27.1 C
Delhi
Friday, May 3, 2024

जातिगत जनगणना के समर्थन में आए केशव मौर्य

यूपी में भाजपा के पिछड़ा वर्ग के चेहरा माने जाने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया है। ऐसा बयान देने वाले भाजपा के इस कद वह पहले नेता हैं। सपा, बसपा और कांग्रेस पहले से ही यह मांग कर रही हैं। वहीं, बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जातिगत जनगणना कराए जाने के फैसले से इन दिनों यह पूरे उत्तर भारत का अहम मुद्दा बना हुआ है।

उन्नाव के नवाबगंज में एक कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि वह जातिगत जनगणना के समर्थन में हैं। उनसे इस संबंध में सवाल पूछा गया था। हालांकि, केशव इससे पहले भी यह सवाल उठा चुकेहैं कि जब सपा व बसपा के समर्थन से केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब इन दलों ने इसे मुद्दा क्यों नहीं बनाया।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस मुद्दे को लगातार गरमाए हुए हैं। माना जा रहा है कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आएगा, वैसे-वैसे यह मुद्दा और भी तेजी पकड़ेगा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में सपा यहां तक कह चुकी है कि देश के 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लोग 60 फीसदी राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं। स्पष्ट है कि जातिगत जनगणना उसकी अहम रणनीतिक मांगों में शामिल है।

केंद्र की भाजपा सरकार पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में यह कह चुकी है कि ओबीसी की अलग से जातिगत जनगणना बेहद कठिन है। तब बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे ओबीसी को लेकर भाजपा की कथनी-करनी में अंतर करार दिया था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी तो अपनी पार्टी का रुख रखते हुए यहां तक कहते हैं कि जब इस देश में पेड़-पौधों तक की गणना हो सकती है तो ओबीसी की क्यों नहीं।

जातिगत जनगणना विपक्ष के लिए जहां अहम रणनीतिक मुद्दा है, वहीं भाजपा का आधिकारिक पक्ष ‘सबका साथ-सबका विकास’ है। पिछले साल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ओबीसी से अलग से गणना प्रशासनिक तौर पर बेहद कठिन है। आगामी लोकसभा चुनाव के समय तक यह मुद्दा फिर अपने पूरे शबाब पर होगा।

भारत में पिछड़ी जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। आजाद भारत में भी पिछड़ी जातियों का मुद्दा लगातार गरमाया रहा। मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1992 में केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने इन जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया। हालांकि, उसके बाद भी यह मुद्दा कभी तेज और कभी धीमी राजनीतिक आंच पर सिकता रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में सपा यहां तक कह चुकी है कि देश के 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लोग 60 फीसदी राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं। स्पष्ट है कि जातिगत जनगणना उसकी अहम रणनीतिक मांगों में शामिल है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव हर मंच से इस मांग को दोहराते हैं। 

केंद्र की भाजपा सरकार के इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे ओबीसी को लेकर भाजपा की कथनी-करनी में अंतर करार दिया था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी तो अपनी पार्टी का रुख रखते हुए यहां तक कहते हैं कि जब इस देश में पेड़-पौधों तक की गणना हो सकती है तो ओबीसी की क्यों नहीं। पिछड़े वर्ग की राजनीति करने वाले अन्य छोटे दल भी समय-समय पर यह मुद्दा उठाते रहे हैं।

anita
anita
Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles