विधानसभा चुनाव 2018 के परिणाम के बाद बीजेपी को आदिवासी वोट की ताकत का अंदाजा हो गया है। यही वजह है कि 7 माह पूर्व सितंबर 2021 में अमित शाह जबलपुर में राजा शंकरशाह-कुंवर रघुनाथ शाह के 164वें बलिदान दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसके बाद जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल आए।
प्रदेश में आदिवासियों के तीसरे बड़े कार्यक्रम को बीजेपी की 2023 के चुनाव की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है। मध्य प्रदेश में आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) वर्ग के लिए 47 सीटें हैं। इसके अलावा सामान्य वर्ग की 31 सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वोटर निर्णायक हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत नहीं मिल सका था तो कहीं न कहीं उसका कारण आदिवासी सीटों पर होल्ड गंवाना था। रिजर्व 47 सीटों में 2013 में भाजपा के पास 32 सीटें थी, जो 2018 में घटकर 16 रह गई थीं।
2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में 43 आदिवासी समूह हैं। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती है। इनमें सबसे ज्यादा आबादी भील-भिलाला करीब 60 लाख, तो गोंड जनजाति की आबादी करीब 50 लाख है। कोल 11 लाख, तो कोरकू और सहरिया करीब छह-छह लाख हैं। करीब 10 साल बाद ये आंकड़े काफी हद तक बदल चुके हैं।