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Saturday, June 21, 2025

“घर बिकाऊ है”: आजमगढ़ के एक गांव में 40 हिन्दू परिवारों का दर्दनाक पलायन

आजमगढ़, 13 जून 2025: आजमगढ़ के मुबारकपुर थाना क्षेत्र के बम्हौर गांव का छोटा पूरा अब सुर्खियों में है, लेकिन वजह बेहद दुखद है। इस गांव के 40 हिन्दू परिवार अपने घरों पर “मकान बिकाऊ” के पोस्टर लगाकर पलायन की राह पर हैं। इन परिवारों का कहना है कि बार-बार की मारपीट, गाली-गलौज और छेड़खानी ने उनका जीना मुहाल कर दिया है। आखिर क्या मजबूरी है कि ये लोग अपनी जड़ें छोड़ने को मजबूर हैं?

क्या है पूरा मामला?

पिछले 3 जून को गांव में एक बरात के दौरान शुरू हुआ विवाद इस त्रासदी की जड़ बना। ग्रामीणों का आरोप है कि बरात में कुछ युवकों ने महिलाओं और लड़कियों के डांस का वीडियो बनाया और छेड़खानी की। विरोध करने पर दोनों पक्षों में झड़प हो गई, जिसमें आठ लोग घायल हुए। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, और पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार भी किया। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इसके बावजूद उनकी सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हुआ।

“न पूजा की आजादी, न शादी की खुशी”

गांव के बहादुर कन्नौजिया का दर्द छलकता है जब वे बताते हैं कि पूजा-पाठ, शादी-ब्याह जैसे खास मौकों पर भी उन्हें परेशान किया जाता है। “न बाजा बजाने की इजाजत, न डीजे की। लड़कियों के डांस का वीडियो बनाया जाता है, छेड़खानी होती है,” वे कहते हैं। उनका आरोप है कि जिला प्रशासन उनकी फरियाद नहीं सुनता। “हमारे पास अब घर बेचकर दूसरी जगह जाने के सिवा कोई चारा नहीं,” बहादुर का गला भर आता है।

गांव के किशन भी यही दास्तां दोहराते हैं। वे कहते हैं, “पुलिस और प्रशासन हमारी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेता। 3 जून की घटना के बाद भी गांव में तनाव का माहौल है। हर दिन धमकियां मिलती हैं, और हम डर के साए में जी रहे हैं।”

पुलिस का पक्ष

मुबारकपुर थाना प्रभारी निहान नंदन का कहना है कि 3 जून की घटना के बाद दोनों पक्षों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया और कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। गांव में शांति बनाए रखने के लिए पुलिस गश्त कर रही है। वे कहते हैं, “कुछ लोग मामले को तूल देने की कोशिश कर रहे हैं, जो गलत है। जल्द ही और लोगों की गिरफ्तारी होगी।”

एक गांव का दर्द

यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों की व्यथा है जो सुरक्षा और सम्मान के अभाव में अपनी जमीन, अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं। सवाल यह है कि आखिर कब तक ये परिवार डर के साए में जीने को मजबूर रहेंगे? क्या प्रशासन और समाज मिलकर इनके लिए एक सुरक्षित माहौल नहीं बना सकते? बम्हौर गांव के ये पोस्टर न सिर्फ मकानों की बिक्री का ऐलान हैं, बल्कि एक गहरे सामाजिक संकट की चीख भी हैं।

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