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Sunday, May 19, 2024

जानें शरद यादव के परिवार में कौन-कौन,माता-पिता से लेकर बेटा, बेटी और दामाद तक

जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने गुरुवार रात फोर्टिस अस्पताल में आखिरी सांस ली। 75 साल के शरद यादव लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। गुरुवार रात सांस लेने में दिक्कत हुई तो परिवार के सदस्यों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। जहां, इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। बेटी सुभाषिनी यादव ने शरद यादव के निधन की सूचना सोशल मीडिया के जरिए दी।

शरद यादव देश के बड़े समाजवादी नेता रहे। उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई। वह देश के पहले ऐसे नेता बने, जिन्हें तीन अलग-अलग राज्यों से सांसद चुने जाने का मौका मिला। आइए जानते हैं कि शरद यादव के परिवार में कौन-कौन है?

मध्य प्रदेश में जन्मे और बिहार में चमक गए1947 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में शरद यादव का जन्म हुआ था। गांव का नाम बबाई है। पिता नंद किशोर यादव किसान थे और मां सुमित्रा यादव गृहिणी। शरद के बड़े भाई रविशंकर यादव थे। नौ अप्रैल 2017 को रविशंकर यादव का निधन हो गया था।

शरद शुरु से ही पढ़ाई में तेज थे। होशंगाबाद से ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। इसके बाद उन्होंने इटारसी के हायर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। साल 1964 में जबलपुर के साइंस कॉलेज से बीएससी और साल 1970 में कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग जबलपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई में उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था। शरद इस दौरान राजनीति से प्रभावित हुए थे और उन्होंने न केवल कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज) के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। वे एक कुशल वक्ता भी थे।

डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित हुएजब शरद यादव छात्र राजनीति में मशगूल थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की लहरें परवान चढ़ रहीं थीं। शरद यादव भी इनसे खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर शरद ने अपने मुख्य राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में भाग लिया और आपातकाल के दौरान मीसा बंदी बनकर जेल भी गए।

27 की उम्र में लोकसभा चुनाव जीता, पहली बार संसद पहुंचेशरद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से हुई थी। वे कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे जबकि तीन बार राज्यसभा सदस्य चुने गए। वे 27 साल की उम्र में पहली बार 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शरद बाद में उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट और बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गए।

कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद दास को हराकर चर्चा में आए शरद यादव का नाम राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आया जब 1974 में जबलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में उन्होंने विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद दास को चुनाव हराया। इसके पहले वह जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में देश के छात्र एवं युवा आंदोलन का एक बड़ा चेहरा बन चुके थे। 1984 में वह अमेठी लोकसभा सीट से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े।

केंद्र सरकार में अहम मंत्रालय भी संभालेशरद यादव जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। 1996 में बिहार से वे पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने। 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई और एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने घनिष्ठ सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मन-मुटाव भी हुआ। इसलिए, शरद यादव ने जेडीयू से नाता तोड़ लिया था।

परिवार में दो बच्चे, पत्नी15 फरवरी 1989 को शरद यादव ने रेखा यादव से शादी की। उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी है। बेटे का नाम शांतनु बुंदेला और बेटी का नाम सुभाषिनी राजा राव हैं। उनके बेटे शांतनु ने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से की है। शरद यादव की बेटी राजनीति का भी हिस्सा रह चुकी हैं। 2020 में बिहार के विधानसभा के चुनाव से पहले सुभाषिनी कांग्रेस पार्टी से जुड़ी। सुभाषिनी ने बिहारीगंज विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा। वह इस सीट से चुनाव हार गईं थीं।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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