्पादन क्षेत्र का घरेलू बुनियादी ढांचा तैयार करने में मदद मिली। रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए 101 रक्षा वस्तुओं की एक सूची अगस्त, 2020 में अधिसूचित की गई थी। दिसंबर, 2022 से 172 प्रणालियों और घटकों के आयात को रोक दिया जाएगा, जबकि 89 वस्तुओं के एक और बैच पर प्रतिबंध दिसंबर, 2023 से लागू होगा। भारत के रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2021-22 में रक्षा मंत्रालय ने देशी कंपनियों से 64 फीसदी खरीद का लक्ष्य तय किया था, जिसे इसने न सिर्फ पूरा किया है, बल्कि उससे ज्यादा खरीद की है।

आत्मनिर्भरता की इस पहल से हर साल करीब 3,000 करोड़ रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत होगी। तेजस विमान की पचास फीसदी मशीनरी भारत में ही तैयार हुई है। इस विमान में मॉडर्न टेक्नोलॉजी के तहत इस्राइल के ईएल/एम-2052 रडार को लगाया गया है। तेजस एक साथ दस लक्ष्यों को ट्रैक कर उन पर निशाना साधने में सक्षम है। आज भारत रक्षा क्षेत्र में एक नया इको सिस्टम बनाने के लिए प्रयासरत है। मेक इन इंडिया प्रोग्राम को बढ़ावा देते हुए भारत अब ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ की ओर अग्रसर है। अब हम रक्षा आयातक होने के बजाय एक बड़े रक्षा निर्यातक देश बनने की दिशा में अग्रसर हैं।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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