लखनऊ, 21 अप्रैल 2025, सोमवार। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जातीय तैनाती का मुद्दा गरमाया हुआ है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर सनसनीखेज आरोप लगाते हुए दावा किया है कि प्रदेश के पुलिस थानों में थानेदारों की पोस्टिंग जाति के आधार पर हो रही है। अखिलेश का कहना है कि थानों पर ठाकुर समुदाय का दबदबा है, जबकि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) समुदाय के पुलिसकर्मियों को जानबूझकर हाशिए पर रखा जा रहा है। इन आरोपों ने जहां सियासी हलकों में हलचल मचा दी है, वहीं यूपी के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रशांत कुमार ने इसका तीखा जवाब देते हुए इसे “भ्रामक” और “गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया है। आइए, इस विवाद के हर पहलू को तथ्यों के आधार पर समझते हैं।
अखिलेश का आरोप: “ठाकुरों का दबदबा, PDA की अनदेखी”
अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में “बांटो और राज करो” की नीति के तहत पुलिस अधिकारियों की तैनाती की जा रही है। उन्होंने आंकड़ों के साथ दावा किया कि कई जिलों में थानेदारों की पोस्टिंग में ठाकुर समुदाय को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि PDA समुदाय के इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर को नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रयागराज में मीडिया से बातचीत के दौरान अखिलेश ने उदाहरण देते हुए कहा:
आगरा: 48 थानों में केवल 15 थानेदार PDA समुदाय से, बाकी “सिंह भाई लोग” (ठाकुर समुदाय)।
मैनपुरी: 15 थानाध्यक्षों में 3 PDA, 10 ठाकुर समुदाय से।
चित्रकूट: 10 थानेदारों में 2 PDA, 5 ठाकुर समुदाय से।
महोबा: 11 थानों में 3 PDA, 6 ठाकुर समुदाय से।
अखिलेश ने तंज कसते हुए सवाल उठाया, “क्या यही है सबका साथ, सबका विकास?” उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार जानबूझकर जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है। उनके मुताबिक, योगी सरकार में सामाजिक न्याय और समावेशिता की भावना खत्म हो चुकी है, और यह नीति समाज को बांटने का काम कर रही है। अखिलेश ने यह भी कहा कि पुलिस थानों में ठाकुर समुदाय का वर्चस्व न केवल प्रशासनिक पक्षपात को दर्शाता है, बल्कि यह भाजपा की “जाति आधारित राजनीति” का हिस्सा है।
डीजीपी का पलटवार: “आरोप भ्रामक, तैनाती नियमों के अनुसार”
अखिलेश के इन गंभीर आरोपों पर यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार ने त्वरित और सख्त प्रतिक्रिया दी। लखनऊ में मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर प्रसारित ऐसी जानकारी “पूरी तरह गलत और भ्रामक” है। डीजीपी ने स्पष्ट किया कि पुलिस थानेदारों की तैनाती में आरक्षण के मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है, और किसी भी तरह का जातिगत पक्षपात नहीं होता। उन्होंने कहा, “जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को ऐसी टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए। संबंधित जिलों ने पहले ही सही आंकड़े साझा किए हैं, और भविष्य में ऐसी भ्रामक सूचनाओं का खंडन किया जाएगा।”
डीजीपी ने आगरा के उदाहरण का जवाब देते हुए बताया कि वहां कुल 49 थानों (एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट सहित) में सामान्य श्रेणी के 21, ओबीसी के 19, और अनुसूचित जाति/जनजाति के 9 थानेदार तैनात हैं। सामान्य श्रेणी के 21 थानों में 8 ठाकुर, 9 ब्राह्मण, और 4 अन्य सामान्य जातियों के थानेदार हैं। प्रयागराज में 44 थानों में 27 सामान्य श्रेणी, 11 ओबीसी, और 6 अनुसूचित जाति/जनजाति के थानेदार हैं, जिसमें सामान्य श्रेणी के 27 में 17 ब्राह्मण और 10 ठाकुर हैं। डीजीपी के मुताबिक, ये आंकड़े आरक्षण नियमों के अनुरूप हैं, और अखिलेश के दावे तथ्यों से मेल नहीं खाते।
तथ्यों की पड़ताल: क्या कहते हैं आंकड़े?
अखिलेश के आरोपों और डीजीपी के जवाब के बीच तथ्यों की पड़ताल जरूरी है। आगरा में अखिलेश ने दावा किया कि 48 थानों में 15 PDA और बाकी ठाकुर समुदाय से हैं, लेकिन पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि 49 थानों में सामान्य श्रेणी के 42%, ओबीसी के 39%, और अनुसूचित जाति/जनजाति के 19% थानेदार हैं, जो आरक्षण नियमों (सामान्य 50%, ओबीसी 27%, अनुसूचित जाति 23%) के करीब है। इसी तरह, प्रयागराज और अन्य जिलों में भी तैनाती का अनुपात आरक्षण नीति के अनुरूप दिखता है।
हालांकि, अखिलेश के आंकड़े और पुलिस के आंकड़ों में अंतर है। अखिलेश ने “सिंह भाई लोग” कहकर ठाकुर समुदाय पर फोकस किया, लेकिन पुलिस के आंकड़े सामान्य श्रेणी में ब्राह्मणों और अन्य जातियों की भी मौजूदगी दिखाते हैं। यह सवाल उठता है कि क्या अखिलेश ने आंकड़ों को चुनिंदा तरीके से पेश किया, या पुलिस के आंकड़े पूरी तस्वीर नहीं दिखा रहे? इस विवाद में दोनों पक्षों के दावों की स्वतंत्र जांच जरूरी है।
सियासी रणनीति या सामाजिक मुद्दा?
अखिलेश यादव का यह बयान केवल प्रशासनिक पक्षपात का आरोप नहीं, बल्कि एक सियासी रणनीति भी माना जा रहा है। सपा लंबे समय से PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को अपना मुख्य वोट बैंक मानती है। अखिलेश का यह आरोप योगी सरकार को सामाजिक न्याय के मुद्दे पर घेरने की कोशिश हो सकती है, खासकर 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले। दूसरी ओर, भाजपा और पुलिस प्रशासन इसे “अफवाह” और “जातीय उन्माद” फैलाने की कोशिश करार दे रहे हैं।
इस विवाद ने एक बार फिर यूपी की राजनीति में जाति के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है। अखिलेश के आरोपों ने जहां PDA समुदाय के बीच चर्चा छेड़ दी है, वहीं डीजीपी के जवाब ने सरकार के पक्ष को मजबूती दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विवाद केवल सियासी बयानबाजी तक सीमित रहेगा, या इससे पुलिस तैनाती की नीतियों में कोई बदलाव आएगा?
सच्चाई की तलाश जरूरी
अखिलेश यादव के आरोप और डीजीपी प्रशांत कुमार के जवाब ने यूपी की सियासत में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। जहां अखिलेश ने ठाकुर समुदाय के कथित दबदबे को लेकर योगी सरकार पर हमला बोला, वहीं डीजीपी ने इसे भ्रामक बताकर खारिज किया। तथ्य दोनों पक्षों के दावों के बीच उलझे हुए हैं, और इस मुद्दे का हल केवल स्वतंत्र जांच और पारदर्शी आंकड़ों से ही संभव है। फिलहाल, यह विवाद यूपी की राजनीति में जातीय समीकरणों को और गर्म करने वाला साबित हो रहा है। क्या यह सियासी खेल है, या वाकई प्रशासन में पक्षपात हो रहा है? इसका जवाब समय और तथ्य ही देंगे।