बिहार में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव के लिए पिछड़े वर्ग के आरक्षण को लेकर पेंच फंसा हुआ है। पटना हाईकोर्ट चुनाव होने या फिर रोक लगने को लेकर चार अक्तूबर को सुनवाई होगी। पिछड़े वर्ग के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव में राज्य सरकार पहले एक विशेष आयोग का गठन करे। आयोग अध्ययन कर कि कौन सा वर्ग पिछड़ा है। साथ ही आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अगर इन शर्तो को राज्य सरकार की तरफ से पूरा नहीं किया जाता है तो पिछड़े वर्ग के लिए रिजर्व सीट को भी सामान्य ही माना जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने रखा था अपना फैसला सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट आदेश पर स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई हुई थी। प्रदेश सरकार की तरफ से एडवोकेट ललित किशोर के साथ सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने सरकार का पक्ष रखा। सुनवाई के दौरान याचिका दायर करने वाले वकीलों ने सरकार के निर्णय को गलत बताया, जबकि दूसरे पक्ष ने फैसले को सही ठहराया था। इस दौरान याचिका दायर करने वाले पक्ष के वकीलों ने दलील दी कि चुनाव में आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी की गई है। पटना हाईकोर्ट ने दोनों पक्ष की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तक नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे। आरोप है कि सरकार ने मानकों को पूरा करे बिना ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट में इस संबंध में एक फैसला लंबित है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि 10 अक्तूबर को होने वाले पहले फेज के चुनाव से पहले पटना हाईकोर्ट को अपना फैसला सुना देना चाहिए।