सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी और राज्य सरकारों के दावों को ‘धुआं धुआं’ करते हुए जमकर आतिशबाजी के बाद दिल्ली और पड़ोसी राज्यों की हवा दमघाेंटू हो गई। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बृहस्पतिवार रात से ही 400 के पार चला गया और शुक्रवार को गंभीर श्रेणी में 450 के ऊपर पहुंच गया। सबसे खराब हवा नोएडा (475 एक्यूआई) रही। आज सवेरे दिल्ली का कुल औसत एक्यूआई 533 दर्ज किया गया है।
दिवाली की अगली सुबह पूरा दिल्ली-एनसीआर और पड़ोसी राज्यों पर स्मॉग की मोटी परत छाई रही। लोगों को खुले में सांस लेना मुश्किल हो रहा था। गले में खराश, आंखों में जलन व आंसू निकल रहे थे। सांस के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि हम जश्न के नाम पर किसी की जान जोखिम में नहीं डालने की अनुमति नहीं दे सकते।
कोर्ट ने सिर्फ हरित पटाखों के इस्तेमाल की छूट दी थी। जबकि दिल्ली सरकार ने खराब होती हवा के मद्देनजर दिवाली पर पटाखों की बिक्री, स्टॉक करने व उपयोग पर प्रतिबंध लगा रखा था। इन सबके बावजूद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिवाली की शाम से ही पटाखे चलने लगे और जैसे-जैसे रात चढ़ती गई आतिशबाजी तेज हुई और पूरा आसमान धुएं से ढक गया।
पटाखों से निकलने वाले विषाक्त पदार्थों में भी इजाफा हुआ है जिसकी वजह से लोगों का सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। इसकी वजह से दिल्ली के अस्पतालों में कई मरीज पिछले एक दिन में भर्ती हुए हैं जिनमें पटाखों से निकलने वाले न्यूमोनाइटिस रसायन की पहचान हुई है।
मैक्स अस्पताल के डॉ विकास गोस्वामी का कहना है कि पटाखों से निकलने वाले रसायन और स्मॉग से फेफड़ों में कठोरता आ सकती है, जिससे शरीर को ऑक्सीजन प्राप्त करने की फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है। यदि इसका उपचार नहीं किया गया तो यह स्थिति श्वसन विफलता, फेफड़ों के कैंसर या यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकती है। उन्होंने बताया कि इस बार उनके यहां रसायन न्यूमोनिटिस के कई मामले सामने आए।
वहीं नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की वरिष्ठ डॉ. उमा कुमार ने बताया कि दिवाली की रात प्रदूषण बढ़ने से रसायनों के छोटे-छोटे कण सांसों के जरिए शरीर में पहुंचने के बाद खून में घुल रहे हैं जो किसी भी व्यक्ति को जानलेवा बीमारियों की चपेट में ले जाने के लिए काफी हैं। उन्होंने एम्स के ही चिकित्सीय अध्ययन का हवाला देते हुए यह जानकारी दी।
अचानक से प्रदूषण बढ़ने के कारण दिवाली की रात कई परिवारों को अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े। डेंगू, मलेरिया और मौसमी बीमारियों के अलावा कोरोना संक्रमण के साथ-साथ प्रदूषण के कारण मरीजों की संख्या और बढ़ गई है जिसकी वजह से अस्पतालों में कई गुना अधिक भार भी बढ़ गया है। स्थिति यह है कि दिल्ली के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में फिलहाल बिस्तर तक उपलब्ध नहीं है।
डॉ. गोस्वामी ने बताया कि न्यूमोनिटिस से ग्रस्त दो अलग अलग तरह के मरीज हैं। कुछ लोग खांसी, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़े की असामान्य आवाज (गीली, तेज आवाज में सांस लेना), सीने में दर्द, जकड़न या जलन जैसे लक्षण लेकर पहुंच रहे हैं। जबकि कई लोग लगातार खांसी, सांस की तकलीफ और श्वसन की बीमारी के कारण भर्ती हुए हैं।
उन्होंने बताया कि क्रोनिक केमिकल न्यूमोनाइटिस के ये लक्षण कई बार मौजूद नहीं भी हो सकते हैं और इन्हें नजर आने के लिए महीनों लग सकते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार इस समय दिल्ली की हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, मैंगनीज डाइऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड, नाइट्रेट्स आदि जैसे खतरनाक रसायन हैं लेकिन न्यूमोनाइटिस रसायन सीधे असर करने वाला है जो फेफड़ों में जलन महसूस कराता है या हम कह सकते हैं कि इससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
ऐसे खून में घुल रहे जहरीले रसायन
पीएम 2.5 और एक माइक्रॉन जितने छोटे आकार के कण सांस लेते वक्त शरीर के अंदर जाकर खून में घुल जाते हैं। शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इन्हें बाहरी कण समझकर इनसे लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करने लगता है। ये एंटीबॉडी घुटनों या दूसरे जोड़ों की कोशिकाओं पर भी हमला करने लगते हैं। प्रोफेसर उमा ने बताया कि एक अध्ययन में यह साबित हो चुका है कि जब प्रदूषण के स्तर में इजाफा होता है तो गठिया पीड़ित लोगों में इसके लक्षण बढ़ने लगते हैं।
इससे जोड़ों में दर्द, जकड़न और सूजन की परेशानी हो सकती है। डॉक्टर उमा में बताया कि अगर गठिया के लक्षण दिख रहे हैं, तो रूमेटोलॉजिस्ट डॉक्टर से मिलने में संकोच नहीं करना चाहिए। इलाज जितना जल्दी शुरू होगा, उतना ही जोड़ों को कम नुकसान पहुंचेगा और भविष्य में जोड़ों के विकार के आसार कम होंगे।
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बढ़ी ओपीडी
शुक्रवार को दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल में 65 से ज्यादा मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचे हैं। जबकि डीडीयू, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी, जीटीबी, डॉ. हेडगेवार और डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल को मिलाकर करीब 210 मरीज सांस लेने में तकलीफ और छाती में दर्द की शिकायत को लेकर आ चुके हैं।
वहीं, एम्स की इमरजेंसी में ही 150 से ज्यादा मरीज पिछले दो दिन में पहुंचे हैं। एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि अगर हवा की गुणवत्ता में जल्द ही कोई सुधार होता है तो इससे अस्थमा सहित अन्य तमाम बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को फायदा पहुंचेगा।
यहां भी बढ़े मरीज
साकेत मैक्स और वसंतकुंज फोर्टिस अस्पताल के अलावा पारस, बीएलके, अपोलो अस्पताल में करीब 500 से ज्यादा मरीज ओपीडी में पहुंच रहे हैं। कालरा अस्पताल में पिछले तीन दिन में 100 से ज्यादा मरीजों की ओपीडी बढ़ चुकी है। यहां शुक्रवार को करीब 35 मरीज ऐसे हैं, जो प्रदूषण की वजह से कफ और सांस लेने में गंभीर समस्या को लेकर पहुंचे हैं।
वहीं बालाजी अस्पताल के डॉ. अरविंद अग्रवाल का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण बढने से सिर्फ लोगों को सांस लेने में दिक्कत ही नहीं होती, बल्कि इससे उनका पूरा शरीर प्रभावित होता है। उनके यहां एक ही दिन में 12 से अधिक अस्थमा मरीज पहुंचे हैं। धर्मशिला नारायणा अस्पताल के डॉ. नवनीत सूद ने बताया कि पिछले एक दिन में अचानक से मरीजों की संख्या बढ़ी है। दिवाली की रात ही कई लोग इमरजेंसी में इलाज कराने पहुंचे।
अस्थमा रोगियों में ये लक्षण बढ़े
– सांस लेने में दिक्कत और सीटी जैसी आवाज आना
-सीढ़ियां चढ़ने या तेज चलने पर खांसी शुरू हो जाना
-हंसने या गुस्से से खांसी आना
-नाक बजना, छाती खिंचाव, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ
अस्थमा अटैक आने पर यह करें
-सहज-तनाव मुक्त रहने की कोशिश करें, कपड़ों को ढ़ीला कर दें
-आराम के लिए इनहेलर का इस्तेमाल करें।
दवा लेने के 5 मिनट में आराम नहीं होता है, तो दोबारा दवा की डोज लें, अगर फिर भी आराम नहीं होता तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
ऐसे करें बचाव
-इस स्थिति में सुबह और शाम बाहर निकलने से बचें
-एक्यूआई इंडेक्स 150 से ज्यादा होने पर क्रिकेट, हॉकी, साइकलिंग, मैराथन से परहेज करें
-प्रदूषण स्तर के 200 से ज्यादा होने पर पार्क में भी दौड़ने और टहलने ना जाएं
-जब प्रदूषण स्तर 300 से ज्यादा हो तो लंबी दूरी की सैर न करें
-जब स्तर 400 के पार हो तो घर के अंदर रहें, सामान्य सैर भी ना करें
-बेहतर गुणवत्ता के मास्क का इस्तेमाल जरूरी है
-तरल पदार्थ लेते रहें और डिहाइड्रेट न होने दें