शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी गायत्री जयंती के रूप में मनाई जाती है। इन्हें ज्ञान और विवेक की देवी माना जाता है। मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इस दिन पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था, जिसके बाद इस पवित्र एकादशी को गायत्री जयंती के रूप में जाना जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसे श्रावण पूर्णिमा के समय भी मनाया जाता है। चारों वेद, पुराण, श्रुतियां सभी गायत्री से उत्पन्न हुए हैं इसलिए इन्हें वेदमाता भी कहा गया है।
ऐसा है इनका स्वरूप
धर्मग्रंथों की मानें तो मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप माना जाता है और त्रिमूर्ति मानकर ही इनकी उपासना की जाती है। मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ है। उनके इस रूप में चार मुख चारों वेदों के प्रतीक है और उनका पांचवां मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां के दस हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। त्रिदेवों की आराध्य भी मां गायत्री को ही कहा जाता है। ये ही भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी हैं। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी। आरम्भ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर मां की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
ऐसे हुआ देवी गायत्री का विवाह
एक प्रसंग के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया। परंपरा के अनुसार यज्ञ में ब्रह्माजी को पत्नी सहित ही यज्ञ बैठना था। लेकिन किसी कारण वश ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री को आने में देर हो गई। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था। इसलिए ब्रह्मा जी ने वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।
गायत्री उपासना से हर कार्य संभव
गायत्री, गीता, गंगा और गौ यह भारतीय संस्कृति की चार आधार शिलाएं हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इस बात का उल्लेख किया है कि मनुष्य को अपने कल्याण के लिए गायत्री और ॐ का उच्चारण करना चाहिए। वेदों में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्म तेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है, इनकी उपासना से मनुष्य को यह सब आसानी से प्राप्त हो जाता हैं। महाभारत के रचयिता वेद व्यासजी गायत्री की महिमा का यशोगान करते हुए कहते हैं कि जैसे फूलों में शहद,दूध में घी होता है,वैसे ही समस्त वेदों का सार देवी गायत्री हैं। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाए तो यह समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु गाय के समान हैं। गायत्री मंत्र से आध्यत्मिक चेतना विकास होता हैं और इस मंत्र का श्रद्धा पूर्वक निरंतर जप करने से सभी कष्टों का निवारण होता हैं और मां उसके चारों ओर रक्षा-कवच का निर्माण स्वयं करती हैं। योगपद्धति में भी मां गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता हैं।