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Monday, May 6, 2024

भारत ने पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया।

भारत ने सोमवार को पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही पूरा पाकिस्तान और चीन भी अब भारतीय मिसाइलों के जद में आ गया है। इस पर इंडियन स्पेस एसोसिएशन के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट (रिटायर्ड) समेत कई विशेषज्ञों ने खुशी जाहिर की और इसे भारत के लिए गर्व की बात बताया।

लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट (रिटायर्ड) ने कहा कि ‘मिशन दिव्यास्त्र, भारत के लिए गर्व का पल है। देश में ही विकसित अग्नि-5 मिसाइल के साथ MIRV तकनीक से यह सुनिश्चित होगा कि एक ही मिसाइल में कई वारहेड तैनात किए जा सकते हैं। इस परीक्षण के बाद भारत भी उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास MIRV तकनीक है। साथ ही इस मिसाइल में जो सेंसर्स और एवियोनिक्स लगे हैं, वो भी भारत में बने हैं और ये भारत की तकनीकी क्षमता का सबूत हैं। मैं इसके लिए डीआरडीओ के सभी वैज्ञानिकों को बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।’

क्या है MIRV तकनीक

लंबी दूरी की मिसाइल अग्नि-5 को डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। यह मिसाइल मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टारगेटेबल रि-एंट्री व्हीकल (MIRV) तकनीक पर आधारित है। एमआईआरवी तकनीक एक ही मिसाइल से कई टारगेट को निशाना बना सकती है। साथ ही अग्नि मिसाइल परमाणु हथियारल ले जाने में भी सक्षम है। अभी तक एमआईआरवी तकनीक सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन के पास ही है और इस मिसाइल को जमीन से या समुद्र से और पनडुब्बी से भी लॉन्च किया जा सकता है। ऐसी खबरें हैं कि पाकिस्तान और इस्राइल भी ऐसे मिसाइल सिस्टम को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।

MIRV तकनीक की खास बात ये है कि इसकी मदद से कई हथियार ले जाए जा सकते हैं और अलग-अलग स्पीड और अलग-अलग दिशाओं में इन हथियारों से टारगेट को निशाना बनाया जा सकता है। यह काफी मुश्किल तकनीक है और यही वजह है कि सिर्फ कुछ ही देशों के पास यह तकनीक मौजूद है। अमेरिका ने साल 1970 में ही एमआईआरवी तकनीक विकसित कर ली थी और अब भारत भी उस ग्रुप का हिस्सा बन गया है, जिन देशों के पास एमआईआरवी तकनीक है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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