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Sunday, July 6, 2025

बच्चों में तेजी से फैल रहा है कोरोना संक्रमण, 1.39 लाख आइसीयू बेड में से महज पांच फीसदी ही शिशुओं के लिए रिजर्व

देश में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर दिन कोरोना का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है। इस बार कोरोना को लेकर खतरा इसलिए भी ज्यादा दिखाई पड़ रहा है क्योंकि इस बार बच्चे भी कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं।

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि पिछली लहरों के उलट इस बार बड़ी तादाद में बच्चों में संक्रमण देखने को मिल रहा है। ज्यादातर मामलों में संक्रमण बहुत हल्का है लेकिन दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बीमारी के गहरे लक्षण दिख रहे हैं। जो शिशुओं में सांस संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं।
हालांकि मौजूदा समय में चिकित्सकों के सामने दो चिंताएं हैं।

पहली बच्चों में मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम

(एमआईएससी) के बढ़ते मामले। यह समस्या कोविड संक्रमण होने के चार से छह सप्ताह के बाद नजर आ सकती है। दूसरी, चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल बच्चों के लिए आईसीयू और गहन चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर कोई दबाव नहीं है, लेकिन मामलों में बढ़ोतरी होने पर व्यवस्था चरमरा सकती है। खासतौर पर बच्चों की देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारियों की कमी में ऐसा हो सकता है।

सितंबर से ही बच्चों के बिस्तरों की हो रही तैयारी

कुछ महीने पहले केंद्र सरकार ने राज्यों को सलाह दी थी कि शिशु चिकित्सा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने हाल ही में कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा अगस्त में घोषित 23,123 करोड़ रुपये के आपात कोविड प्रतिक्रिया पैकेज-2 का करीब आधा हिस्सा पहले ही राज्यों को जारी किया जा चुका है। इस फंड की मदद से बच्चों के लिए करीब 9,574 आईसीयू बेड तैयार किए जाएंगे।

वहीं देश के बड़े प्राइवेट अस्पतालों में सितंबर से ही बच्चों के बेड की संख्या सुधारने का सिलसिला जारी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देशभर में कोविड के इलाज के लिए 139,300 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं। इनमें से करीब पांच फीसदी यानी करीब 24,057 बिस्तर बच्चों के लिए हैं। देश के अस्पतालों में मौजूद कुल 18 लाख बेड में करीब चार फीसदी बच्चों के लिए हैं।

हर दिन 40 से 50 बच्चे हो रहे हैं संक्रमित

एम्स के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछली लहरों में जहां रोज 10 से कम संक्रमित बच्चे उनके पास आ रहे थे, वहीं इस बार एक दिन उनके पास 40 संक्रमित बच्चों के मामले आ रहे हैं। पहली और दूसरी लहर में कई बच्चे संक्रमित पाए गए लेकिन वे लक्षणरहित थे। तीसरी लहर में बच्चों में लक्षण अधिक नजर आ रहे हैं। बच्चों में कोविड के जितने मामले आ रहे हैं, हकीकत में उससे कहीं अधिक हैं। अभी बुखार, पेट की समस्या जैसे हल्के लक्षणों के साथ कई बच्चे आ रहे हैं। लक्षणों की तीव्रता दो-तीन दिन रहती है, लेकिन शायद ही किसी को दाखिल करने की आवश्यकता पड़ रही है।

उन्होंने कहा कि बच्चों में संक्रमण बढ़ रहा है और यह बात अमेरिका के आंकड़ों से भी सामने आती है। पिछली लहर में वहां प्रति एक लाख पर 2.5 बच्चे संक्रमित हो रहे थे, जबकि इस बार यह आंकड़ा चार हो गया है। पहली और दूसरी लहर में कई बच्चे संक्रमित पाए गए लेकिन वे लक्षण रहित थे। तीसरी लहर में बच्चों में लक्षण अधिक नजर आ रहे हैं। पहली लहर के दौरान एक से 10 वर्ष की उम्र के करीब चार फीसदी बच्चों को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा था, जबकि 11 से 20 की उम्र में 8-10 फीसदी लोगों को भर्ती कराना पड़ा था। तीसरी लहर में भी ऐसा ही हाल रह सकता है।

बच्चों को दो साल तक रह सकती सांस की दिक्कत
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकारों के प्रयासों का नतीजा भी दिख रहा है। हमें नहीं लगता कि शहरों में बच्चों के इलाज में बुनियादी ढांचे की कोई समस्या आएगी। बच्चों के इलाज के लिए बड़ों के बिस्तरों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। नवजात और शिशुओं के लिए उपकरण अलग होते हैं, जबकि बड़े बच्चों का इलाज बड़ों के बिस्तर पर हो सकता है।

उन्होंने कहा कि बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। उनके इलाज के कुशल और एक्सपर्ट स्टाफ, चिकित्सकों की आवश्यकता होती है। वयस्कों के आईसीयू बच्चों के लिए नहीं रोके जा सकते। ऐसी स्थिति में दूसरे लोग चिकित्सा पाने से वंचित रह जाएंगे। जहां वयस्कों में इस बीमारी का असर दो-तीन दिन में हल्का पड़ने लगता है, वहीं दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सांस की समस्या गंभीर हो सकती है।

जल्द हो बच्चों का टीकाकरण

बाल रोग विशेषज्ञों की अनुशंसा है कि बच्चों का टीकाकरण जल्दी से जल्दी किया जाए। उनका कहना है कि यदि दुनिया को सामान्य बनाना है तो एक तरीका यह है कि टीकाकरण को सुनिश्चित किया जाए। बच्चों का टीकाकरण अहम है। कोवैक्सीन एक सुरक्षित टीका है क्योंकि इसे पारंपरिक तकनीक से बनाया गया है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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