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Friday, April 19, 2024

दक्षिण अफ्रीका : दशकों तक रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ने वाले डेसमंड का अंतिम संस्कार इको-फ्रेंडली तरीके से किया जाएगा।

दक्षिण अफ्रीका में दशकों तक रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ने वाले आर्कबिशप डेसमंड टूटू के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हो गई है। बताया गया है कि टूटू ने अपने अंतिम संस्कार को पारंपरिक तरह से करने की जगह इको-फ्रेंडली रखने की इच्छा जताई थी। इसी के तहत अब उनके शव का ‘एक्वामेशन’ किया जाएगा। इस प्रक्रिया में शव को आग की जगह पानी से जलाया जाता है।

क्या है एक्वामेशन?
एक्वामेशन या एल्केलाइन हाइड्रोलिसिस पारंपरिक तरह से आग का इस्तेमाल कर शव को जलाने से काफी अलग है। इस प्रक्रिया में मृतक के शव को एक उच्च दाब वाले धातु के सिलेंडर के अंदर पानी और क्षारीय तत्व (पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड) के घोल में रखा जाता है और सिलेंडर को करीब तीन से चार घंटे के लिए 150 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है।

इस प्रक्रिया में शरीर पूरी तरह से तरल में बदल जाता है और कंटेनर में सिर्फ हड्डियां बचती हैं। हड्डियों को एक गर्म ओवन में सुखाया जाता है और बाद में इनका चूरा बनाकर अस्थि कलश में रखकर परिजनों को सौंप दिया जाता है। खास बात यह है कि एक्वामेशन की यह तकनीक अभी सिर्फ कुछ ही देशों में मान्य है। दक्षिण अफ्रीका में भी इस प्रथा को लेकर फिलहाल कोई कानून नहीं है।

जानवरों पर किया जाता रहा है एक्वामेशन का इस्तेमाल?
एक्वामेशन की प्रक्रिया 1990 के दशक में विकसित हुई थी। शुरुआत में इसका इस्तेमाल एक्सपेरिमेंट्स में काम आने वाले जानवरों का शवदाह करने के लिए किया जाता था। 21वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका के मेडिकल स्कूलों में भी इस प्रक्रिया को अपनाया जाने लगा था। बाद में एक्वामेशन का इस्तेमाल इंसानी शवों के अंतिम संस्कार में भी किया जाने लगा।

नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले दक्षिण अफ्रीका के आर्चबिशप रह चुके डेसमंड टूटू का रविवार को 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्हें दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं टूटू को देश का नैतिक कम्पास भी कहा जाता है।

रंगभेद का विरोध, शिक्षा और समान अधिकारों के लिए आवाज उठाई
1984 में उन्हें नोबेल का शांति पुरस्कार मिला। दो वर्ष के बाद 1986 में वे केपटाउन के पहले आर्चबिशप बनाए गए। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की सरकार से बातचीत के बाद 1990 में नेल्सन मंडेला जेल से रिहा किए गए और रंगभेद के कानून को खत्म किया गया। 1994 में चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति मंडेला ने टूटू को रंगभेद के समय में मानवाधिकारों के हनन की जांच करने वाले आयोग का नेतृत्व सौंपा। वर्ष 2007 में भारत ने उन्हें गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा था।

 

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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