म्यांमार में चीन के बढ़ते जा रहे प्रभाव को अब कड़ी चुनौती मिली है। भारत के सहयोग से बना एक बंदरगाह यहां चालू हो गया है। समझा जाता है कि इस बंदरगाह से म्यांमार के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी होगी। यह बंदरगाह म्यांमार के रखाइन प्रांत में बना है। सित्तवे पोर्ट नामक इस बंदरगाह पर पिछले मंगलवार को पहला कार्गो (मालवाही) जहाज पहुंचा। यह जहाज कोलकाता से चला था। जहाज के स्वागत के लिए उस मौके पर वहं भारत और म्यांमार के सैन्य अधिकारी मौजूद थे।
सित्तवे पोर्ट भारत के मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस प्रोजेक्ट के तहत कोलकाता से म्यांमार के पश्चिमी तट तक समुद्री रास्ता तैयार किया गया है। उस जगह से जमीनी मार्ग से म्यांमार के अलग-अलग हिस्सों में माल पहुंचाने के रास्ते तैयार किए जा रहे हैं। इनमें एक रास्ता कलादान नदी के जरिए जाएगा, जबकि एक हाईवे भी बन रहा है। भारत के जहाजरानी मंत्री सर्वोनंद सोनेवाल ने कहा है कि इस समुद्री मार्ग के तैयार होने से भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का दक्षिण-पूर्व एशिया से सीधा संपर्क बन गया है।
कलादन परियोजना के निर्माण के लिए भारत और म्यांमार के बीच 2008 में समझौता हुआ था। तब इस पर साढ़े 48 करोड़ डॉलर खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। बंदरगाह के उद्घाटन के मौके पर भारत के अधिकारियों ने आशा जताई कि इससे देश के उत्तर-पूर्वी इलाके का हिंद महासागर से संपर्क बनेगा और उससे उस पूरे क्षेत्र के आर्थिक विकास का रास्ता खुलेगा।
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि चीन भी म्यांमार के रास्ते हिंद महासागर तक अपनी पहुंच बनाने में जुटा हुआ है। चीन के विदेश मंत्री चिन गांग ने इस महीने के पहले हफ्ते में म्यांमार का दौरा किया। बीते दो मई को चिन की यहां सैनिक तानाशाह मिन आंग हलायंग से बातचीत हुई। इसके बाद चिन ने कहा कि उनका देश चीन-म्यांमार इकॉनमिक कॉरिडोर के निर्माण का कार्य अब तेज कर देगा। इस परियोजना के तहत म्यांमार में लॉजिस्टिक्स और औद्योगिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण होना है। इस इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिए चीन की हिंद महासागर तक पहुंच बन जाएगी। चीन ने रखाइन प्रांत के कयोकप्यू में एक बड़े बंदरगाह और औद्योगिक क्षेत्र के निर्माण की योजना बनाई है।
इस लिहाज से फिलहाल भारत ने बाजी मार ली है। हालांकि कलादान ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के तहत बनने वाले हाइवे का निर्माण कार्य धीमी गति से ही आगे बढ़ पा रहा है। इसका कारण उस क्षेत्र में म्यांमार की सेना और लोकतंत्र समर्थक गुटों के बीच चल रहा गृह युद्ध है, जहां इसका निर्माण होना है।
भारतीय थिंक टैंक इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स ने बीते महीने एक वर्कशॉप का आयोजन किया था। उसमें भारत के सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों के अलावा म्यांमार के सैनिक शासन के अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया था। उस दौरान म्यांमार में भारत की परियोजनाओं पर काम की गति तेज करने पर विचार-विमर्श हुआ। इस दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों देशों के बीच लंबी सीमा है, इसलिए उन्हें आपसी सहयोग बढ़ाना चाहिए, ताकि वे सीमा पार गतिविधियां चलाने वाले उग्रवादी समूहों और अन्य चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर पाएं।