वाराणसी, 17 अप्रैल 2025, गुरुवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की हिन्दी विभाग से स्नातक और परास्नातक की मेधावी छात्रा अर्चिता सिंह ने गुरुवार को केंद्रीय कार्यालय के बाहर धरने पर बैठकर अपनी आवाज बुलंद की। यह धरना केवल एक छात्रा का विरोध नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग है। अर्चिता की कहानी उसकी मेहनत, हक और व्यवस्था की खामियों के बीच की जद्दोजहद को उजागर करती है।
क्या है पूरा मामला?
अर्चिता ने 2024-25 सत्र के पीएचडी प्रवेश बुलेटिन के आधार पर हिन्दी विभाग में पीएचडी के लिए आवेदन किया। आवेदन फॉर्म में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) श्रेणी के लिए ‘हां’ या ‘नहीं’ का विकल्प चुनना था। EWS श्रेणी से संबंधित होने के कारण अर्चिता ने ‘हां’ चुना। काउंसलिंग के लिए बुलाए जाने पर उन्होंने सभी जरूरी दस्तावेज, जिसमें सत्र 2023-24 का EWS सर्टिफिकेट और अंडरटेकिंग फॉर्म शामिल था, जमा किए। विश्वविद्यालय ने 31 मार्च तक नया EWS सर्टिफिकेट जमा करने की शर्त रखी, जिसके लिए अर्चिता ने अंडरटेकिंग दी।
उनके दस्तावेजों को चार अलग-अलग स्तरों पर सत्यापित किया गया। अर्चिता ने इंटरव्यू में भी हिस्सा लिया और पीएचडी प्रवेश परिणाम में सामान्य (UR) श्रेणी में 15वीं रैंक हासिल की। विभाग ने उन्हें प्रवेश के लिए पेमेंट लिंक भेजने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन यहीं कहानी में नया मोड़ आया।
प्रवेश प्रक्रिया में अड़ंगा
अर्चिता का आरोप है कि विभाग के कुछ प्रोफेसरों और केंद्रीय कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक अन्य छात्रा को प्रवेश देने के लिए प्रक्रिया को बाधित किया। पेमेंट लिंक रोककर एक कमेटी गठित कर दी गई, जिसके कारण अर्चिता का प्रवेश लटक गया। पिछले 15 दिनों से वह विश्वविद्यालय के अधिकारियों के चक्कर काट रही हैं। विभाग का कहना है कि केंद्रीय कार्यालय से नियमों के अनुसार निर्देश मिलने पर उनका प्रवेश हो सकता है, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा।
शांतिपूर्ण धरने का संकल्प
निराशा और अनिश्चितता के बीच अर्चिता ने हार नहीं मानी। उन्होंने केंद्रीय कार्यालय के बाहर शांतिपूर्ण धरने का रास्ता चुना। उनकी मांग साफ है- पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो। धरने की खबर फैलते ही प्राक्टोरियल टीम उन्हें मनाने पहुंची, लेकिन अर्चिता अपनी बात पर अडिग हैं। वह कहती हैं, “मैंने सभी नियमों का पालन किया, मेहनत से अपनी जगह बनाई, फिर भी मुझे क्यों रोका जा रहा है?”
क्यों अहम है यह घटना?
अर्चिता का धरना केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है। यह उन तमाम छात्रों की आवाज है जो शिक्षा के मंदिरों में निष्पक्षता और समान अवसर की उम्मीद करते हैं। उनकी लड़ाई विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रियाओं की जवाबदेही और पारदर्शिता पर सवाल उठाती है। क्या अर्चिता को उनका हक मिलेगा? क्या विश्वविद्यालय उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेगा? यह समय बताएगा।
फिलहाल, अर्चिता सिंह का धरना बीएचयू के गलियारों में बदलाव की एक छोटी-सी चिंगारी है, जो उम्मीद और हिम्मत की कहानी लिख रही है।