राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के रिश्तों को लेकर एक नई किताब आई है। इसमें दावा किया गया है कि पं. नेहरू अपने राजनीतिक विरोधियों और सहयोगियों से बौद्धिक जंग के दौरान गांधीजी को भी नहीं बख्शते थे।
त्रिपुरदमन सिंह और आदिल हुसैन की किताब ‘नेहरू : द डिबेट्स देट डिफाइंड इंडिया’ में यह बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि विरोधियों के साथ बहस के दौरान पं. नेहरू अपना पक्ष रखने के साथ ही अपने खुद के विचारों को भी आकार देते थे।
मंच साझा करते हुए पं. नेहरू अन्य राजनेताओं व बौद्धिक हस्तियों, जो कि खुद को अपने समकक्ष व साथी समझते थे, के साथ विचार विमर्श में कठोरता से अपनी राय रखते थे। इस वैचारिक खुले मंच में पं. नेहरू को अपने राजनीतिक विरोधियों जैसे मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना, हिंदू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे दिग्गजों के साथ भिड़ना पड़ा बल्कि अन्य सहयोगियों जैसे कांग्रेस नेता सरदार पटेल से भी वैचारिक संघर्ष करना पड़ा, जिनसे अक्सर वह असहमत रहते थे।
पुस्तक में कहा गया है कि यह एक चुनौती थी जिसे नेहरू ने उत्साह के साथ लिया। अपने विरोधियों के साथ बातचीत करना, उनके साथ बहस करना और उनके नजरिए में बदलाव लाने का प्रयास करते हुए पं. नेहरू ने अपने विचारों के लिए लड़ाई लड़ी। इस दौरान उन्होंने अपने खुद के विचारों की भी संरचना की। किताब में दावा किया गया है कि इस बौद्धिक जंग में पं. नेहरू ने महात्मा गांधी को भी नहीं छोड़ा। हालांकि वह अपने मेंटर महात्मा गांधी के साथ खुले तौर पर टकराव नहीं करते थे।
किताब में कहा गया है कि भारत छोड़ो आंदोलन पर पंडित नेहरू के साथ बहस के बाद गांधीजी ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो को बताया था कि वह (नेहरू) एक साथ कई दिनों तक बहस करने की क्षमता रखते हैं।