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Sunday, May 19, 2024

बस्तर इलाके के जिन जंगलों में सरकारी लोग जाने से कतराते हैं वहां धर्मपाल सैनी एक सेतु की तरह हैं

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके के जिन जंगलों में सरकारी लोग जाने से कतराते हैं और आए दिन सुरक्षा बलों और नक्सलियों की मुठभेड़ होती रहती है, वहां धर्मपाल सैनी एक सेतु की तरह हैं। वह अकसर सरकार और नक्सलियों के बीच संवाद की राह बनाते हैं। उनके ही प्रयासों से बीजापुर में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान अगवा किए गए सीआरपीएफ कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की रिहाई हो सकी है। राकेश्वर सिंह की रिहाई के बाद से ही 91 साल के धर्मपाल सैनी की चर्चा जोरों पर है। बस्तर के ताऊजी या फिर बस्तर के गांधी कहलाने वाले धर्मपाल सैनी को सरकार की ओर से पद्मश्री का सम्मान भी मिला है। 6 दशकों से बस्तर के लिए समर्पित धर्मपाल सैनी का आदिवासियों और नक्सलियों के बीच भी सम्मान है। आइए जानते हैं, कौन हैं धर्मपाल सैनी…

क्यों पूरी जिंदगी बस्तर में खपाने का धर्मपाल सैनी ने लिया फैसला

विनोबा भावे के शिष्य रहे धर्मपाल सैनी का बस्तर से नाता 1960 के दशक में जुड़ा था। उन्होंने यहां कि बेटियों की जिंदगी को बदलने का बीड़ा उठाया और आज भी अनवरत चल रहे हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के धार जिले के रहने वाले धरमपाल सैनी विनोबा भावे के शिष्य रहे हैं। कहा जाता है कि 60 के दशक में सैनी ने एक अखबार में बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ी थी। खबर के अनुसार दशहरा के आयोजन से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी। यह खबर उनके मन में घर कर गई। उन्होंने फैसला लिया कि वे बच्चियों की ऊर्जा को सही स्थान पर लगाएंगे और उन्हें प्रेरित करेंगे।

विनोबा भावे ने इस शर्त पर सैनी को दी थी बस्तर जाने की अनुमति

कहा जाता है कि धर्मपाल सैनी ने बस्तर जाने के लिए जब विनोबा भावे से परमिशन मांगी तो वे नहीं माने। हालांकि धर्मपाल सैनी की जिद के बाद उन्होंने अनुमति दी, लेकिन यह शर्त भी रखी कि वह कम से कम 10 बरस तक बस्तर में ही रहेंगे। 1976 में सैनी बस्तर आए और यहीं के होकर रह गए, उनके स्टूडेंट्स और स्थानीय लोग उन्हें ताऊजी कहकर बुलाते हैं। एथलीट रहे धर्मपाल सैनी ने अब तक बस्तर में 2 हजार से ज्यादा खिलाड़ी तैयार किए हैं। वे बताते हैं कि जब वे बस्तर आए तो देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी 15 से 20 किलोमीटर आसानी से चल लेते हैं। बच्चों के इस स्टैमिना को स्पोर्ट्स और एजुकेशन में यूज करने का प्लान उन्होंने तैयार किया। 1985 में पहली बार आश्रम की छात्राओं को उन्होंने स्पोर्ट्स कॉम्पिटीशन में उतारा।

dharampal saini

ताऊजी की पढ़ाई छात्राएं आज प्रशासनिक पदों पर, खूब है सम्मान

आदिवासी इलाकों में साक्षरता को बढ़ाने में धर्मपाल सैनी का अहम योगदान माना जाता है। इसी के चलते उन्हें सरकार ने पद्मश्री से नवाजा था। सैनी के आने से पहले तक बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10 प्रतिशत भी नहीं था। जनवरी 2018 में ये बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया, जबकि आसपास के आदिवासी इलाकों का साक्षरता ग्राफ अब भी काफी पीछे है। बस्तर में शिक्षा की अलख जगाने के पीछे भी धर्मपाल सैनी की प्रेरणा काम करती है। उन के बस्तर आने से पहले तक आदिवासी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं, वहीं आज बहुत सी पूर्व छात्राएं अहम प्रशासनिक पदों पर काम कर रही हैं। बालिका शिक्षा में इसी योगदान के लिए धर्मपाल सैनी को साल 1992 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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