देवशिला के दर्शन को गोरखपुर में उमड़ा जनसैलाब, शालिग्राम शिलाओं के स्वागत में कई स्थानों पर आतिशबाजी और पटाखें भी जलाए गए।
नेपाल से निकली देवशिला रथ यात्रा मंगलवार की रात गोरखपुर में पहुंची। शहर में निर्धारित दो जगह स्वागत के बाद यात्रा का गोरखनाथ मंदिर में पुष्प वर्षा कर भव्य स्वागत किया गया। गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी कमलनाथ और पंडित अरविंद चतुर्वेदी के साथ साधु-संतों ने देवशिला का पूजन किया।
नेपाल के जनकपुर से निकलकर मधुबनी, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, कुशीनगर के रास्ते होते हुए देवशिला यात्रा ने रात 11 बजे गोरखपुर की सीमा में प्रवेश किया। जगह-जगह लोगों के द्वारा देवशिला का भव्य स्वागत किया गया। जिस वजह से यात्रा में देरी हुई। गोरखपुर में यह यात्रा शाम 4:00 बजे तक पहुंचने वाली थी। शहर में कई जगह शालिग्राम के स्वागत के लिए तैयारियां की गई थी, लेकिन रात्रि के कारण कई स्वागत के कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए। शहर में केवल दो जगह ही स्वागत हुआ। सबसे पहले मोहद्दीपुर हाइडिल के पास, उसके बाद विश्वविद्यालय छात्रावास के समीप स्वागत किया गया। स्वागत स्थल पर बड़ी संख्या में लोगों इकट्ठा हुए। बड़े हुजूम के कारण जाम जैसी स्थिति बनी रही। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं एवं विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के साथ स्थानिय और दूरदराज से लोग देवशिला के दर्शन के लिए पहुंचे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों और महिलाओं में रामरथ को लेकर चरम पर उत्साह देखा गया। जगह-जगह शालिग्राम पत्थर को छूने के लिए लोग लालायित दिखे।
गोरखनाथ मंदिर में पूजा अर्चाना कर उतारी गई आरती
शहर में प्रवेश के बाद स्वागत स्थल पर जय श्री राम के नारों से पूरा माहौल भक्ति से सराबोर हो गया। देवशिला का कारवां धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया, मोहद्दीपुर होते हुए देव शीला गोरखनाथ मंदिर पहुंची। जहां गोरखनाथ मंदिर में प्रवेश करने पर भूतनाथ मंदिर के पुजारियों और पदाधिकारियों ने पूरे गर्मजोशी के साथ स्वागत अभिनंदन किया। देवशिला का पूजा अर्चना कर आरती उतारी गई, इस दौरान पूरे मंदिर में पुरोहितों के मंत्र उच्चारण गूंज रहे थे। देवशिला को गोरखनाथ मंदिर में रात्रि विश्राम करवाया गया। इसके साथ ही जो लोग साथ आए थे उन्हें हिंदू सेवाश्रम में ठहराया गया। मिली जानकारी के अनुसार देवशिला रात्रि विश्राम के बाद बुधवार की सुबह पूजा-अर्चना के बाद अयोध्या के लिए प्रस्थान करेगी। रथा यात्रा में नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि भी मौजूद है, जिन्होंने महानगर के निजी होटल रात्रि विश्राम पर किया।
14 और 26 टन का है शिलाखंड
काली गंडकी नदी ही एकमात्र ऐसी नदी है, जहां शालिग्राम पत्थर मिलते हैं। यह नदी दामोदर कुंड से निकलकर गंगा नदी में मिलती है। नदी के किनारे से लिया गया यह शिलाखंड एक 26 टन का और दूसरा 14 टन का है। शिलाखंड को निकालने से पहले काली गंडकी नदी में क्षमा पूजा की गई और विशेष पूजा के साथ इसे लाया जा रहा है। इस शिला का 26 जनवरी के दिन गलेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राभिषेक किया गया। छह करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम पत्थर की दो देवशिलाओं से अयोध्या के श्री राम मंदिर में भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति और माता सीता की मूर्ति बनाई जाएगी