बड़े दलों के अलग-अलग खम ठोकने के कारण उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला होना तय है। हालांकि, मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। कांग्रेस और आप उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हाथ पांव मार रही है तो बसपा आक्रामक तेवरों से दूर है। ऐसे में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अबूझ पहेली बना हुआ है। राममंदिर, किसान आंदोलन, कोरोना महामारी के प्रबंधन जैसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के महाभारत में प्रधानमंत्री मोदी, सीएम योगी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत दिग्गज नेताओं के नेतृत्व की परीक्षा भी होगी।
नतीजे न सिर्फ सूबे की बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की भी दशा और दिशा तय करेंगे। इस चुनाव से लोकसभा के बीते दो और विधानसभा के एक चुनाव में बुरा प्रदर्शन करने वाली सपा और बसपा का भविष्य तय होगा। आप, कांग्रेस भी कसौटी पर हैं।
भाजपा की रणनीति
सत्ता बनाए रखने के लिए भाजपा हिंदुत्व के साथ सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे है। पार्टी की कोशिश अगड़ाें, गैर यादव पिछड़ाें और गैर जाटव दलितों को जोड़े रखने की है।
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि खासतौर से अति पिछड़ी जातियां और गैर जाटव दलित मुफ्त अनाज कार्यक्रम के साथ कम से कम तीन अहम केंद्रीय योजनाओं का लाभ मिलने के कारण इस चुनाव में भी उसका साथ देगी।
इस बार भी उसे अगड़ों का साथ मिलेगा। इस चुनाव में सुभासपा उसके साथ नहीं है, मगर पार्टी ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर इसकी भरपाई करने की कोशिश की है।
सत्तारूढ़ दल की चुनौतियां
किसान आंदोलन के कारण पश्चिम यूपी की जाट बिरादरी में नाराजगी
ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी
सरकार में राजपूतों को महत्व मिलने के आरोप
लोकसभा के प्रदर्शन को विधानसभा चुनाव मे कायम न रख पान बढ़ती महंगाई और एंटी इन्कम्बेंसी
चुनाव से पहले पार्टी में मतभेद
-
बसपा पर उधेड़बुन
-
इस चुनाव में बसपा पर उहापोह की स्थिति है। खासतौर से बसपा प्रमुख मायावती पहले की तरह अब तक सक्रिय नहीं हैं। पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने पाला बदल लिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बसपा इस बार अपने कोर वोटर को जोड़े रख पाएगी या इस बार उसका कोर वोटर बिखर जाएगा।
-
हालांकि अहम तथ्य यह है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी बसपा 20 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही है।
-
सपा के दांव-पेच
-
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन करने वाली सपा ने इस बार रणनीति बदल ली है। भाजपा की तर्ज पर सपा ने इस बार छोटे दलों और छोटे समूहों से गठजोड़ किया है। इसके जरिये सपा-भाजपा समर्थक माने जाने वाले ब्राह्मण और अति पिछड़ी जातियों में सेंध लगाना चाहती है।
-
सपा को पता है कि पुराना माय समीकरण सत्ता की कुंजी नहीं रह गया है। यही कारण है कि पार्टी ने मुसलमानाें को एकजुट करने, जाट, राजभर, कुर्मी, नोनिया, कुशवाहा, मौर्य बिरादरी को साधने के लिए इनसे जुड़े दलों और समूहों से गठबंधन किया है। भाजपा ने पिछले चुनावाें में यही फार्मूला अपनाया था।
-
मुख्य विपक्षी दल की दिक्कतें
-
गैरयादव ओबीसी में मजबूत पैठ नहीं
-
अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों में समानांतर ध्रुवीकरण का डर
-
वरिष्ठ नेताओं की कमी
-
मोदी-योगी के कद का नेता नहीं
-
योगी सरकार का बेहतर विकल्प होने की धारणा बनाना
-
भाजपा के हिंदुत्व की काट के लिए मजबूत रणनीति का अभावउपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में कांग्रेस-आप
-
चुनाव से पहले राज्य में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सक्रियता बढ़ी है। आम आदमी पार्टी ने भी चिह्नित सीटों पर ताकत लगाई है। मगर इन दोनों की मुख्य रणनीति अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की है।
- हालांकि दोनों दलों का जमीनी स्तर पर संगठन नहीं है। हां, ये दोनों दल कुछ सीटों पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।
- कांग्रेस की मुश्किलें
-
कांग्रेस ने 40 फीसदी सीटों पर महिलाओं को टिकट देने की घोषणा की है। प्रदेश में 160 जिताऊ महिला उम्मीदवार खोजने की चुनौती होगी। जमीनी स्तर पर पार्टी संगठन की मजबूती पर भी सवाल हैं।
-
सूबे में बदल गया वोटों का गुणा-भागमुकाबला बहुकोणीय होने से दलों को हासिल वोट प्रतिशत अहम भूमिका अदा करेगा। बीते आठ सालों में राज्य के सियासी समीकरण में बड़ा बदलाव आया है। पहले करीब तीस फीसदी वोट सरकार बनाने के लिए निर्णायक साबित होते रहे हैं। बसपा-सपा ने क्रमश: 2007 और 2012 में तीस फीसदी वोटों के सहारे ही बहुमत हासिल कर लिया था। हालांकि अब यह वोट प्रतिशत सत्ता की चाबी नहीं है। भाजपा ने बीते लोकसभा में 50 फीसदी तो बीते विधानसभा में करीब 40 फीसदी वोट हासिल किए थे।
आंदोलन के गढ़ से आगाज
चुनावों का आगाज किसान आंदोलन के गढ़ रहे पश्चिमी यूपी के जिलों से ही चुनावों की शुरुआत होने जा रही है। अंत पूर्वांचल से होगा। पहले चरण में पश्चिमी यूपी के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर. मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, आगरा, अलीगढ़, शामली और मथुरा की कुल 58 सीटों पर 10 फरवरी को वोट डाले जाएंगे।