जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) आज भाजपा में शामिल हो रहे हैं। गुरुवार दोपहर एक बजे वह दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय में पार्टी की सदस्यता लेंगे। एक समय था जब लोग आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार का राइट हैंड कहते थे। कई लोग तो उन्हें नीतीश के राम तक कहते थे। आरसीपी सिंह जदयू छोड़ने के बाद से लगातार सीएम नीतीश कुमार पर हमलावर रहे हैं। वहीं हाल में जदयू से इस्तीफा देने वाली सुहेली मेहता भी पटना में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगी। सुहैली मेहला राजद कोटे से मंत्री आलोक मेहता की बहन हैं। जदयू के दो कद्दावर नेताओं का भाजपा में शामिल होना निश्चित तौर पर नीतीश कुमार के मिशन 2024 को नुकसान पहुंचाएगा। हालांकि, जदयू नेताओं का कहना है कि इससे आगामी चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
राज्यसभा की सदस्यता चले जाने के कारण आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा उस समय जदयू के कई नेता ने आरोप लगाया कि आरसीपी सिंह भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। इसके बाद जदयू की ओर से आरसीपी सिंह पर कई आरोप लगने लगे। धीरे-धीरे आरसीपी सिंह जदयू से दूर होते चले गए। अंत में उन्हें जदयूसे इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी से इस्तीफा देने के बाद वे खुलकर भाजपा के समर्थन में कई बार दिखे। इस दौरान कई बार अटकले लगाई गई कि आरसीपी सिंह भाजपा में शामिल हो जाएंगे। हालांकि, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उस समय कोई पहल होता नहीं दिखा। अब 9 महीने बाद आरसीपी सिंह भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं।
जानिए क्यों महत्वपूर्ण है आरसीपी सिंह को भाजपा में शामिल करना
राजनीतिक पंडितों की माने तो आरसीपी सिंह की कुर्मी कुर्मी जाति से आते हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसी जाति से आते हैं कुर्मी यानी लव और कुशवाहा यानी कुश। बिहार की राजनीति में लव कुश का खास महत्व है। बिहार में करीब इनकी आबादी वोटबैंक के हिसाब से ठीक-ठाक है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी कुशवाहा जाति से आते हैं। वहीं कुछ माह पहले जदयू से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी लगातार नीतीश कुमार पर हमला कर रहे हैं। कुशवाहा हाल में ही अमित शाह से मिलने दिल्ली गए थे। ऐसे में भाजपा अब कुर्मी जाति से एक चेहरे की तलाश में थी। आरसीपी सिंह को इसके प्रभावी विकल्प के तौर पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व देख रहा है। आरसीपी सिंह यानी लव और सम्राट चौधरी यानी कुश, इन दोनों के साथ आने से भाजपा को इसका काफी फायदा मिल सकता है।
नीतीश और आरसीपी के बीच दूरियां बढ़ी तो जदयू ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा
6 जुलाई 1958 को नालंदा यानी नीतीश कुमार के गृह जिले में जन्मे आरसीपी सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवसर रह चुके हैं। वर्ष 1984 में वह यूपी कैडर में आईएएस अधिकारी बने। 1996 में वह तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव बने थे। इसके बाद नीतीश कुमार जब रेल मंत्री बने तो आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया। इसके बाद से आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के करीब होते गए। जब मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को यूपी से बुलाकर अपना प्रमुख सचिव बनाया गया। 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस ले लिया और जदयू ज्वाइन कर ली। जदयू ने 2010 में आरसीपी सिंह को राज्यसभा के लिए नामित किया फिर 2016 में भी राज्यसभा भेजा अब दिसंबर 2020 में आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो एक समय में नीतीश कुमार के राम कहे जाने वाले आरसीपी सिंह पार्टी और सरकार में काफी अहम रोल निभा रहे थे। इसी बीच मोदी सरकार में आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बनाए गए। उस समय जदयू भाजपा के साथ के गठबंधन में था। इसी बीच कुछ कुछ बातों को लेकर आरसीपी सिंह की नीतीश कुमार और जदयू से दूरियां बढ़ने लगी जदयू के नेता उन्हें भाजपा का एजेंट तक बुलाने लगे। नीतीश और आरसीपी के बीच दूरियां बढ़ी तो जदयू ने उन्हें इस बार राज्यसभा नहीं भेजा। अंत में आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद आरसीपी सिंह लगातार जदयू और नीतीश कुमार पर हमलावर हो गए। जदयू संगठन को मजबूत करने का श्रेय भी आरसीपी सिंह को ही जाता है।