अपने विवादित बयानों से सियासी माहौल गरमाने वाले इमरान मसूद के जरिए बसपा पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरण में जान फूंकेगी। इसी रणनीति के तहत पार्टी अभी अन्य मुस्लिम नेताओं को साथ लाने की तैयारी कर रही है। यह प्रयोग लोकसभा चुनाव-2024 में कितना सफल होगा, इसकी झलक हाल ही में होने वाले नगर निकाय चुनाव में देखने को मिलेगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री मरहूम काजी रशीद मसूद के भतीजे इमरान मसूद का सहारनपुर ही नहीं बल्कि पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर खासा प्रभाव है। 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी सियासत का लोहा मनवा चुके इमरान की इस बार विधानसभा चुनाव में दाल नहीं गली थी।
के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सहारनपुर की बेहट और देहात सीट पर सफलता मिली थी। कांग्रेस की कमजोर स्थिति के बावजूद इमरान ने पार्टी का जलवा अपने क्षेत्र में कायम रखा। हालांकि इस विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने सपा का दामन थामा तो कांग्रेस यहां पर बेदम हो गई। उधर, अखिलेश भी इमरान का सही इस्तेमाल नहीं कर पाए।
पीएम ने दिया था इमरान के बयान पर जवाब
2019 के लोकसभा चुनाव में इमरान का ‘बोटी बोटी करने’ का बयान काफी चर्चा में रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहारनपुर की रैली में इसका जवाब दिया कि यहां ‘बोटी-बोटी’ करने वाले साहब भी हैं, जो कांग्रेस के शहजादे के करीबी हैं। हम बेटी-बेटी को सम्मान देने वाले लोग हैं। हमने यूपी की करीब 90 लाख बेटियों को मुद्रा लोन दिए। घरों में शौचालय बनवाए और महिलाओं के नाम पर आवास दिए।
बसपा के लिए कितने प्रभावी होंगे
चार बार सत्ता के शिखर तक पहुंची बसपा को विधानसभा चुनाव-2022 में मात्र एक सीट मिली। इसके पीछे मुस्लिमों और कैडर वोट का पार्टी से दूर होना बताया गया। सोशल इंजीनयरिंग का फार्मूला भी नहीं चला। उधर, मुस्लिमों ने पूरी ताकत से सपा को वोट तो दिया पर नतीजे बेहतर नहीं मिले। ऐसे में बसपा बार बार यह संदेश दे रही है कि यदि दलित-मुस्लिम एक हो जाएं तो भाजपा को रोका जा सकता है। निकाय चुनाव में यही फार्मूला लेकर इमरान जनता के बीच जाएंगे। पार्टी खास तौर से महापौर की सीटों पर इसका इस्तेमाल करेगी। पार्टी सुप्रीमो ने इसीलिए तत्काल इमरान को पश्चिमी यूपी का पार्टी संयोजक भी घोषित किया है।