स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि न्याय पालिका ने ऐसा कभी नहीं कहा कि किसी के घर में बिना अनुमति घुसकर उसे बाहर निकलने से रोका जाए। जिस जगह को कोर्ट के आदेश पर सील किया गया है, यदि हम उस जगह पर जाते और तब हमें रोका जाता तो बात समझ में आती लेकिन, मुझे मठ के अंदर ही बंदी बना लिया गया है। न्यायपालिका को ढाल बनाकर न किसी को अंदर आने दिया जा रहा है और न मुझे बाहर जाने दिया जा रहा है।
रविवार को बातचीत के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि न्याय पालिका लोक इच्छा के अनुसार अपना निर्णय करती है और लोक इच्छा है कि शिवलिंग की पूजा की जाए। ज्ञानवापी परिसर में जहां तक जाने की अनुमति है, कम से कम वहां तक हमको जाने दिया जाए ताकि हम शिवलिंग को भोग प्रसाद चढ़ा सकें। संविधान प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों की सेवा का अधिकार देता है। शिवलिंग को देखकर महसूस हो रहा है कि आक्रांताओं ने इसे तोड़ा है और इसका मतलब है कि यह प्राण प्रतिष्ठित हैं। हमारी मांग है कि कम से कम जिस दिन से शिवलिंग दिखा है, उस दिन से उसका जलाभिषेक होना चाहिए था। हमारी न्याय पालिका इस अधिकार से उसे वंचित नहीं कर सकती है।