14 साल की दिव्यांग, आठवीं कक्षा की मेधावी छात्रा आयुषी जिसकी हिम्मत इतनी बुलंद कि दिव्यांगता भी उसके जज्बे के आगे बौनी साबित होती है। कर्णनगरी (हरियाणा का करनाल जिला) को भी अपनी इस पैरा तैराक बेटी पर नाज है जो अब पैरालंपिक में देश के लिए सोना जीतना चाहती हैं। बेटी की उपलब्धियों को दूसरों के लिए मिसाल बनाने के इरादे से घरौंडा के विधायक हरविंद्र कल्याण ने आयुषी को अपने विधानसभा क्षेत्र में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड एंबेसडर घोषित कर दिया है।
स्पेस वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को अपना आदर्श मानने वाली आयुषी भगवान श्रीकृष्ण के ठाकुर स्वरूप की भी अनन्य भक्त हैं और ठाकुर स्वरूप हमेशा साथ रखती हैं। करीब 8 साल की उम्र से तैराकी कर रही आयुषी 87 प्रतिशत दिव्यांग है। उसकी पांच मेजर सर्जरी हो चुकी है और सात वर्ष तक पैरों में प्लास्टर चढ़ा रहा मगर ये विपरीत परिस्थितियां आयुषी की उड़ान को रोक नहीं पाई।
वर्ष 2017 से तैराकी कर रही आयुषी को उन दिनों काफी दिक्कत हुई जब कोविड काल में सभी स्वीमिंग पूल बंद हो गए जोकि अभी तक बंद हैं। पिता अनिल ठकराल बताते हैं कि ऐसी स्थिति में कोच रवींद्र संधू ने बेटी आयुषी को अपना अभ्यास जैसे-तैसे जारी रखने को कहा।
जब कुछ समझ नहीं आया तो कोच ने आयुषी से मूनक नहर में प्रेक्टिस जारी रखने की पेशकश की। नहर में जहरीले जल जीवों के खतरे के बावजूद आयुषी इस प्रस्ताव पर तैयार हो गई और रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने पिता के साथ मूनक नहर में अभ्यास के लिए पहुंच जाती थी।
इसी अभ्यास के बूते 25 से 27 मार्च के बीच राजस्थान के उदयपुर में आयोजित 21वीं राष्ट्रीय पैरा तैराकी प्रतियोगिता में आयुषी ने 50 मीटर बैक स्ट्रोक में, 50 मीटर फ्री स्टाइल और 100 मीटर बैकस्ट्रोक इवेंट में तीन स्वर्ण पदक झटक कर हैट्रिक लगाते हुए हरियाणा का नाम देश में रोशन किया। इससे पहले वर्ष 2017 से अब तक विभिन्न जिला, राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में आयुषी कई स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक जीत चुकी है। अब उदयपुर में आयुषी की जीत पर कर्णनगरी को नाज है।
स्पेस साइंटिस्ट बनने का सपना रखने वाली बेटी आयुषी बताती हैं कि उन्हें पानी में तैरना ऐसा लगता है जैसे वे स्पेस में उड़ रही हों। वह स्पेस साइंटिस्ट बनना चाहती हैं और स्पेस में जाने की भी इच्छा रखती हैं। वह कहती हैं कि जैसे ही वह पानी में उतरती हैं तो अपने शरीर को काफी समय तक इस तरह हलका छोड़ देती हैं, जैसे वह स्पेस में विचरण कर रही हों। उसके बाद अपनी तैराकी गेम शुरू करती हैं।
उनके अनुसार उन्हें अपनी दिव्यांगता को लेकर कभी भी हीन भावना का अहसास नहीं होता, क्योंकि ठाकुर जी जोकि सदैव मेरे साथ हैं, वह अपने उपदेश में कहते हैं कि-मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है, वैसा वो बन जाता है। इसलिए वह अपना विश्वास कभी कम नहीं होने देती। आयुषी अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता अनिल ठकराल समेत परिजनों, कोच रवींद्र संधू, कमलजीत संधू व टीम मैनेजर सुरेंद्र भल्ला को देती हैं