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Friday, May 17, 2024

ऑक्सफैम की रिपोर्ट में किया गया दावा, एशिया में जलवायु अनुकूलन वित्त पर ADB ने बढ़ा-चढ़ाकर बताए आंकड़ें

एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने एशिया में जलवायु अनुकूलन वित्त के जो आंकड़े दिए हैं, वो बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं। ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट यह दावा किया गया है। ऑक्सफैम ने कहा कि इसमें 44 प्रतिशत की कटौती की जा सकती है। एडीबी ने जो आंकड़े पेश किए हैं, उसके मुताबिक 1.7 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान जताया गया है, जबकि ऑक्सफैम की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये असल आंकड़ा 0.9 अरब डॉलर हो सकता है। हालांकि एडीबी ने अपने आंकड़ों की पुष्टि की है और अपनी गणना पर अभी भी कायम है। 

एशिया में बिगड़ रहे हालात
एडीबी की रिपोर्ट में बांग्लादेश, कंबोडिया, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, चीन और पापुआ न्यू गिनी जैसे 15 देशों में जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए चलाए जा रहे 15 प्रोजेक्ट्स का आकलन किया गया है। गैर लाभकारी संगठन ऑक्सफैम का कहना है कि एडीबी की रिपोर्ट में जो आंकड़े दिए गए हैं, उनमें कई अनियमित्ताएं हैं। एडीबी ने साल 2021 और 2022 में जो जलवायु अनुकूलन वित्त के आंकड़े पेश किए थे, ताजा रिपोर्ट में भी उन्हीं में से कुछ हिस्से ले लिए गए हैं। ऑक्सफैम के एशिया के क्षेत्रीय नीति और प्रचार समन्वयक सुनील आचार्य ने एडीबी के आंकड़ों की तुलना खराब कंपास से की, जिससे समाज गुमराह हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि एशिया बाकी दुनिया की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है। यहां बाढ़, हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। वहीं मैदानी इलाकों में रिकॉर्ड उच्च तापमान दर्ज किया जा रहा है। ऐसे हालात में जलवायु अनुकूलन वित्त के दावे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना क्रूर मजाक है। 

ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 और 2023 के बीच एशियाई विकास बैंक ने जलवायु अनुकूलन वित्त की मद में 10.5 अरब डॉलर में से 9.8 अरब डॉलर तो कर्ज के रूप में बांटे और सिर्फ 0.6 अरब डॉलर ही मदद के तौर पर दिए। ऑक्सफैम का कहना है कि ये कर्ज भी बाजार दर पर दिए गए और इसे जलवायु अनकूलन वित्त नहीं माना जा सकता। इससे कमजोर देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में एडीबी पर छोटे और जलवायु परिवर्तन के खतरों से सबसे ज्यादा जूझ रहे देशों को कम मदद मिलने पर भी सवाल खड़े किए हैं। 

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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