उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव सिर पर है। चुनाव हो और मुसलमानों की याद न आए, यह मुमकिन नहीं। अब तक के रुझान से ऐसा लगता है कि वे राजनीति के केंद्र में फिर से आने वाले हैं। कैसे आएंगे या आ रहे हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें किस तरह के नागरिक के तौर पर देख रही हैं। सबसे दिलचस्प है, जिन्हें लगता है कि उनका वोट नहीं चाहिए और जो उम्मीद में हैं, दोनों के लिए मुसलमान बड़े काम की चीज हैं। जिन्हें उनका वोट नहीं चाहिए, वे मुसलमानों से जुड़े हर मामले पर सीधे या इशारे में खुलकर बोल रहे हैं। जिन्हें उनका वोट चाहिए, वे बहुत ही नपे-तुले अंदाज में ‘मुसलमान’ बोल रहे हैं।…और मुसलमान कशमकश में हैं। लगता है जैसे उनके खाने-पीने, हंसने-बोलने, उठने-बैठने, चलने, पहनने-ओढ़ने, इबादत करने, सब पर वोटों के लिए नजर है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुसलमानों की अहमियत की पुख्ता वजहें हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की तादाद 3 करोड़ 84 लाख 83 हजार 967 यानी लगभग 19.26 फीसदी है। ऐसा कहा जा सकता है कि राज्य का हर पांचवां शख्स मुसलमान है। अगर समूह के तौर पर देखें तो ये बड़ी आबादी है। कहीं कम, कहीं ज्यादा, यह पूरे प्रदेश में हैं। हालांकि, इनकी आबादी का बड़ा हिस्सा पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश, रूहेलखंड, तराई और अवध क्षेत्र में रहता है।