प्रयागराज, 10 अप्रैल 2025, गुरुवार। इलाहाबाद हाई कोर्ट एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार वजह है एक रेप केस में जज की चौंकाने वाली टिप्पणी। जस्टिस संजय कुमार ने एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि पीड़िता ने “खुद ही मुसीबत को न्योता दिया” और वह भी इस घटना के लिए जिम्मेदार है। इस बयान ने न सिर्फ कानूनी हलकों में, बल्कि समाज के हर तबके में तीखी बहस छेड़ दी है। आखिर क्या है पूरा मामला, और क्यों यह टिप्पणी इतना बवाल मचा रही है?
मामला क्या है?
यह कहानी नोएडा की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली मास्टर्स की छात्रा से शुरू होती है। पिछले साल सितंबर में, पीड़िता ने नोएडा पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उसने एक शख्स पर रेप का गंभीर आरोप लगाया। उसका कहना था कि दिल्ली के हौज खास में एक बार में उसकी मुलाकात इस शख्स से हुई। उस रात वह नशे में थी, और आरोपी ने उसका फायदा उठाकर उसके साथ दो बार बलात्कार किया।
पीड़िता ने पुलिस को बताया कि वह और उसकी सहेलियां उस रात बार में थीं। रात के करीब 3 बजे तक वह वहां रुकीं, और इस दौरान आरोपी बार-बार उनके करीब आने की कोशिश करता रहा। उसने यह भी कहा कि वह आरोपी के कहने पर “आराम करने” के लिए उसके साथ जाने को तैयार हो गई। लेकिन उसका आरोप है कि आरोपी उसे नोएडा में अपने घर ले जाने की बजाय गुरुग्राम में एक रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया, जहां उसने उसके साथ जबरदस्ती की।
शिकायत के आधार पर, नोएडा के सेक्टर 126 थाने में 23 सितंबर, 2024 को FIR दर्ज हुई, और 11 दिसंबर को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
कोर्ट में क्या हुआ?
आरोपी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दायर की। उसका दावा था कि पीड़िता के साथ उसके संबंध “सहमति” से बने थे, और यह रेप का मामला नहीं है। उसने यह भी कहा कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से उसके साथ जाने का फैसला किया था। आरोपी के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि पीड़िता अपनी सहेलियों और उनके पुरुष मित्रों के साथ बार में गई थी, और उसने स्वेच्छा से वहां समय बिताया।
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कुमार ने कुछ ऐसी बातें कहीं, जिन्होंने विवाद को जन्म दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता एक मास्टर्स डिग्री की छात्रा है, और इसलिए वह अपनी हरकतों की नैतिकता और परिणामों को समझने में सक्षम है। जज ने आगे कहा, “अगर पीड़िता के आरोपों को सच भी मान लिया जाए, तो यह साफ है कि उसने खुद ही मुसीबत को बुलाया। वह भी इस घटना के लिए जिम्मेदार है।”
कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह भी कहा कि पीड़िता का हाइमन टूटा हुआ पाया गया, लेकिन डॉक्टर ने यौन हमले की कोई पुष्टि नहीं की। इन तर्कों के आधार पर, कोर्ट ने आरोपी को शर्तों के साथ जमानत दे दी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया कि जमानत आदेश में की गई टिप्पणियां सिर्फ जमानत के मुद्दे तक सीमित हैं, और इनका मामले के ट्रायल पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्यों मचा बवाल?
जस्टिस संजय कुमार की टिप्पणी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या रेप जैसे गंभीर मामले में पीड़िता को जिम्मेदार ठहराना उचित है? यह टिप्पणी न सिर्फ पीड़िता की गरिमा पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में गहरे बैठी उस मानसिकता को भी उजागर करती है, जो अक्सर यौन हिंसा के मामलों में पीड़िता को ही कठघरे में खड़ा कर देती है।
कई लोग इस टिप्पणी को पीड़िता के चरित्र पर हमला मान रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और कानूनविदों का कहना है कि ऐसी टिप्पणियां न सिर्फ पीड़िताओं को न्याय मांगने से हतोत्साहित करती हैं, बल्कि बलात्कार जैसे अपराधों को सामान्य बनाने का भी खतरा पैदा करती हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग कोर्ट के तर्क का समर्थन करते हुए कहते हैं कि जज ने सिर्फ मामले के तथ्यों के आधार पर फैसला सुनाया।
आगे क्या?
यह मामला अब सिर्फ एक कानूनी लड़ाई तक सीमित नहीं रह गया है। यह समाज में गहरे बैठे लैंगिक पूर्वाग्रहों और न्याय व्यवस्था की संवेदनशीलता पर सवाल उठाने वाला बन गया है। क्या पीड़िता की पृष्ठभूमि, उसका व्यवहार, या उसकी पसंद को उसके साथ हुए अपराध का आधार बनाया जा सकता है? क्या ऐसी टिप्पणियां भविष्य में पीड़िताओं को अपनी आवाज उठाने से रोकेंगी?
जब तक इस मामले का ट्रायल पूरा नहीं होता, सच का पता लगाना मुश्किल है। लेकिन एक बात साफ है—यह विवाद जल्दी थमने वाला नहीं। यह न सिर्फ कानूनी हलकों में, बल्कि हर उस इंसान के मन में सवाल छोड़ गया है, जो न्याय और समानता में यकीन रखता है।
आप इस मामले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या कोर्ट की टिप्पणी उचित थी, या यह पीड़िता के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक है? यह बहस अभी खत्म नहीं हुई है।