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Tuesday, May 7, 2024

शिक्षा मंत्री को पटना के महावीर मंदिर ने दिखाया सच,212 साल पुराने रामचरितमानस में क्षुद्र और समुद्र की बात

रामचरितमानस की पंक्तियों पर बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने नालंदा खुला विवि के दीक्षांत समारोह में जो बैकवर्ड-फॉरवर्ड की शिक्षा देकर बवाल शुरू किया, उसपर पटना के महावीर मंदिर ने मोर्चा खोल रखा है। महावीर मंदिर न्यास शिक्षा मंत्री को लगातार सच का आइना दिखा रहा है। रामचरितमानस पर उठाए गए सवालों पर 22 जनवरी को पटना के विद्यापति भवन में विमर्श से पहले महावीर मंदिर ने उस रामचरितमानस को सामने लाया है, जो पहली बार छपा था। 212 साल पुराने मानस के इस प्रथम संस्करण में ‘ढोल, गंवार, क्षुद्र, पशु, नारी’ लिखा है। इसमें ‘शूद्र’ का उल्लेख नहीं है और आचार्य किशोर कुणाल के अनुसार संदर्भ के अनुसार यहां ‘नारी’ का अर्थ समुद्र से है।

1810 में प्रकाशित मानस ही मानकधार्मिक न्यास परिषद् के पूर्व अध्यक्ष और महावीर मंदिर न्यास के आचार्य कुणाल ने बताया कि भोजपुर निवासी पंडित सदल मिश्र ने कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज से वर्ष 1810 में रामचरितमानस को पहली बार प्रकाशित कराया था। इसे ही रामचरितमानस का प्रथम प्रकाशित संस्करण माना जाता है। यही सर्वाधिक प्रमाणिक भी है। मानस की र्को प्रति इसके 65 साल बाद 1875 में ही प्रकाशित हुई। इस दरम्यान भी नहीं। सदल मिश्र के मानस की ही डिजिटल प्रति में पशु मारी और पशु नारी को लेकर असमंजस है, लेकिन मूल प्रति में ऐसा कोई संशय नहीं है। जहां तक संदर्भ का सवाल है तो समुद्र ने यह बातें श्रीराम से कही है और कहने का स्पष्ट आशय है कि भयभीत समुद्र भगवान को ताड़नहार मानता है और विनम्रतापूर्वक तर्क दे रहा है ढोल, गंवार, क्षुद्र, पशु और नारी (समुद्र खुद) यह सब ताड़ना के अधिकारी हैं। क्षुद्र का अभिप्राय भी यहां जाति से नहीं, बल्कि व्यवहार से है।

22 जनवरी को ज्ञानीजन रखेंगे तर्कआचार्य कुणाल ने कहा कि मानस पर सवाल उठाने वालों को संदर्भ समेत इस नजरिए से इसे देखना चाहिए कि यह आम भारतीय जनमानस का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, 22 जनवरी को पटना में उन सभी ज्ञानीजनों को बुलाया गया है, जो इसपर शास्त्रार्थ करना चाहते हैं। अपना पक्ष रखने के लिए वह स्वतंत्र होंगे और तर्कपूर्ण जवाब भी उन्हें दिया जाएगा। रामचरितमानस पर यह हंगामा उसी दिन से चरम पर है, जब शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने सुंदर कांड के दोहे-चौपाइयों का जिक्र करते हुए कहा था कि यह अगड़ों के सामने पिछड़ों को निकृष्ट बताता है। पिछड़ों को शिक्षा से दूर रखने के लिए कहता है। शूद्र और महिला को ताड़ने लायक बताता है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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