असल जिंदगी हो या राजनीति, जब रायता बिखर जाता है, तो समेटना बहुत मुश्किल होता है। इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कुछ ऐसी ही पेंचीदगियों से राज्य में सत्तारूढ़ दल भाजपा जूझ रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री की मानें तो इस समय न केवल सहयोगी दल, बल्कि पार्टी के नाराज नेता ही बड़ी मुसीबत बन चुके हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक भाजपा नेता का कहना है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व संवेदनशील है। करीब-करीब हर नेता पर निगाह रखी जा रही है, लेकिन मुझे लगता है कि काफी देर हो चुकी है। यह सब राजनीतिक गुटबाजी के कारण ही होता चला गया।
भाजपा छोड़कर आए स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी पार्टी के भीतर गुटबाजी का संकेत दिया। स्वामी प्रसाद मौर्या ने जहां उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या को अपना छोटा भाई बताया, वहीं उन्हें भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार में लाचार बताया। उत्तर प्रदेश भाजपा को करीब से समझने वाले कहते हैं कि 2017 के बाद से 2021 तक उत्तर प्रदेश के योगी सरकार मंत्रिमंडल में केशव प्रसाद मौर्या कभी संतुष्ट नहीं हो पाए। उनकी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लगातार ठनी रही। कहा तो यहां तक जाता है कि अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चली होती, तो लखीमपुर खीरी के सांसद अजय मिश्र टेनी भी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नहीं बनते। इसका एक बड़ा कारण लखीमपुर खीरी के भाजपा नेता विनय कुमार सिंह से योगी का करीबी समीकरण है।
योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया का इंतजार?
स्वामी प्रसाद मंत्री ने नाराजगी में भाजपा छोड़ दी। तमाम आरोप लगाए हैं। स्वामी के बाद मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी योगी मंत्रिमंडल को अलविदा कहा। दोनों मंत्रियों के इस्तीफा देने की सूचना के बाद उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की प्रतिक्रिया आई। उन्होंने दोनों नेताओं से फैसले पर पुनर्विचार करने और बात करने का संदेश दिया, लेकिन योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया का अभी भी इंतजार है। जबकि प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ही हैं। केशव प्रसाद के समकक्ष दिनेश शर्मा भी उप मुख्यमंत्री हैं। लेकिन वह लगातार लो-प्रोफाइल रहते हैं। अखिलेश यादव के एक तंज को याद कीजिए। वह अकसर कहते हैं कि डबल इंजन आपस में टकरा रहे हैं। अखिलेश यादव का यह तंज केंद्र और राज्य में तालमेल में कमी पर ही नहीं है। यह प्रदेश भाजपा संगठन और प्रदेश सरकार के बीच टकराव, प्रदेश सरकार के शीर्ष नेताओं के बीच के आपसी अंतर्विरोध को लेकर भी है। आखिर दारा सिंह चौहान को दिल्ली बुलाने के लिए विशेष विमान भेजने की जरूरत ही क्या है? साफ है कि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रो. एके शुक्ला कहते हैं कि जब सबकुछ ठीक था, तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश के दूसरे राज्यों में घूमकर प्रचार कर रहे थे। उन्हें तो पता ही नहीं चला कि उत्तर प्रदेश में कब, कैसे, कितनी समस्याओं ने जगह बना ली है। अब क्या हो सकता है?
मंत्रियों की बैठकों में योगी की तस्वीर छोटी क्यों है?
इसकी एक बानगी देखनी हो तो सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा की बैठक में लगी तस्वीर जरूर चौंकाएगी। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की दमकती तस्वीर दिखाई देगी। योगी आदित्यनाथ यहां मौजूद भर दिखाई देंगे। इस तरह की स्थिति लखनऊ के कई मंत्रियों और ओबीसी विधायकों के बंगलों में भी देखने को मिलेगी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि दरअसल योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री रहते हुए अपने सहयोगियों के साथ कामकाजी और व्यावहारिक रिश्तों को इस स्तर तक ले जाकर वरीयता ही नहीं दी। केशव प्रसाद मौर्या की टीम के एक सदस्य ने दबी जुबान से स्वीकार किया कि केंद्रीय नेतृत्व किसी भी स्थिति से अनजान नहीं है।
जून 2021 के बाद उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बदलाव की एक हवा उठी थी, लेकिन दब गई। यह अनायास नहीं था। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी का इंटरव्यू वायरल हो रहा है। वह आखिर इतना नाराज क्यों हैं? कोई क्यों नहीं समझना चाहता? पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले एक भाजपा नेता ने कहा कि जब बात बननी होती है तो सब एक कतार में और लगभग एक राय के होते हैं। जब बात बिगड़नी होती है तो इसका अर्थ यही है कि सब बिखर रहा था और आप बिखरने दे रहे थे। फिर तो एक दिन पैरों तले जमीन खिसकनी ही है।
जब भाजपा सो रही थी तो अखिलेश जाग रहे थे
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी संजय लाठर कहते हैं कि जब भाजपा जनहित के निर्णय लेने से चूक रही थी और राज्य सरकार अपनों की ही अनदेखी कर रही थी, तब सपा अपनी जमीनी ताकत को सहेजने में जुट गई थी। लाठर कहते हैं कि लोगों को सब्जबाग दिखाकर साथ लाया जा सकता है, लेकिन वादे पूरा न करने पर इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। वह कहते हैं कि भाजपा के साथ जब उसके ही नेता इतने नाराज हैं तो जनता के बीच नाराजगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। 2014 का लोकसभा जीतने के बाद भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने विधानसभा चुनाव 2017 पर टिका दिया था। शाह ने प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या, संगठन मंत्री सुनील बंसल के सहारे हर जाति, वर्ग के नेताओं को भाजपा के साथ जोड़ा था। भाजपा को विधानसभा चुनाव में तीन चौथाई का बहुमत मिला। सभी राजनीतिक दल हवा होते नजर आए। अमित शाह को राजनीति का चाणक्य और सुनील बंसल को सफलतम संगठन मंत्री मे गिना जाने लगा। लेकिन इसके बाद अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल नाराज हुईं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर नाराज हुए और भाजपा ने इस पर बहुत कान नहीं दिया था। बताते हैं इसके बाद से ही समाजवादी पार्टी ने सूक्ष्म सामाजिक प्रबंधन के कौशल को धार देना शुरू कर दिया।
पांच साल बाद 80 बनाम 20 क्या है?
वरिष्ठ पत्रकार श्याम नारायण पांडे कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 80 बनाम 20 का बयान काफी कुछ कहता है। यह बता रहा है कि मुख्यमंत्री को जमीनी हालात का काफी हद तक अनुमान है। इसलिए वह सब कुछ सांप्रदायिक राजनीति के संदेश से ढक देना चाहते हैं। पांडे का कहना है कि भाजपा के भीतर प्रदेश स्तर पर राजनीतिक गुटबाजी से इनकार नहीं किया जा सकता। केशव प्रसाद मौर्या का नाम लेने पर मुख्यमंत्री के सचिवालय के अफसर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। संजय गांधी के जमाने से अमेठी और सुल्तानपुर की राजनीति में सक्रिय प्रदीप पाठक कहते हैं कि एक सरकार पांच साल काम करने के बाद यदि मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुसलमान पर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाए तो इसे क्या कहेंगे? क्या जो लोग भाजपा और इसकी सरकार से नाराज होकर इस्तीफा दे रहे हैं, सब मुसलमान हैं? सब मस्जिद में नमाज अता करने जाते हैं। साफ बात है कि चुनाव के लिए पार्टी के पास न तो स्पष्ट दिशा है और न ही उसके संगठन में एकजुटता।