वाराणसी, 10 अप्रैल 2025, गुरुवार। गुरुवार का दिन बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी के लिए एक अनूठे आध्यात्मिक उत्सव का साक्षी बना। अहिंसा और “जियो और जीने दो” का संदेश देने वाले 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती पर शहर भक्ति और संस्कृति के रंग में डूब गया। मैदागिन के दिगंबर जैन मंदिर से शुरू हुई भव्य शोभायात्रा ने श्रद्धा और उत्साह का ऐसा संगम पेश किया कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।

चांदी के रथ पर सजी महावीर की झांकी
शोभायात्रा की शोभा चांदी के रथ पर विराजमान भगवान महावीर की दिव्य झांकी ने बढ़ाई। जैसे ही यह यात्रा मंदिर से निकली, श्रद्धालुओं ने गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा कर इसका स्वागत किया। बुलानाला, नीचीबाग, ठठेरी बाजार और सोराकुआं से होते हुए यह शोभायात्रा ग्वाल दास साहू लेन के श्री पंचायती मंदिर पहुंची। वहां भगवान महावीर के विग्रह को रथ से उतारकर रजत नालकी पर स्थापित किया गया। फिर श्रद्धालुओं ने इसे कंधों पर उठाकर मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचाया। इसके बाद 108 रजत कलशों से पंचामृत अभिषेक हुआ और विग्रह को रजत पांडुक शिला पर सुशोभित कर पूजा-अर्चना की गई।

शोभायात्रा में ध्वज-पताकाएं, “अहिंसा परमो धर्मः” के बैनर, राजस्थानी परिधानों में सजे बच्चे और महिलाएं, चंवर, धूप, झंडी गाड़ियां और रजत रथ की चमक ने बनारस को आध्यात्मिक आलोक से भर दिया। रजत हाथी, बग्घी और बाजे-गाजे के साथ नाचते-गाते श्रद्धालुओं ने माहौल को भक्तिमय बना दिया। यह नजारा किसी उत्सव से कम नहीं था।

170 सालों की परंपरा और महावीर का संदेश
दिगंबर जैन मंदिर के पुजारी प्रदीप चंद जैन ने बताया कि चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को भगवान महावीर का जन्मदिवस मनाया जाता है। मैदागिन मंदिर में 170 सालों से यह परंपरा निभाई जा रही है। अभिषेक के बाद रथयात्रा निकाली गई और पंचायती मंदिर में भजन-कीर्तन जैसे आयोजन हुए। उन्होंने कहा कि बनारस के ग्यारह मंदिरों, जैसे मझवां, हाथी बाजार और चंद्रावती में भी जयंती मनाई जा रही है। जैन धर्म “अहिंसा परमो धर्मः” के मार्ग पर चलता है और महावीर स्वामी का संदेश “जियो और जीने दो” आज भी प्रासंगिक है।

बनारस में आध्यात्मिकता की गूंज
महावीर जयंती का यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि बनारस की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। शोभायात्रा की चमक, भक्ति में डूबे लोग और महावीर के संदेश ने शहर को एक नई ऊर्जा दी। यह दिन न सिर्फ जैन समुदाय के लिए, बल्कि पूरे वाराणसी के लिए एकता, शांति और अहिंसा का संदेश लेकर आया।