नई दिल्ली, 10 अप्रैल 2025, गुरुवार: बंगाल का मुर्शिदाबाद चौथे दिन भी दंगों की चपेट में है। वक्फ कानून के विरोध के नाम पर शुरू हुई यह आग अब पूरे देश को लपेटने की राह पर है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने इसे “सेक्युलर-जिहादी गठजोड़” की साजिश करार देते हुए चेतावनी दी है कि यह देश को अराजकता की भट्टी में झोंकने का कुत्सित प्रयास है।
कानून बना, फिर बवाल क्यों?
डॉ. जैन ने याद दिलाया कि यह वही वक्फ कानून है, जिसे बनाने से पहले करीब एक करोड़ भारतीयों ने अपनी राय दी थी। संसद में 25 घंटे से ज्यादा चली ऐतिहासिक बहस के बाद इसे पारित किया गया। फिर भी विरोध के नाम पर हिंसा क्यों? उन्होंने कहा कि कानून के खिलाफ 18 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में हैं। “संविधान की दुहाई देने वाले कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों नहीं करते? लगता है उन्हें न संविधान की फिक्र है, न न्यायपालिका के सम्मान की।”
लैंड माफिया और वोट की सियासत
विहिप नेता ने इस हिंसा के पीछे दो ताकतों को जिम्मेदार ठहराया: वक्फ बोर्ड के नाम पर चल रहा लैंड माफिया और मुस्लिम वोटों पर एकाधिकार जमाने वाला सेक्युलर माफिया। एक को डर है कि हड़पी गई जमीन हाथ से निकल जाएगी, तो दूसरे को चिंता है कि वोट बैंक की सियासत खत्म हो जाएगी। डॉ. जैन ने 2013 के गुरुग्राम का उदाहरण दिया, जब पालम विहार के पार्क को वक्फ संपत्ति घोषित कर नमाज के लिए भीड़ जुटाई गई थी। तब कांग्रेस सरकार ने बिना सबूत इसके पक्ष में फैसला सुना दिया था। इसी तरह, दिल्ली में 123 सरकारी संपत्तियों पर वक्फ ने दावा ठोका, और 2014 में मनमोहन सिंह सरकार ने चुनाव के दिन उन्हें मुफ्त में सौंप दिया।
हिंदू समाज ने तोड़ा षड्यंत्र
डॉ. जैन ने कहा कि जागरूक हिंदू समाज, सजग न्यायपालिका और हिंदू संगठनों की मेहनत से ये साजिशें नाकाम हुईं। लेकिन 2013 के संशोधनों के बाद वक्फ के दावों की बाढ़ आ गई, जैसे पूरे देश को ही मौलवियों की निजी जागीर बना देना चाहते हों। “कानून के खिलाफ विरोध का हक है, पर दंगे भड़काने का नहीं। इस गठजोड़ ने पहले भी देश को बंधक बनाकर विभाजन कराया और शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। लेकिन अब वक्त बदल गया है।”
जनता सब समझ चुकी है
उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज का बड़ा हिस्सा ओवैसी जैसे नेताओं की सच्चाई जानता है। राहुल और अखिलेश जैसे सेक्युलर चेहरों की हकीकत भी देश के सामने है। “कानून की सच्चाई और इनकी करतूतें सबको पता चल चुकी हैं। अब दंगों के बहाने देश को अस्थिर करने की कोशिश बंद होनी चाहिए।”
मुर्शिदाबाद की आग कहीं और न फैले, इसके लिए यह सवाल जरूरी है: यह विरोध है या सियासी स्वार्थ का खेल? जवाब शायद वक्त और जनता ही देगी।