नई दिल्ली, 21 अप्रैल 2025, सोमवार: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के बहुप्रतीक्षित छात्रसंघ चुनाव में एक नया मोड़ आया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जेएनयू चुनाव समिति को कानूनी नोटिस भेजकर चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। यह नोटिस एबीवीपी समर्थित संयुक्त सचिव पद के प्रत्याशी वैभव मीणा की ओर से भेजा गया है, जिसमें 18 अप्रैल 2025 को जारी एक अधिसूचना को अवैध और नियमों के खिलाफ बताया गया है।
विवाद का केंद्र: नामांकन वापसी की दोबारा अनुमति
जेएनयू चुनाव समिति ने 11 अप्रैल 2025 को छात्रसंघ चुनाव की समय-सारणी जारी की थी, जिसमें नामांकन, जांच, नाम वापसी, प्रचार और मतदान की तारीखें स्पष्ट थीं। तय कार्यक्रम के अनुसार, नाम वापसी की अंतिम तारीख 16 अप्रैल थी, जिसे विलंब के कारण 17 अप्रैल तक बढ़ाया गया। उसी दिन शाम 5 बजे वैध प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी कर दी गई। लेकिन अचानक 18 अप्रैल को समिति ने “अप्रत्याशित कारणों” का हवाला देते हुए 30 मिनट की अवधि के लिए नामांकन वापसी की प्रक्रिया फिर से खोल दी।
एबीवीपी ने इस कदम को एकतरफा और नियमों का उल्लंघन करार दिया है। संगठन का कहना है कि यह निर्णय न केवल पहले से निर्धारित समय-सारणी के खिलाफ है, बल्कि लिंगदोह समिति की सिफारिशों का भी उल्लंघन करता है, जो छात्रसंघ चुनावों के लिए पारदर्शी और समयबद्ध प्रक्रिया सुनिश्चित करती हैं।
एबीवीपी के आरोप: निष्पक्षता पर सवाल
कानूनी नोटिस में एबीवीपी ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं:
- नियमों का उल्लंघन: समिति ने अपनी ही घोषित समय-सारणी का पालन नहीं किया, जिससे प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं।
- लिंगदोह सिफारिशों की अवहेलना: लिंगदोह समिति के दिशानिर्देशों के अनुसार, चुनाव प्रक्रिया 10 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए। नई अधिसूचना इस समय-सीमा को प्रभावित करती है।
- प्रत्याशियों के अधिकारों का हनन: दोबारा नामांकन वापसी की अनुमति से कुछ प्रत्याशियों को अनुचित लाभ मिल सकता है, खासकर उन लोगों को जिन्होंने नियमों के खिलाफ दो पदों के लिए नामांकन किया था।
- पारदर्शिता पर सवाल: अंतिम सूची जारी होने के बाद प्रक्रिया में बदलाव करना निष्पक्षता के खिलाफ है और प्रचार की तैयारी कर रहे प्रत्याशियों के लिए अनुचित है।
एबीवीपी की मांगें
एबीवीपी ने नोटिस में निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
- 17 अप्रैल को जारी वैध प्रत्याशियों की सूची के आधार पर 25 अप्रैल को ही चुनाव कराए जाएं।
- 18 अप्रैल की “अवैध” अधिसूचना को तत्काल निरस्त किया जाए।
- लिंगदोह समिति की सिफारिशों और पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित किए जाएं।
- यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो एबीवीपी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देता है।
“लोकतंत्र पर खतरा”: एबीवीपी का बयान
जेएनयू एबीवीपी इकाई के अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने कहा, “चुनाव समिति ने अपनी ही घोषणाओं और लिंगदोह समिति के नियमों का उल्लंघन कर पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को ठेस पहुंचाई है। यह कदम न केवल प्रत्याशियों के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि छात्रसंघ चुनाव की विश्वसनीयता को भी संदेह के घेरे में लाता है। ऐसी अव्यवस्थित प्रक्रिया से छात्रों का लोकतांत्रिक विश्वास कमजोर हो रहा है।”
आगे क्या?
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव हमेशा से ही चर्चा और विवाद का केंद्र रहे हैं। इस बार भी, एबीवीपी के कानूनी नोटिस ने चुनाव प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। यदि समिति ने समय रहते मांगों को नहीं माना, तो मामला अदालत तक जा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या समिति अपनी स्थिति स्पष्ट करती है या यह विवाद और गहराता है।
फिलहाल, जेएनयू के छात्र और प्रत्याशी इस अनिश्चितता के बीच चुनावी तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन एक सवाल हर किसी के मन में है- क्या जेएनयू का यह चुनाव वाकई निष्पक्ष और पारदर्शी होगा?