वाराणसी, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के केंद्रीय कार्यालय के सामने एक बार फिर छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा है। शोध प्रवेश में कथित अनियमितताओं के खिलाफ छात्रों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है। उनका ऐलान साफ है – “न पानी पियेंगे, न भोजन करेंगे” – जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। केंद्रीय कार्यालय के मुख्य द्वार पर शुद्धि-बुद्धि यज्ञ का आयोजन कर छात्रों ने अपनी नाराजगी को धार्मिक और प्रतीकात्मक रूप से भी व्यक्त किया।
छात्रों का कहना है कि सामाजिक विज्ञान संकाय के अंतर्गत सामाजिक समावेशन नीति अध्ययन केंद्र में शोध प्रवेश की प्रक्रिया में भारी धांधली हुई है। उनका आरोप है कि सोशल इनक्लूजन और सबाल्टर्न स्टडीज जैसे मुख्य विषयों से जुड़े छात्रों को पीएचडी के लिए सीधे इंटरव्यू का मौका मिलना चाहिए था, जैसा कि नियम था। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस नियम को दरकिनार करते हुए कई एलाइड यानी संबद्ध विषयों के आवेदकों को भी मुख्य डिसिप्लिन में इंटरव्यू दे दिया। छात्र इसे नियमों का खुला उल्लंघन मानते हैं और इसे अपने हक पर डाका बताते हैं।
भूख हड़ताल पर बैठे छात्र सत्यनारायण ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए। उनका कहना है कि बीएचयू में भ्रष्टाचार और धांधली अब आम बात हो गई है। अधिकारियों पर बार-बार आरोप लगते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। वे कुर्सियों पर जमे रहते हैं और निष्पक्ष प्रवेश प्रक्रिया उनकी प्राथमिकता में ही नहीं है। सत्यनारायण के शब्दों में एक गहरी पीड़ा और आक्रोश झलकता है, जो इस बात का सबूत है कि छात्र अब अपनी आवाज को अनसुना नहीं होने देंगे।
वहीं, एक अन्य छात्र पल्लव ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पूरी तरह भ्रष्टाचार का अड्डा करार दिया। उनका आरोप है कि प्रशासन जानबूझकर नियमों को ताक पर रखकर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाने में जुटा है। अनियमितताओं को रोकने में प्रशासन की नाकामी ने छात्रों के सब्र का बांध तोड़ दिया है।
यह आंदोलन सिर्फ शोध प्रवेश की एक सीट का मसला नहीं है, बल्कि यह उस व्यवस्था के खिलाफ एक जंग है, जो छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से ऐसी उम्मीद शायद ही कोई करता हो, लेकिन ये घटनाएं सवाल खड़े करती हैं – क्या शिक्षा के मंदिर में भी अब भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उन्हें उखाड़ना असंभव हो गया है? छात्रों का यह अनशन अब केवल उनकी मांगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़े बदलाव की मांग बनता जा रहा है।